- नितिन गडकरी के १९ दिसम्बर २००९ को भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बनने और उनके द्वारा यह बयां देने से की वह ३ वर्ष तक कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे और केवल संगठन को मजबूत करने में ही अपनी उर्जा लगायेंगे , यह सन्देश मिल रहा है की भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस बार वास्तव में परिवर्तन चाहता है /
- अडवानी की जुन्दली जिसने की भाजपा की ये दुर्दशा की है शायद ये बात अभी न समझ रही हो पर आने वाले समय में उसे यह समझना होगा की राजनाथ और गडकरी के अध्यक्ष बनने में बहुत बड़ा फर्क है और गडकरी ये आने वाले समय में साबित करेंगे /
- भाजपा जब कुछ भी नहीं थी तब १९९०-१९९२ में इसने कारसेवा करवाई और हिन्दू समाज को संगठित कर दिया/ परिणामस्वरुप( बाबरी मस्जिद ) विवादस्पद ढांचा हिन्दुओ की हुंकार मात्र से गिर गया और उसका मलबा भी नहीं मिला/ इसके पारितोषिक के रूप में हिन्दू समाज ने भाजपा को तीन बार केंद्र में सत्तासीन किया /
- परन्तु भाजपा केंद्र में सत्तासीन होते ही अपने हिंदुत्व के मूल स्वरुप से विचलित हो गयी और अडवानी जी ने कहा की राम मंदिर , धारा ३७० आदि भाजपा के अजेंडे में नहीं है /
- भाजपा शायद ये भूल गयी थी की हिन्दू समाज के संगठित होने से उसने सत्ता हासिल की थी और उसने उसी हिन्दू समाज को दुत्कारा, जिसने उसे सर-आँखों बिठाया था /उसने हिन्दू समाज के ही एक अंग को ये भय दिया की अब आरक्षण की मलाई नहीं खाने दी जाएगी (जबकि कांग्रेस उसी अंग को ये आरक्षण रुपी मलाई तो दे ही रही है नरेगा और बी पीएल कार्ड रूपी राबड़ी और दे दी है साथ -साथ सरकारी कर्मियों को भी राबड़ी बाँट रही है )
- ये बात संघ समझ चूका है की चूक कहा हुई थी और उसी चूक को दूर करने के लिये खंती संघ से सम्बन्ध रखने वाले श्री नितिन गडकरी को भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया है और भाजपा पुनः हिंदुत्व की और मुद रही है श्री गडकरी के व्यक्तित्व से परिचित इस बात को अच्छी तरह से जानते है की अब भाजपा में आमूलचूल परिवर्तन होगा / और उनकी राह में कोई भी रोड़ा नहीं अटकाया जा सकेगा क्योकि गडकरी और राजनाथ में दिन और रात का फर्क है /
- भाजपा के नए अध्याय का अभ्युदय होने जा रहा है /
सोमवार, 21 दिसंबर 2009
भरतीय जनता पार्टी का पुनः अभ्युदय संभव
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2 comments:
देखिये आप अपने लेख के द्वारा सभी को गुमराह कर रहे हैं.
राम मंदिर सदैव ही भाजपा का एजेंडा रहा है. कुछ तुच्छ मानसिकता के हिन्दुओं के समर्थन के कारण ही भाजपा बहुमत में नहीं आ पायी और मंदिर नहीं बन पाया.
आप लोग खुद अपने भगवान् के लिए संगठित हो नहीं सकते, किसी और के लिए क्या करेंगे ?
यह मत भूलिए कि भाजपा चौबीस दलों को साथ लेकर चल रही थी, जिनमें सभी राम-भक्त नहीं थे. यदि सभी राम-भक्त होते तो मंदिर की बात संभव थी.
राजीव जी ,
लगता है की आप मेरे लेख से गुमराह हुए है / क्षमा चाहता हूँ /
राम मंदिर भाजपा का नहीं हिन्दू महासभा का अजेंडा रहा है और ये ही न्यायालय में राम जन्मभूमि मुकदमे की पैरवी करती रही है और हिन्दू हक़ में मुकदमा लडती रही है इस मुकदमे का सारा खर्च बिरला जी देते रहे है /
इस मुद्दे को अडवानी जी और भाजपा ने हिन्दू महासभा से सत्ता पाने के लिए हथियाया था परन्तु सत्ता में आते ही "राम जन्मभूमि, सामान आचार संहिता और धारा ३७०" को ठन्डे बस्ते में ये कह कर डाला, की २४ दलों की सरकार है " जैसा की आप भी जानते है "
लोग भगवान के लिए जीते जी मर जाने को तैयार हो जाते है " शायद आप उन २००० कर सेवको को भूल गए जो राम मंदिर और राम जन्मभूमि के नाम पर मुलायम सरकार की गोलियों का शिकार हुए थे और मर मिटे थे /
आप तो उनमे नहीं थे न ?
रही बात राम भक्त की तो उसके लिए " सिया राम मय सब जग जानी , करू प्रणाम जोर जुग पानी " होता है
राम के नाम पर मुर्ख बनाने का क्या परिणाम होता है ये आपके भी सामने है ??????.................
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