संकट की इस घड़ी में जब चारो ओर कोरोना नामक महामारी का प्रकोप फैला हुआ है तो केवल माँ की ही शरण ग्रहण करे | वो ही इन संकटो से रक्षा करने वाली है | माँ के भक्तो के लिए प्रस्तुत है माँ बगलामुखी जी का माला मंत्र |
इस मंत्र का 108 बार पाठ करने से सभी प्रकार के संकटो से रक्षा होती है और माँ की कृपा प्राप्त होती है जिसका साधक को स्वयं अनुभव होगा |
साधक का दीक्षित होना आवश्यक है अन्यथा किसी भी प्रकार की हानि के लिए मै उत्तरदायी नहीं हूँ |
--:माँ बगलामुखी का माला मंत्र :--
ॐ नमो भगवति ॐ नमो वीरप्रतापविजयभगवति बगलामुखि मम सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय, ब्राह्मी मु द्रय मुद्रय, बुद्धिं विनाशय विनाशय, अपरबुद्धिं कुरु कुरु आत्माविरोधिनां शत्रुणां शिरो- ललाटं- मुखं- नेत्र- कर्ण- नासिकोरु- पद- अणुरेणु- दन्तोष्ठ -जिह्वा- तालु- गुह्य- गुद- कटि- जानू- सर्वांगेषु केशादिपादपर्यन्तं पादादिकेशपर् यन्तं स्तम्भय स्तम्भय, खें खीं मारय मारय, परमन्त्र- परयन्त्र- परतन्त्राणि छेदय छेदय, आत्ममन्त्रतन्त्राणि रक्ष रक्ष, ग्रहं निवारय निवारय, व्याधिं विनाशय विनाशय, दुःखं हर हर, दारिद्रयं निवारय- निवारय,सर्वमन्त्रस्वरूपिणी, सर्व तन्त्रस्वरूपिणी, सर्वशिल्पप्रयोगस्वरूपिणी, सर्वतत्वस्वरूपि णी, दुष्टग्रह भूतग्रह आकाशग्रह पाषाणग्रह सर्व चाण्डालग्रह यक्षकिन्नरकिम्पुरुषग्रह भूतप्रेतपिशाचानां शाकिनी डाकिनीग्रहाणां पूर्वदिशां बन्धय बन्धय, वार्तालि मां रक्ष रक्ष, दक्षिणदिशां बन्धय बन्धय, किरातवार्तालि मां रक्ष रक्ष, पश्चिमदिशां बन्धय बन्धय , स्वप्नवार्तालि मां रक्ष रक्ष, उत्तरदिशां बन्धय बन्धय, काली मां रक्ष रक्ष, ऊर्ध्वदिशं बन्धय-बन्धय, उग्रकालि मां रक्ष रक्ष, पातालदिशं बन्धय बन्धय , बगलापरमेश्वरि मां रक्ष रक्ष, सकलरोगान् विनाशय विनाशय, शत्रू पलायनाय पञ्चयोजनमध्ये राजजनस्त्रीवशतां कुरु कुरु , शत्रून् दह दह, पच पच, स्तम्भय स्तम्भय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, मम शत्रून् उच्चाटय उच्चाटय, हुम् फट् स्वाहा |श्रीं श्रीं ||
साधक का दीक्षित होना आवश्यक है अन्यथा किसी भी प्रकार की हानि के लिए मै उत्तरदायी नहीं हूँ |
ॐ नमो भगवति ॐ नमो वीरप्रतापविजयभगवति बगलामुखि मम सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय, ब्राह्मी मु द्रय मुद्रय, बुद्धिं विनाशय विनाशय, अपरबुद्धिं कुरु कुरु आत्माविरोधिनां शत्रुणां शिरो- ललाटं- मुखं- नेत्र- कर्ण- नासिकोरु- पद- अणुरेणु- दन्तोष्ठ -जिह्वा- तालु- गुह्य- गुद- कटि- जानू- सर्वांगेषु केशादिपादपर्यन्तं पादादिकेशपर् यन्तं स्तम्भय स्तम्भय, खें खीं मारय मारय, परमन्त्र- परयन्त्र- परतन्त्राणि छेदय छेदय, आत्ममन्त्रतन्त्राणि रक्ष रक्ष, ग्रहं निवारय निवारय, व्याधिं विनाशय विनाशय, दुःखं हर हर, दारिद्रयं निवारय- निवारय,सर्वमन्त्रस्वरूपिणी, सर्व तन्त्रस्वरूपिणी, सर्वशिल्पप्रयोगस्वरूपिणी, सर्वतत्वस्वरूपि णी, दुष्टग्रह भूतग्रह आकाशग्रह पाषाणग्रह सर्व चाण्डालग्रह यक्षकिन्नरकिम्पुरुषग्रह भूतप्रेतपिशाचानां शाकिनी डाकिनीग्रहाणां पूर्वदिशां बन्धय बन्धय, वार्तालि मां रक्ष रक्ष, दक्षिणदिशां बन्धय बन्धय, किरातवार्तालि मां रक्ष रक्ष, पश्चिमदिशां बन्धय बन्धय , स्वप्नवार्तालि मां रक्ष रक्ष, उत्तरदिशां बन्धय बन्धय, काली मां रक्ष रक्ष, ऊर्ध्वदिशं बन्धय-बन्धय, उग्रकालि मां रक्ष रक्ष, पातालदिशं बन्धय बन्धय , बगलापरमेश्वरि मां रक्ष रक्ष, सकलरोगान् विनाशय विनाशय, शत्रू पलायनाय पञ्चयोजनमध्ये राजजनस्त्रीवशतां कुरु कुरु , शत्रून् दह दह, पच पच, स्तम्भय स्तम्भय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, मम शत्रून् उच्चाटय उच्चाटय, हुम् फट् स्वाहा |श्रीं श्रीं ||
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