गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

माता बगलामुखी भगवती


महाविद्या बगलामुखी


दस महाविद्या में "माता बगलामुखी" भगवती का
आठवा स्वरूप है।
जिन्हें पीताम्बरा, श्री वगला, शत्रु दमना
जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता हैं ।

देवी, पीताम्बरा नाम से त्रि-भुवन में प्रसिद्ध है,
पीताम्बरा शब्द भी दो शब्दों के मेल से बना है,
पहला 'पीत' तथा दूसरा 'अम्बरा',
जिसका अभिप्राय हैं पीले रंग का अम्बर धारण करने वाली।
देवी को पीला रंग अत्यंत प्रिया है,
देवी पीले रंग के वस्त्र इत्यादि धारण करती है,
पीले फूलों की माला धारण करती है,
पीले रंग से देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं।
पञ्च तत्वों द्वारा संपूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ हैं,
जिनमें से पृथ्वी तत्व का सम्बन्ध पीले रंग से होने के कारण देवी को पिला रंग अत्यंत प्रिय हैं।
व्यष्टि रूप में शत्रुओं को नष्ट करने वाली तथा
समष्टि रूप में परमात्मा की संहार करने वाली देवी बगलामुखी हैं,
इनके भैरव महा मृत्युंजय हैं।
देवी की साधना दक्षिणाम्नायात्मक तथा
ऊर्ध्वाम्नाय दो पद्धतियों से कि जाती है,
उर्ध्वमना स्वरूप में देवी दो भुजाओं से युक्त तथा
दक्षिणाम्नायात्मक में चार भुजाये हैं।

देवी शक्ति साक्षात ब्रह्म-अस्त्र हैं,
जिसका संधान त्रिभुवन में किसी के द्वारा संभव नहीं हैं।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश देवी बगलामुखी में हैं।

स्वतंत्र तंत्र के अनुसार, सत्य युग में इस चराचर जगत को नष्ट करने वाला भयानक वातक्षोम (तूफान, घोर अंधी) आया। जिसके कारण समस्त प्राणी तथा स्थूल तत्वों के अस्तित्व पर संकट गहरा रहा था, सभी काल का ग्रास बनने जा रहे थे। संपूर्ण जगत पर संकट आया हुआ देखकर, जगत के पालन कर्ता श्री हरि भगवान विष्णु अत्यंत चिंतित हो गए तथा भगवान शिव के पास गए तथा उपस्थित समस्या के निवारण हेतु कोई उपाय पूछा।
भगवान शिव ने उन्हें बताया की शक्ति के अतिरिक्त कोई भी इस समस्या का समाधान करने में सक्षम नहीं हैं।
तदनंतर, भगवान विष्णु सौराष्ट्र प्रान्त में गए तथा हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर, अपनी सहायतार्थ देवी श्री विद्या महा त्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न करने हेतु तप करने लगे।
उस समय देवी श्री विद्या, सौराष्ट्र के एक हरिद्रा सरोवर में वास करती थी। भगवान विष्णु के तप से संतुष्ट हो श्री विद्या महा त्रिपुरसुंदरी,
बगलामुखी स्वरूप में उनके सनमुख अवतरित हुई,
जो पीत वर्ण से युक्त थीं तथा उनसे तप साधना करने का कारण ज्ञात किया। भगवान विष्णु द्वारा निवेदन करने पर देवी बगलामुखी तुरंत ही अपनी शक्तिओं का प्रयोग कर,
विनाशकारी तूफान या महाप्रलय को शांत किया या कहे तो स्तंभित किया, इस प्रकार उन्होंने सम्पूर्ण जगत की रक्षा की।
वैशाख शुक्ल अष्टमी के दिन देवी बगलामुखी का प्रादुर्भाव हुआ था।

देवी बगलामुखी स्तम्भन की पूर्ण शक्ति हैं, तीनों लोकों के प्रत्येक घोर विपत्ति से लेकर, सामान्य मनुष्य के किसी भी प्रकार विपत्ति स्तम्भन करने की पूर्ण शक्ति हैं। जैसे किसी स्थाई अस्वस्थता, निर्धनता समस्या देवी कृपा से ही स्तंभित होती हैं जिसके परिणामस्वरूप जातक स्वस्थ,
धन सम्पन्नता इत्यादि प्राप्त करता हैं।
देवी अपने भक्तों के शत्रुओं के पथ तथा बुद्धि भ्रष्ट कर,
उन्हें हर प्रकार से स्तंभित कर रक्षा करती हैं,
शत्रु अपने कार्य में कभी सफल नहीं हो पाता,
शत्रु का पूर्ण रूप से विनाश होता हैं।

देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नो से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं।
देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण युक्त है, देवी ने पिला वस्त्र तथा पीले फूलो की माला धारण की हुई है, देवी के अन्य आभूषण भी पीले रंग के ही हैं तथा अमूल्य रत्नों से जड़ित हैं। देवी, विशेषकर चंपा फूल, हल्दी की गाठ इत्यादि पीले रंग से सम्बंधित तत्वों की माला धारण करती हैं।
देवी, एक युवती के जैसी शारीरिक गठन वाली हैं, देखने में मनोहर तथा मंद मुस्कान वाली हैं। देवी ने अपने बायें हाथ से शत्रु या दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाये हुए हैं,
जिससे शत्रु अत्यंत भय-भीत हो रहा हैं।
कई स्थानों में देवी ने मृत शरीर या शव को अपना आसन बना रखा हैं तथा शव पर ही आरूढ़ हैं तथा दैत्य या शत्रु के जिह्वा को पकड़ रखा हैं।
देवी वचन या बोल-चाल से गलतियों तथा अशुद्धियों को निकल कर सही करती हैं।

बगलामुखी स्तोत्र के अनुसार देवी समस्त प्रकार के स्तंभन कार्यों हेतु प्रयोग में लायी जाती हैं जैसे, अगर शत्रु वादी हो तो गूंगा, छत्रपति हो तो रंक, दावानल या भीषण अग्नि कांड शांत करने हेतु, क्रोधी का क्रोध शांत करवाने हेतु, धावक को लंगड़ा बनाने हेतु, सर्व ज्ञाता को जड़ बनाने हेतु, गर्व युक्त के गर्व भंजन करने हेतु। तीव्र वर्षा या भीषण अग्नि कांड हो, देवी का साधक बड़ी ही सरलता से समस्त प्रकार के विपत्तियों का स्तंभन कर सकता हैं। बामा खेपा ने अपने माता के श्राद्ध कर्म में तीव्र वृष्टि का स्तंभन किया था। साथ ही, उग्र विघ्नों को शांत करने वाली, दरिद्रता का नाश करने वाली, भूपतियों के गर्व का दमन, मृग जैसे चंचल चित्त वालों के चित्त का भी आकर्षण करने वाली, मृत्यु का भी मरण करने में समर्थ हैं देवी बगलामुखी

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