शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

श्री शिव शिवाष्टक स्त्रोत्र


जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख-सार हरे
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

जय रामेश्वर जय नागेश्वर वैद्यनाथ, केदार हरे,
मल्लिकार्जुन सोमनाथ, जय, महाकाल ओंकार हरे,
त्र्यम्बकेश्वर जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,
काशी-पति श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
नील-कण्ठ जय भूतनाथ जय मृत्युंजय अविकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

जय महेश जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुणातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,
जय भवकारक तारक, हारक पातक-दारक शिव शम्भो,
दीन दुःख हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाधरकी जय हो,
पार लगा दो भव सागर से, बनकर कर्णाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

जय मन भावन जय अति पावन, शोक नशावनशिव शम्भो,
विपद विदारन, अधम उधारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
मदन-दहन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन धन शिव शम्भो,
विवसन, विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

भोलानाथ कृपालु दयामय, औढरदानी शिव योगी,
निमिष मात्र में देते हैं, नवनिधि मन मानी शिव योगी, 
सरल हृदय, अतिकरुणा सागर, अकथ-कहानी शिव योगी,
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी,
स्वयम्‌ अकिंचन जनमनरंजन पर शिव परम उदार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

आशुतोष! इस मोह-मयी निद्रा से मुझे जगा देना,
विषम-वेदना, से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना,
रूप सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना,
दिव्य-ज्ञान- भंडार-युगल-चरणों की लगन लगा देना,
एक बार इस मन मंदिर में कीजे पद-संचार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

दानी हो दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो,
शक्तिमान हो दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो,
त्यागी हो दो इस असार-संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो,
परमपिता हो दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुणा पुकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

तुम बिन व्याकुल हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे,
चरण शरण की बाँह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे,
विरह व्यथित हूँ दीन दुःखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे,
आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमंत हरे,
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
॥ इति श्री शिवाष्टक स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

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