शनिवार, 1 सितंबर 2018

दशमहाविद्या मंत्र जाप

दशमहाविद्या मंत्र जाप
सत नमो आदेश | गुरूजी को आदेश | ॐ गुरूजी | ॐ सोह सिद्ध की काया, तीसरा नेत्र त्रिकुट ठहराया | गगण मण्डल में अनहद बाजा | वहा देखा शिवजी बैठा, गुरु हुकम से भीतरी बैठा, शून्य में ध्यान गोरख दीठा | यही ध्यान तपे महेशा, यही ध्यान ब्रह्माजी लाग्या | यही ध्यान विष्णु की माया ! ॐ कैलाश गिरी से, आयी पार्वती देवी, जाकै सम्मुख बैठ गोरक्ष योगी, देवी ने जब किया आदेश | नहीं लिया आदेश, नहीं दिया उपदेश | सती मनमे क्रोध समाई, देखु गोरख अपने माही, नौ दरवाजे खुले कपाट, दशवे द्वारे अग्नि प्रजाले, जलने लगी तो पार पछताई | राखी राखी गोरख राखी, मैं हूँ तेरी चेली, संसार सृष्टि की हूँ मैं माई | कहो शिवशंकर स्वामीजी, गोरख योगी कौन है दीठा | यह तो योगी सबमें विरला, तिसका कौन विचार | हम नहीं जानत, अपनी करनी आप ही जानी | गोरख देखे सत्य की दृष्टि | दृष्टि देख कर मन भया उनमन, तब गोरख कली बिच कहाया | हम तो योगी गुरुमुख बोली, सिद्धों का मर्म न जाने कोई | कहो पार्वती देवीजी अपनी शक्ति कौन - कौन समाई | तब सती ने शक्ति
की खेल दिखाई, दस महाविद्या की प्रगटली ज्योति |
प्रथम ज्योति महाकाली प्रगटली |
(महाकाली)
ॐ निरन्जन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई, माता शम्भु शिवानी काली, ओ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वाहनी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडंग धारी, गले मुण्डमाल हंस मुखी | जिह्वा ज्वाला दन्त काली | मद्य मांस कारी श्मशान की रानी | मांस खाये रक्त - पी - पावे | भस्मन्ति माई जहां पर पाई तहां लगाई | सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की  जोगिन, नागों की नागिन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली ४ वीर अष्ट भैरी, घोर काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ओं काली तुम बाला ना वृद्धा, देव न दानव, नर या नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली |
क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा,
द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटी |
(तारा)
ॐ आदि योग अनादि माया जहां पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया | ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कपालि, जहां पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद्र मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खङग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा | नीली काया पीली जटा, काली दन्त जिह्वा दबाया | घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा | पंच मुख करे हा हा ऽ:ऽ:कारा, डांकनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया | चंडी तारा फिरे ब्रह्मांडी तुम तो हों तीन लोक की जननी |
ॐ ह्रीं श्रीं फट्, ओं ऐं ह्रीं श्रीं हूं फट् |
तृतीय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटी |
(षोडशी - त्रिपुर सुन्दरी)
ॐ निरन्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्या: उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवघर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद | तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश | हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश | त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी | इडा पिंगला सुषुम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी | उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों
ब्रह्मपुरी में भया उजियाला | योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव
की माता |
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ह्रीं श्रीं कं एईल
ह्रीं हंस कहल ह्रीं सकल ह्रीं सो:
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी |
(भुवनेश्वरी)
ॐ आदि ज्योत आनादि ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत - परम ज्योत मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रात: समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी | बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्न्पुर्णी दुधपूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया | १४ भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार | योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता |
ह्रीं
पंचम ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटी |
(छिन्नमस्ता)
सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया | काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द्र सूर में उपजी सुषुम्नी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लीन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या | पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी | देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी | चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ठ जाती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गोरखनाथ जी ने भाखी | छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्ट्न्ते आपो आप जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे | काल ना खाये | 
श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरो चनीये हूँ हूँ फट् स्वाह: |
षष्टम् ज्योति भैरवी प्रगटी |
(भैरवी)
ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटी, गले में माला मुण्डन की | अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खन्जर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवे पाताल, सातवे पाताल मध्ये परमतत्व परमतत्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल भैरवी, त्रिपुर भैरवी, समपत प्रदा भैरवी, कैलेश भैरवी, सिद्धा भैरवी, विध्वंसिनि भैरवी, चैतन्य भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, षटकुटा भैरवी, नित्या भैरवी | जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मंत्र मत्स्येन्द्रनाथ जी को सदा शिव ने कहायी | ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी अनन्त कोटि सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हाटे काल जन्जाल भैरवी अमंत्र बैकुण्ठ वासा | अमर लोक में हुवा निवासा |
"ॐ हस्त्रो हस्कलरो हस्त्रो:" |
सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटी |
(धूमावती)
ॐ पाताल निरन्जन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आई, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावंती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार थरै धरत्री थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि | डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी | जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाया जीया आकाश तेरा होये | धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहाँ न होती पूजा न पाती तहाँ न होती जात न जाती तब आये श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ आप भयी अतीत |
ॐ धूं: धूं: धूमावती फट् स्वाह: |
अष्ठम ज्योति बगलामुखी प्रगटी |
(बगलामुखी)
ॐ सौ सौ सुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पीला | सिंहासन पीले
ऊपर कौन बैसे सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बैसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी | कच्ची बच्ची काक - कुतीया - स्वान चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुग्दर मार, शत्रु ह्रदय पर स्वार तिसकी जिव्हा खिच्चै बाला | बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटन धरणी, अनन्त कोटि सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्द्र्सूर फिरे खण्डे खण्डे | बाला बगलामुखी नमो नमस्कार |
ॐ हृलीं ब्रह्मास्त्रायैं विदमहे स्तम्भनबाणायै
धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात्
नवमी ज्योति मातंगी प्रगटी |
(मातंगी)
ॐ गुरूजी शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ओंकार ॐकार में शिवम् शिवम् में शक्ति - शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर शशी अमिरस प्याला हाथ खड्ग नीली काया | बल्ला पर अस्वारी उग्र उन्मत मुद्राधारी, उद गुग्गुल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य मांसे घृत कुण्डे सर्वांगधारी | बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते तृप्यन्ते | ॐ मातंगी सुन्दरी, रुपवंती, कामदेवी, धनवंती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्न्दाती, मातंगी जाप मंत्र जपे काल का तुम काल को खाये | तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी करे |
ॐ ह्री क्लीं हूँ मातंग्यै फट् स्वाहा |
दसवीं ज्योति कमला प्रगटी |
(कमला)
ॐ अयोनी शंकर ॐकार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप | हाथ में सोने का कलश मुख से अभय मुद्रा | श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा | देवी देवत्या ने किया जय ओंकार | कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्त्र कमलों का किया हवन | कहे गोरख, मंत्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान | जिसकी तीन लोक में भया मान | कमला देवी के चरण कमल को आदेश |
ॐ ह्रीं क्लीं कमला देवी फट् स्वाह:
सुनो पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी
थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो | सिद्ध योग मरम जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका | योगी योग नित्य करे प्रात: उसे वरद भुवनेश्वरी माता | सिद्धासन सिद्ध, भया श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी | जोगी खड दर्शन को कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी | नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी | ॐकार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी | पाताल जोगन (कुण्डलिनी) गगन को चढ़ी, जहाँ पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी | आलस मोड़े, निन्द्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावंती करें | हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे | जो कमला देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे | जो दशविद्या का सुमिरण करे | पाप पुन्य से न्यारा रहे | योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवराते | मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जायें | इतना दस महाविद्या मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया | अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला, अवलगढ़ पर्वत पर बैठ श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी ने पढ़ कथ कर सुनाया श्री नाथजी गुरूजी को आदेश | आदेश |
ॐ शिव गोरक्ष योगी

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