सोमवार, 15 दिसंबर 2014

बहुउपयोगी यन्त्र-साधन::: भौमयन्त्र

बहुउपयोगी यन्त्र-साधन::: भौमयन्त्र


मुख्य उपयोगः- १.समस्त वन्ध्यादोष निवारण हेतु, २.पुत्र प्राप्ति हेतु,(ध्यातव्य है कि वन्ध्यादोष और पुत्रप्राप्ति में भेद है) ३.लड़का या लड़की के विवाह हेतु,४.कर्जमुक्ति हेतु,५.दरिद्रता निवारण हेतु,६.असाध्यरोगों के निवारण हेतु,७.वास्तुभूमिप्राप्ति हेतु,८.युद्ध में विजय पाने हेतु,९.स्त्रीसौभाग्य की रक्षा के लिए,१०.कुण्डली के मांगलिक दोष निवारण के लिए, ११.किसी उचित मनोकामना की पूर्ति हेतु।


ऊपर के यन्त्र में आप देख रहे हैं कि एक बड़े से त्रिकोण के भीतर इक्कीश छोटे- छोटे त्रिकोण एक विशिष्ट क्रम से सजाये गये हैं।इनमें तेरह उर्ध्व,और आठ अधःत्रिकोण हैं।इन सभी त्रिकोणों में नीचे दिये गये पञ्चाक्षर नाममन्त्रों को क्रम से प्रणवाग्रयुक्त सजादेना है;तभी यह यन्त्र पूर्ण होगा। चित्र बनाने की सुविधा के कारण मैंने इसे ऐसा ही रख दिया है।कोरलड्रॉ या पेन्ट के निपुण व्यक्ति इसे और भी सुन्दर रुप दे सकते हैं।मुझसे तो इतना ही बन पाया। आगे इसमें प्रयुक्त सभी नाममन्त्रों की सूची दिये देता हूँ।फिर इसका उपयोग और साधना-विधि पर प्रकाश डालूँगा।यहाँ मैं एक और बात स्पष्ट करना चाहता हूँ कि  विभिन्न लौकिक(सांसारिक)कार्यों की सफलता के लिये यह यन्त्र हजारों बार अनुभूत है।शायद ही कभी असफल हुआ हो;हुआ भी है तो प्रयोगकर्ता के आलस्य, बेवकूफी और लापरवाही से।आइये, पहले यन्त्र में प्रयुक्त होने वाले उन मन्त्रों की सूची देखें:-

१.ॐ मंगलाय नमः २.ॐ भूमिपुत्राय नमः ३.ॐ ऋणहर्त्रे नमः ४.ॐ धनप्रदाय नमः ५.ॐ स्थिरासनाय नमः ६.ॐ महाकामाय नमः 
७.ॐ सर्वकामविरोधकाय नमः, ८.ॐ लोहिताय नमः ९.ॐ लोहिताङ्गाय नमः १०.ॐ सामगानांकृपाकराय नमः ११.ॐ धरात्मजाय नमः १२.ॐ कुजाय नमः १३.ॐ भौमाय नमः १४.ॐ भूमिदाय नमः १५.ॐ भूमिनन्दनाय नमः १६. ॐ अंगारकाय नमः १७. ॐ यमाय नमः १८.ॐ सर्वरोगप्रहारकाय नमः 
१९. ॐ वृष्टिकर्त्रे नमः २०.ॐ सृष्टिहर्त्रे नमः २१.ॐ सर्वकामफलप्रदाय नमः – 

ये कुल इक्कीस नाममन्त्र हैं- पृथ्वीपुत्र मंगल के।कुछ नाम तो काफी प्रचलित और लोकश्रुत हैं,किन्तु कुछ नाम थोड़े शंकित करने वाले भी हैं।इन सभी नामों की गहराई में उतरने पर तो एक भारी भरकम ग्रन्थ तैयार हो जायेगा,जो यहाँ मेरा उद्देश्य नहीं है,और न आम आवश्यकता ही।यहाँ सिर्फ लोक कल्याणार्थ कुछ खास उपयोग पर ही प्रकाश डाल रहा हूँ।इसकी विधिवत साधना करके अनेक लाभ आप यथाशीघ्र प्राप्त कर सकते है।ऊपर वर्णित प्रयोगों के अतिरिक्त इसके और भी बहुत से रहस्यमय उपयोग हैं,जिन पर फिर कभी चर्चा होगी।जीवन में एक बार सुविधानुसार इस यन्त्र को सिद्ध करलें,फिर आवश्यकतानुसार किसी लोक कल्याणकारी कार्य में इसका उपयोग कर सकते हैं।साधना सिद्ध हो जाने के बाद, प्रयोग करने के लिए पुनः एक यन्त्र का निर्माण करना होगा- भोजपत्र या पीले सूती या रेशमी कपड़ें पर,या बाजार से तांबें के पत्तरों पर बने-बनाये यन्त्र को भी खरीद कर प्रयोग कर सकते हैं।प्रयोग के समय पहले की तरह विशेष साधना नहीं करनी पड़ती,मात्र कुछ घंटों की क्रिया से किसी को देने लायक यन्त्र तैयार होजाता है। आवश्यकता नहीं रहने पर भी वर्ष में एक बार दीपावली वगैरह शुभ अवसरों में एक छोटी साधना कर लेनी चाहिए ताकि यन्त्र साधने की शक्ति बनी रहे।

 इस यन्त्र की कुछ खास शर्तें :-
1.यन्त्र की अवमानना और दुरुपयोग न हो।

2.किसी को अनावश्यक परेशान करने के लिए यन्त्र का प्रयोग न किया जाय।

3.एक समय में, एक व्यक्ति, एक ही यन्त्र का, एक ही उद्देश्य से साधना-पूजा करें। जैसे मान लिया- पुत्रप्राप्ति के लिए यन्त्र-साधना कर रहे हैं।इस बीच घोर संकट से घिर गये,और आतुरता में उसी यन्त्र से दूसरी कामना कर बैठे।ऐसी स्थिति में यन्त्र निष्फल हो जायेगा,यानी दोनों में कोई कामना की पूर्ति नहीं होगी।

4.एक व्यक्ति एक यन्त्र की साधना एक उद्देश्य से कर रहा है,और समय पर उसकी मनोकामना पूरी हो गयी,जैसे पुत्रप्राप्ति के लिए साधना की गयी,तो पुत्रप्राप्त हो जाने के बाद यन्त्र बेकार नहीं हो गया,बल्कि विधिवत उद्यापन करके,पुनः दूसरी कामना का संकल्प लेकर उसी यन्त्र को साधते रह सकते हैं।जैसे- पहले पुत्र-कामना से साधे, अब धन-कामना से साध सकते हैं।यानी एक समय में एक कामना। इस प्रकार एक ही यन्त्र का अलग-अलग समय में अलग-अलग प्रयोग करके जीवन भर लाभ पाया जा सकता है।

5.यन्त्र शुद्ध सात्विक है,अतः मांसाहारी व्यक्ति भी जब तक इसकी आराधना कर रहें हों उन्हें मांसाहार विलकुल त्यागना होगा,अन्यथा यन्त्र की मर्यादा भंग होगी और यन्त्र निष्फल होगा।

6.तामसी आहार-विहार वाले व्यक्ति इस यन्त्र की साधना स्वयं कदापि न करें।उन्हें कोई लाभ नहीं होगा,हानि भले हो जाय।

7.सिद्ध किये हुए यन्त्र का प्रयोग कोई भी कर सकते हैं,इसके शर्तों और नियमों का ध्यान रखते हुए।

8.जन्म-मरण के अशौच को छोड़ कर,तथा स्त्रियों के रजोदर्शन के पांच दिनों की वर्जना को छोड़कर,शेष समय में कभी भी यन्त्र की पूजा बाधित नहीं होनी चाहिए।

9.अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि यन्त्र तीन महीने से एक वर्ष के अन्दर अपना प्रभाव अवश्य दिखा देता है,वशर्ते की उपासना में कोई त्रुटि न हो।

10.विशेषज्ञ द्वारा सिद्ध किये हुए यन्त्र का प्रयोग पुरुष-स्त्री कोई भी कर सकता है। इसमें लिंग वा जाति भेद नहीं है।प्रयोग करने की शर्तों का पालन करें-वस इतना ही ध्यान रखें।
11.यन्त्र साधना के साथ-साथ कुण्डली की स्थिति के अनुसार भी ग्रहशान्ति अवश्य करा लेनी चाहिए,क्यों कि कुण्डली के बाधक ग्रह यन्त्रसाधना में भी बाधक होंगे।

प्रथम साधना-सामग्रीः-
1.भौमयन्त्र लेखन हेतु पीतल या तांबे का परात,अनार के डंठल से बनायी गयी लेखनी,अष्टगन्ध(मलयगिरीचन्दन,रक्तचन्दन,केसर,कपूर,वंशलोचन,अगर,तगर,कस्तूरी का बीज)(चुंकि असली कस्तूरी आजकल एकदम दुर्लभ है,इसकारण लताकस्तूरी के बीजों का प्रयोग करना चाहिए),लालरंग में रंगा हुआ नया ऊनी आसन,लाल वस्त्र (धोती, गमछा,चादर),गंगाजल,रोली,सिन्दूर,अबीर,सुपारी,मौली,लाल फूल,पीला फूल, (ओड़हुल, गेंदा),धूना,गुगल,देवदारधूप,(अगरबत्ती नहीं),प्रसाद हेतु पेड़ा,छुहारा,गूड़,लौंग, छोटी इलाइची,अक्षत के लिए अरवाचावल(लालरंग या कुमकुम में रंगा हुआ),हल्दीचूर्ण, पंचामृत(दूध,दही,घी,गूड़,मधु),आम का पल्लव,पान पत्ता,रुद्राक्ष या रक्तचन्दन की माला, अखण्डदीप(घी का),रक्षादीप(तिलतेल का),माचिस,मिट्टी का दीया,मिट्टी का ढकना, आचमनी,लोटा,तस्तरी,कटोरी आदि पूजन पात्र।

नोटः-भौमयन्त्र की साधना क्रम में कुल मिलाकर १०८बार उक्त यन्त्र को लिखना है, और इक्कीश नाममन्त्रों में प्रत्येक का दश-दश हजार यानी २१×१०,०००=दोलाख दश हजार कुल मन्त्र जप करना है।साथ ही १०८बार पंचोपचार पूजन भी करना है।प्रत्येक बार(१०८बार)पूजन के बाद यन्त्रगायत्री का एक माला(१०८बार)जप भी करना है।साधना प्रारम्भ करने से पूर्व आदेश प्राप्ति हेतु गायत्री मन्त्र का १०,०००जप,तथा विघ्नविनाशक गणपति का १००० मन्त्र जप भी अनिवार्य है।आदेश प्राप्ति का कार्य सुविधानुसार कुछ पहले भी कर सकते हैं- इस संकल्प के साथ कि मैं अमुक कार्य हेतु भगवती गायत्री से आदेश चाहता हूँ।हाँ,वैसे व्यक्ति जो नित्य संध्या-अभ्यासी हैं, और गायत्री के सहस्रजापी हैं,उन्हें कुछ अतिरिक्त करने की आवश्यकता नहीं है।वे सीधे भौम यन्त्र की साधना प्रारम्भ कर सकते हैं।मूल साधना की कुल क्रिया को आप अपनी सुविधानुसार इक्कीश या इक्कतीस दिनों में विभाजित कर सकते हैं।

कार्य-प्रणाली की स्पष्टीः-१.यन्त्र को अष्टगन्ध से १०८बार लिखना-इसमें प्रतिबार करीब पन्द्रह मिनट समय लगेगा,२.प्रत्येक बार(१०८बार)यन्त्र का पंचोपचार पूजन करना,और मिटाना,तथा पुनः लिखना,३.इक्कीस त्रिकोणों में दिये गये सभी मन्त्रों का जप करना-कुल जप दोलाख,दशहजार करना है।प्रत्येक हजार में कम से कम बीस मिनट समय लगेगा।यानी २०मि.×२१०हजार=४२००मि.=७०घंटे,+ १०८बारलेखन,पूजन में ५४ घंटे, यानी कुलमिलाकर १२४घंटे,या इससे भी अधिक लग सकते हें।चार घंटे नित्य का कार्यक्रम रखें तो इक्कतीस दिनों का अनुष्ठान होगा।इस बीच पूर्णरुपेण अनुष्ठानिक नियम-संयम विधि का पालन करना अनिवार्य है।

मुहूर्त विचारः-अनुष्ठान प्रारम्भ करने के लिए मुहूर्त विचार के क्रम में ध्यातव्य है कि मंगल अपने उच्च यानि मकरराशि पर हों,अथवा अपने दोनों घरों में(मेष या वृश्चिक) कहीं हों- उन कालों में जो भी मंगलवार हो,रिक्ता, भद्रादि दोष रहित हो,गुरु-शुक्रादि अस्त,बाल,वृद्धादि दोष रहित हों- इन सभी योगों के संयोग में अनुष्ठान प्रारम्भ करना चाहिए।मंगल सम्बन्धी कार्य अपराह्न में वर्जित है,यानी दोपहर बारह वजे तक क्रिया समाप्त कर लेनी चाहिए।पुनः अगले दिन भी इसी प्रकार करें।

साधना की व्यावहारिक बातेः-
नित्य-कर्म-पूजा-प्रकाश(गीताप्रेस) आदि विभिन्न पुस्तकों में संकल्प सहित,प्राण-प्रतिष्ठा-मन्त्र और विनियोग दिया रहता है। किसी भी पूजा की संक्षिप्त विधि भी दी हुयी रहती है।इसके लिए उक्त पुस्तक का सहयोग लेना श्रेयस्कर होगा।अनुष्ठान सम्पन्न होजाने के बाद संक्षिप्त रुप से एक हजार हवन भी कर लेना चाहिए।हो सके तो पांच ब्राह्मण और सात भिखारियों को भोजन भी करा दें।इससे अनुष्ठान में काफी बल मिलता है।ध्यातव्य है कि प्रत्येक बार यन्त्र लेखन,पूजन के पश्चात् विसर्जन और प्रक्षालन भी करना है।प्रक्षालित किये गये जल(धोवन)को जहाँ तहां न फेंके।खैर का वृक्ष कहीं पास में हो तो उसकी जड़ मे डाल देना सर्वोत्तम है।न उपलब्ध हो तो किसी पौधे में या नदी तालाब में डाल सकते हैं,किन्तु तुलसी के पौधे में न डालें।

प्रयोग कब-कैसे -मूलतः प्रयोग विधि सबके लिए समान है,किन्तु कार्य भेद से थोड़ा अन्तर है।
1) सन्तान की कामना से यदि उपासना करनी हो तो पति-पत्नी दोनों को एकत्र पूजा करनी होगी,तभी सही लाभ मिलेगा।किसी एक के करने से लाभ मिलने वाले समय में अन्तर आयेगा।यानी फल में कमी आयेगी।हाँ,मासिक धर्म के पांच वर्जित दिनों में पुरुष अकेले ही यन्त्र की पूजा करेगा,इसे नियम में ऋटि नहीं मानी जायेगी।
2) परिवार में सुख-शान्ति-समृद्धि के लिए उचित है कि परिवार का हर सदस्य पूजा करे,क्यों कि उसका लाभ सामूहिक है,अतः साधना भी सामूहिक होनी चाहिए।हाँ, परिवार के सभी लोग एक साथ बैठ कर ही साधना करें यह आवश्यक नहीं,किन्तु जहाँ तक हो सके प्रयास करें कि पूजा एक साथ ही हो। सामूहिक पूजा और व्यक्तिगत पूजा में गहरा भेद है।पारिवारिक यन्त्र-साधना का प्रसाद-वितरण भी परिवारिक स्तर पर होना चाहिए।किसी बाहरी व्यक्ति(कुटुम्ब,मित्र आदि)को भी नहीं देना है,अन्यथा आपके लाभ में वह भी हिस्सेदार बन जायेगा।
3)विवाह या मांगलिक दोष निवारण के उद्देश्य से यन्त्र साधना करनी हो तो जिसे जरुरत है वही(लड़का/लड़की)पूजा करे,किसी और को नहीं करनी है।यहाँ तक कि उसका प्रसाद भी कोई और को नहीं देना है।
4)वास्तुभूमिप्राप्ति के लिए भी उचित है कि पति-पत्नी मिल कर पूजा करें।सामूहिक परिवार हो तो सामूहिक पूजा करें,ताकि लाभ शीघ्र मिल सके।
5)विशेषज्ञ द्वारा सिद्ध किया हुआ यन्त्र मंगवाकर,किसी शुभ मुहूर्त में मंगलवार से इसका अनुष्ठान प्रारम्भ किया जा सकता है।नित्य की यन्त्र पूजा में मात्र पन्द्रह मिनट समय लगता है।साथ ही एकमाला(१०८बार)मन्त्र जप करने में दश मिनट,यानी कुल पचीस मिनट की नित्य क्रिया है।
6)यन्त्र-पूजा में सामान्य पूजन सामग्री की ही आवश्यकता है।इस पर आगे प्रकाश डाला जा रहा है।

मंगलयन्त्र की नित्य पूजाविधिः-नवीन लाल वस्त्र पहन कर लाल रंग के उनी आसन पर पूर्वाभिमुख पति-पत्नी बैठ कर पूजन करें।पूजा के समय पति के दाहिने भाग में ही पत्नी को बैठना चाहिए।सिद्ध यन्त्र को तांबे की थाल में लाल वस्त्र बिछा कर रख दें,या सिंहासन,चौकी,पीढ़ा आदि पर लाल कपड़े का आसन देकर यन्त्र को खड़ा भी रखा जा सकता है।यन्त्र को पोंछने के लिए और पूजा के बाद ढकने के लिए भी अलग-अलग, एक-एक लाल वस्त्र रखना जरुरी है।इन तीनों वस्त्रों को महीने में एक बार बदल देना चाहिए।नित्य संकल्प कर सकें तो बड़ी अच्छी बात है,अन्यथा मानसिक संकल्प से भी काम चल सकता है।वस श्रद्धा,भक्ति,और दृढ़ विश्वास चाहिए।

अन्य आवश्यक सामग्रीः-कुमकुम,लाल रंगा हुआ अरवाचावल,रोली,अबीर, सिन्दूर,मौली धागा,लालचन्दन का चूर्ण,सफेद चन्दन का चूर्ण,हल्दी चूर्ण,लाल फूल,पीला फूल,दीपक। प्रसाद हेतु गूड़ अनिवार्य है,साथ ही छुहारा,किसमिस, बादाम,आदि कुछ भी यथाशक्ति रख सकते हैं। देवदार धूप(अगरबत्ती नहीं)क्यों कि अगरबत्ती बांस की तिल्लियों पर बनी होती है,जिससे सन्तान की हानि होती है।आजकल हरिदर्शन,गायत्रीदर्शन,आदि बहुत तरह के धूपबत्ती बाजार में उपलब्ध हैं।किसी का भी प्रयोग किया जा सकता है।)मुख शुद्धि के लिए नित्य पान पत्ता जरुरी नहीं है,चढ़ाते हैं तो अच्छा है।न हो तो भी कोई बात नहीं।किन्तु लौंग-इलाइची अवश्य चढ़ायें।पूजा के बाद कपूर की आरती दिखाना चाहिए।नित्य श्रद्धानुसार कुछ दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।महीने भर के एकत्र पैसे को किसी भिखारी या ब्राह्मण को दिया जा सकता है।हो सके तो सप्ताह में एक दिन-मंगलवार को विशेष प्रसाद के रुप में गूड़-घी में बनाया हुआ हलवा या खजूर अवश्य चढ़ा दें।पूजा की समाप्ति पर विनीत भाव से प्रार्थना करें- 
हे यन्त्रदेवता!आप मुझ पर प्रसन्न होकर यथाशीघ्र मेरी मनोकामना पूरी करें/मुझे सन्तान दें/मुझे योग्य पति/ पत्नी प्रदान करें/मुझे शत्रुपर विजय दिलावें/आवासीय भूमि की व्यवस्था करें....आदि।

धनागम विधि

धनागम विधि 
धन की कामना किसे नहीं है?सामान्य गृहस्थ से लेकर चीवरधारी सन्यासी तक धन की प्यास से तृषित हैं।बहुत लोग धन के ऋणात्मक बोझ से ग्रसित भी हैं।ऐसे लोगों के कल्याण हेतु एक शतानुभूत साधना-प्रयोग प्रस्तुत कर रहा हूँ। मलमास,खरमास वर्जित किसी शुद्धमास के शुक्लपक्ष के किसी भद्रादि रहित मंगलवार के द्वितीयप्रहर से इस अनुष्ठान को प्रारम्भ कर सकते हैं। प्रारम्भ में साक्षी दीप प्रज्ज्वलित करके,जल,अक्षत, सुपारी,द्रव्यादि युक्त संकल्प करके सात बार इस स्तोत्र का पाठ करें,और पुनः नित्य इस क्रिया को करते रहें- कम से कम एक बर्ष तक नियमित पाठ करने से स्तोत्र सिद्ध होकर चमत्कारी फल दिखाता है।इसका दोहरा प्रभाव है- ऋण से मुक्ति मिलती है, और धन के आगमन का नया स्रोत्र खुलता है।इस पाठ के साथ-साथ सिद्ध किया हुआ ऋणमोचक-धनदा मंगलयन्त्र की नित्य पूजा भी की जाय तो अद्भुत लाभ होता है। मंगलयन्त्र की साधना विधि मैं अपने विगत लेख में प्रस्तुत कर चुका हूँ।जो व्यक्ति स्वयं यन्त्र साधना न कर सकें, वे चाहें तो मेरे यहाँ से समुचित शुल्क अदा कर मंगवा सकते हैं।सिद्धयन्त्र का दक्षिणा 5100रु.और डाक खर्च करीब 100रु.अग्रिम भेजने पर रिजस्टर्डपोस्ट से भेजा जा सकता है।
॥ऋणमोचक-धनदायक मंगल स्तोत्र॥
मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद:।
स्थिरासनो महाकाय: सर्वकामविरोधक: ॥१॥
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकर:।
धरात्मज: कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दन: ॥२॥
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:।
वृष्टे: कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद: ॥३॥
एतानि कुजनामानि नित्यं य: श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥४॥
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥५॥
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभि:।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पापि भवति क्वचित् ॥६॥
अङ्गारक महाभाग भगवन् भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय: ॥७॥
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये चापमृत्यव:।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥८॥
अतिवक्रदुरारार्ध्य भोगमुक्तजितात्मन:।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥९॥
विरञ्चि शक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्वेन ग्रहराजो महाबल: ॥१०॥
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गत:।
ऋणदारिद्रयदु:खेन शत्रुणां च भयात्तत: ॥११॥
एभिर्द्वादशभि: श्लोकैर्य: स्तौति च धरासुतम्।
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥१२॥
॥इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्तं ऋणमोचन मंगल स्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र

ॐ श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र

ॐ अस्य श्री बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मन्त्रस्य सप्त
ऋषिः ऋषयः, मातृका छंदः, श्री बटुक भैरव
देवता, ममेप्सित कामना सिध्यर्थे विनियोगः.

ॐ काल भैरु बटुक भैरु ! भूत भैरु ! महा भैरव
महा भी विनाशनम देवता सर्व सिद्दिर्भवेत .
शोक दुःख क्षय करं निरंजनम, निराकरम
नारायणं, भक्ति पूर्णं त्वं महेशं. सर्व
कामना सिद्दिर्भवेत. काल भैरव, भूषण वाहनं
काल हन्ता रूपम च, भैरव गुनी.
महात्मनः योगिनाम महा देव स्वरूपं. सर्व
सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु ! महा भैरव
महा भय विनाशनम देवता. सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ त्वं ज्ञानं, त्वं ध्यानं, त्वं योगं, त्वं तत्त्वं, त्वं
बीजम, महात्मानम, त्वं शक्तिः, शक्ति धारणं
त्वं महा देव स्वरूपं. सर्व सिद्धिर्भवेत. ॐ काल भैरु,
बटुक भैरु, भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता. सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ कालभैरव ! त्वं नागेश्वरम नाग हारम च त्वं वन्दे
परमेश्वरम, ब्रह्म ज्ञानं, ब्रह्म ध्यानं, ब्रह्म योगं,
ब्रह्म तत्त्वं, ब्रह्म बीजम महात्मनः, ॐ काल भैरु,
बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
त्रिशूल चक्र, गदा पानी पिनाक धृक ! ॐ काल
भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं विना गन्धं, विना धूपम,
विना दीपं, सर्व शत्रु विनाशनम सर्व
सिद्दिर्भवेत विभूति भूति नाशाय, दुष्ट क्षय
कारकम, महाभैवे नमः. सर्व दुष्ट विनाशनम सेवकम
सर्व सिद्धि कुरु. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं महा-ज्ञानी , त्वं महा-
ध्यानी, महा-योगी, महा-बलि, तपेश्वर !
देही में सर्व सिद्धि . त्वं भैरवं भीम नादम च
नादनम. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव
महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ! अमुकम मारय मारय,
उच्चचाटय उच्चचाटय, मोहय मोहय, वशं कुरु कुरु.
सर्वार्थ्कस्य सिद्धि रूपम, त्वं महा कालम ! काल
भक्षणं, महा देव स्वरूपं त्वं. सर्व सिद्ध्येत. ॐ काल
भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं गोविन्दं गोकुलानंदम !
गोपालं गो वर्धनम धारणं त्वं! वन्दे परमेश्वरम.
नारायणं नमस्कृत्य, त्वं धाम शिव रूपं च. साधकं
सर्व सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं राम लक्ष्मणं, त्वं श्रीपतिम
सुन्दरम, त्वं गरुड़ वाहनं, त्वं शत्रु हन्ता च, त्वं यमस्य
रूपं, सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु. ॐ काल भैरु, बटुक
भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता!
सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं ब्रह्म विष्णु महेश्वरम, त्वं जगत
कारणं, सृस्ती स्तिथि संहार कारकम रक्त बीज
महा सेन्यम, महा विद्या, महा भय विनाशनम .
ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय
विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं आहार मध्य, मांसं च, सर्व दुष्ट
विनाशनम, साधकं सर्व सिद्धि प्रदा.
ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं अघोर अघोर, महा अघोर,
सर्व अघोर, भैरव काल ! ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत
भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं, ॐ आं क्लीं क्लीं क्लीं, ॐ आं
क्रीं क्रीं क्रीं, ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं, रूं रूं रूं, क्रूम क्रूम
क्रूम, मोहन ! सर्व सिद्धि कुरु कुरु. ॐ आं
ह्रीं ह्रीं ह्रीं अमुकम उच्चचाटय उच्चचाटय, मारय
मारय, प्रूम् प्रूम्, प्रें प्रें , खं खं, दुष्टें, हन हन अमुकम
फट स्वाहा, ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ बटुक बटुक योगं च बटुक नाथ महेश्वरः. बटुके वट
वृक्षे वटुकअं प्रत्यक्ष सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु बटुक भैरु
भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्दयेत.
ॐ कालभैरव, शमशान भैरव, काल रूप कालभैरव !
मेरो वैरी तेरो आहार रे ! काडी कलेजा चखन
करो कट कट. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव
महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ नमो हँकारी वीर ज्वाला मुखी ! तू दुष्टें बंध
करो बिना अपराध जो मोही सतावे, तेकर
करेजा चिधि परे, मुख वाट लोहू आवे. को जाने?
चन्द्र सूर्य जाने की आदि पुरुष जाने. काम रूप
कामाक्षा देवी. त्रिवाचा सत्य फुरे,
ईश्वरो वाचा . ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्दयेत.
ॐ कालभैरव त्वं डाकिनी शाकिनी भूत
पिसाचा सर्व दुष्ट निवारनम कुरु कुरु साधका-
नाम रक्ष रक्ष. देही में ह्रदये सर्व सिद्धिम. त्वं
भैरव भैरवीभयो, त्वं महा भय विनाशनम कुरु . ॐ
काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय
विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. पश्चिम दिशा में सोने का मठ, सोने
का किवार, सोने का ताला, सोने की कुंजी,
सोने का घंटा, सोने की संकुली.
पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.
दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. उत्तर दिशा में रूपे का मठ, रूपे
का किवार, रूपे का ताला,रूपे की कुंजी, रूपे
का घंटा, रूपे की संकुली. पहली संकुली अष्ट
कुली नाग को बांधो. दूसरी संकुली अट्ठारह
कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे
का किवार, तामे का ताला,तामे की कुंजी,
तामे का घंटा, तामे की संकुली.
पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.
दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ,
तामे का किवार,
अस्थि का ताला,अस्थि की कुंजी,
अस्थि का घंटा, अस्थि की संकुली.
पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.
दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं आकाशं, त्वं पातालं, त्वं
मृत्युलोकं, चतुर भुजम, चतुर मुखं, चतुर बाहुम, शत्रु
हन्ता त्वं भैरव ! भक्ति पूर्ण कलेवरम. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! तुम जहाँ जहाँ जाहू, जहाँ दुश्मन
बेठो होए, तो बैठे को मारो, चालत होए
तो चलते को मारो, सोवत होए तो सोते
को मरो, पूजा करत होए तो पूजा में मारो,
जहाँ होए तहां मरो वयाग्रह ले भैरव दुष्ट
को भक्शो. सर्प ले भैरव दुष्ट को दसो. खडग ले
भैरव दुष्ट को शिर गिरेवान से मारो. दुष्तन
करेजा फटे. त्रिशूल ले भैरव शत्रु चिधि परे. मुख
वाट लोहू आवे. को जाने? चन्द्र सूरज जाने
की आदि पुरुष जाने. कामरूप कामाक्षा देवी.
त्रिवाचा सत्य फुरे मंत्र ईश्वरी वाचा. ॐ काल
भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं. वाचा चुके उमा सूखे, दुश्मन मरे
अपने घर में. दुहाई भैरव की. जो मूर वचन झूठा होए
तो ब्रह्म का कपाल टूटे, शिवजी के तीनो नेत्र
फूटें. मेरे भक्ति, गुरु की शक्ति फुरे मंत्र
ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं.भूतस्य भूत नाथासचा,भूतात्म
ा भूत भावनः, त्वं भैरव सर्व सिद्धि कुरु कुरु. ॐ
काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय
विनाशनम देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं ज्ञानी, त्वं ध्यानी, त्वं
योगी, त्वं जंगम स्थावरम त्वं सेवित सर्व काम
सिद्धिर भवेत्. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं वन्दे परमेश्वरम, ब्रह्म रूपम,
प्रसन्नो भव. गुनी महात्मानं महादेव स्वरूपं सर्व
सिद्दिर भवेत्.

प्रयोग :
१. सायंकाल दक्षिणाभिमुख होकर पीपल
की डाल वाम हस्त में लेकर, नित्य २१ बार पाठ
करने से शत्रु क्षय होता है.
२. रात्रि में पश्चिमाभिमुख होकर उपरोक्त
क्रिया सिर्फ पीपल की डाल दक्षिण हस्त में
लेकर पुष्टि कर्मों की सिद्धि प्राप्त होती है,
२१ बार जपें.
३. ब्रह्म महूर्त में पश्चिमाभिमुख तथा दक्षिण हस्त
में कुश की पवित्री लेकर ७ पाठ करने से समस्त
उपद्रवों की शांति होती है.