❄बगलामुखी कवच❄
यह कवच विश्वसारोद्धार तन्त्र से लिया गया है। पार्वती जी के द्वारा भगवान शिव से पूछे जाने पर भगवती बगला के कवच के विषय में प्रभु वर्णन करते हैं कि देवी बगला शत्रुओं के कुल के लिये जंगल में लगी अग्नि के समान हैं। वे साम्रज्य देने वाली और मुक्ति प्रदान करने वाली हैं।
भगवती बगलामुखी के इस कवच के विषय में बहुत कुछ कहा गया है। इस कवच के पाठ से अपुत्र को धीर, वीर और शतायुष पुत्र की प्राप्ति होति है और निर्धन को धन प्राप्त होता है। महानिशा में इस कवच का पाठ करने से सात दिन में ही असाध्य कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं। मक्खन को इस कवच से अभिमन्त्रित करके यदि बन्धया स्त्री को खिलाया जाये, तो वह पुत्रवती हो जाती है। इसके पाठ व नित्य पूजन से मनुष्य बृहस्पति के समान हो जाता है, शत्रओं के लिये यम के समान हो जाता है। मां बगला के प्रसाद से उसकी वाणी गद्य-पद्यमयी हो जाती है । उसके गले से कविता लहरी का प्रवाह होने लगता है।
❄इस कवच का पुरश्चरण एक सौ ग्यारह पाठ करने से होता है, बिना पुरश्चरण के इसका उतना फल प्राप्त नहीं होता।
❄इस कवच को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर पुरुष को दाहिने हाथ में व स्त्री को बायें हाथ में धारण करना चाहिये।
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❄ ध्यान ❄
सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीताशुकोल्लासिनीम् ।
हेमाभांगरुचिं शशांकमुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम् ।।
हस्तैर्मुदगर पाशवज्ररसनाः संबिभ्रतीं भूषणैः।
व्याप्तागीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत्।।
❄विनियोगः❄
ॐ अस्य श्रीबगलामुखीब्रह्मास्त्रमन्त्रकवचस्य भैरव ऋषिः, विराट् छन्दः श्रीबगलामुखी देवता, क्लीं बीजम्, ऐं शक्तिः, श्रीं कीलकं, मम परस्य च मनोभिलाषितेष्टकार्यसिद्धये विनियोगः ।
❄ऋषि-न्यास❄
शिरसि भैरव ऋषये नमः ।
मुखे विराट छन्दसे नमः ।
हृदि बगलामुखीदेवतायै नमः ।
गुह्ये क्लीं बीजाय नमः ।
पादयो ऐं शक्तये नमः ।
सर्वांगे श्रीं कीलकाय नमः ।
**करन्यास**
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
❄हृदयादि न्यास❄
ॐ ह्रां हृदयाय नमः ।
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ ह्रूं शिखायै वषट् ।
ॐ ह्रैं कवचाय हुम ।
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ ह्रः अस्त्राय फट् ।
❄मन्त्रोद्धारः❄
ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय मामैश्वर्याणि देहि देहि, शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय साधय ह्रीं स्वाहा।
❄❄कवच❄❄
शिरो मे पातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातु ललाटकम् ।
सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्री बगलानने ।।1।।
श्रुतौ मम् रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् ।
पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।।2।।
देहि द्वन्द्वं सदा जिहवां पातु शीघ्रं वचो मम ।
कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।।3।।
कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम ।
मायायुक्ता यथा स्वाहा हृदयं पातु सर्वदा ।।4।।
अष्टाधिकचत्वारिंशदण्डाढया बगलामुखी ।
रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेऽरण्ये सदा मम ।।5।।
ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु ।
मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।।6।।
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलाऽवतु ।
मुखिवर्णद्वयं पातु लिगं मे मुष्कयुग्मकम् ।।7।।
जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम् ।
वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी ।।8।।
जंघायुग्मे सदापातु बगला रिपुमोहिनी ।
स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रय मम ।।9।।
जिहवावर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च ।
पादोर्ध्वं सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम ।।10।।
विनाशयपदं पातु पादांगुर्ल्योनखानि मे ।
ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे ।।11।।
सर्वागं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मेऽवतु ।
ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।।12।।
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेऽवतु ।
कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।।13।।
वाराही च उत्तरे पातु नारसिंही शिवेऽवतु ।
ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदाऽवतु ।।14।।
इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः ।
राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः ।।15।।
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु ।
द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरणभूषिताः ।।16।।
योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम ।
फलश्रुति
इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।।17।।
श्रीविश्वविजयं नाम कीर्तिश्रीविजयप्रदाम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं धीरं शूरं शतायुषम् ।।18।।
निर्धनो धनमाप्नोति कवचास्यास्य पाठतः ।
जपित्वा मन्त्रराजं तु ध्यात्वा श्री बगलामुखीम् ।।19।।
पठेदिदं हि कवचं निशायां नियमात् तु यः ।
यद् यत् कामयते कामं साध्यासाध्ये महीतले ।।20।।
तत् तत् काममवाप्नोति सप्तरात्रेण शंकरि ।
गुरुं ध्यात्वा सुरां पीत्वा रात्रो शक्तिसमन्वितः ।।21।।
कवचं यः पठेद् देवि तस्यासाध्यं न किञ्चन ।
यं ध्यात्वा प्रजपेन्मन्त्रं सहस्त्रं कवचं पठेत् ।।22।।
त्रिरात्रेण वशं याति मृत्योः तन्नात्र संशयः ।
लिखित्वा प्रतिमां शत्रोः सतालेन हरिद्रया ।।23।।
लिखित्वा हृदि तन्नाम तं ध्यात्वा प्रजपेन् मनुम् ।
एकविंशददिनं यावत् प्रत्यहं च सहस्त्रकम् ।।24।।
जपत्वा पठेत् तु कवचं चतुर्विंशतिवारकम्।
संस्तम्भं जायते शत्रोर्नात्र कार्या विचारणा।।25।।
विवादे विजयं तस्य संग्रामे जयमाप्नुयात् ।
श्मशाने च भयं नास्ति कवचस्य प्रभावतः ।।26।।
नवनीतं चाभिमन्त्रय स्त्रीणां दद्यान्महेश्र्वरि ।
वन्ध्यायां जायते पुत्रो विद्याबलसमन्वितः ।।27।।
श्मशानांगारमादाय भौमे रात्रौ शनावथ ।
पादोदकेन स्पृष्ट्वा च लिखेत् लोहशलाकया ।।28।।
भूमौ शत्रोः स्वरुपं च हृदि नाम समालिखेत् ।
हस्तं तद्धृदये दत्वा कवचं तिथिवारकम् ।।29।।
ध्यात्वा जपेन् मन्त्रराजं नवरात्रं प्रयत्नतः ।
म्रियते ज्वरदाहेन दशमेंऽहनि न संशयः ।।30।।
भूर्जपत्रेष्विदं स्तोत्रमष्टगन्धेन संलिखेत् ।
धारयेद् दक्षिणे बाहौ नारी वामभुजे तथा ।।31।।
संग्रामे जयमप्नोति नारी पुत्रवती भवेत् ।
सम्पूज्य कवचं नित्यं पूजायाः फलमालभेत् ।।32।।
ब्रह्मास्त्रादीनि शस्त्राणि नैव कृन्तन्ति तं जनम् ।
वृहस्पतिसमो वापि विभवे धनदोपमः ।।33।।
कामतुल्यश्च नारीणां शत्रूणां च यमोपमः ।
कवितालहरी तस्य भवेद् गंगाप्रवाहवत् ।।34।।
गद्यपद्यमयी वाणी भवेद् देवी प्रसादतः ।
एकादशशतं यावत् पुरश्चरणमुच्यते ।।35।।
पुरश्चर्याविहीनं तु न चेदं फलदायकम् ।
न देयं परशिष्येभ्यो दुष्टेभ्यश्च विशेषतः ।।36।।
देयं शिष्याय भक्ताय पञ्चत्वं चान्यथाऽऽप्नुयात् ।
इदं कवचमज्ञात्वा भजेद् यो बगलामुखीम् ।।37।।
शतकोटिं जपित्वा तु तस्य सिद्धिर्न जायते ।
दाराढयो मनुजोऽस्य लक्षजपतः प्राप्नोति सिद्धिं परां ।।38।।
विद्यां श्रीविजयं तथा सुनियतं धीरं च वीरं वरम् ।
ब्रह्मास्त्राख्यमनुं विलिख्य नितरां भूर्जेऽष्टगन्धेन वै ।।39।।
❄धृत्वा राजपुरं व्रजन्ति खलु ते दासोऽस्ति तेषां नृपः ।
❄जय जय श्रीविश्वसारोद्धारतन्त्रे पार्वतीश्वरसंवादे
बगलामुखी कवचम सम्पूर्णं।।
गुरुवार, 25 दिसंबर 2014
सोमवार, 15 दिसंबर 2014
बहुउपयोगी यन्त्र-साधन::: भौमयन्त्र
बहुउपयोगी यन्त्र-साधन::: भौमयन्त्र
मुख्य उपयोगः- १.समस्त वन्ध्यादोष निवारण हेतु, २.पुत्र प्राप्ति हेतु,(ध्यातव्य है कि वन्ध्यादोष और पुत्रप्राप्ति में भेद है) ३.लड़का या लड़की के विवाह हेतु,४.कर्जमुक्ति हेतु,५.दरिद्रता निवारण हेतु,६.असाध्यरोगों के निवारण हेतु,७.वास्तुभूमिप्राप्ति हेतु,८.युद्ध में विजय पाने हेतु,९.स्त्रीसौभाग्य की रक्षा के लिए,१०.कुण्डली के मांगलिक दोष निवारण के लिए, ११.किसी उचित मनोकामना की पूर्ति हेतु।
ऊपर के यन्त्र में आप देख रहे हैं कि एक बड़े से त्रिकोण के भीतर इक्कीश छोटे- छोटे त्रिकोण एक विशिष्ट क्रम से सजाये गये हैं।इनमें तेरह उर्ध्व,और आठ अधःत्रिकोण हैं।इन सभी त्रिकोणों में नीचे दिये गये पञ्चाक्षर नाममन्त्रों को क्रम से प्रणवाग्रयुक्त सजादेना है;तभी यह यन्त्र पूर्ण होगा। चित्र बनाने की सुविधा के कारण मैंने इसे ऐसा ही रख दिया है।कोरलड्रॉ या पेन्ट के निपुण व्यक्ति इसे और भी सुन्दर रुप दे सकते हैं।मुझसे तो इतना ही बन पाया। आगे इसमें प्रयुक्त सभी नाममन्त्रों की सूची दिये देता हूँ।फिर इसका उपयोग और साधना-विधि पर प्रकाश डालूँगा।यहाँ मैं एक और बात स्पष्ट करना चाहता हूँ कि विभिन्न लौकिक(सांसारिक)कार्यों की सफलता के लिये यह यन्त्र हजारों बार अनुभूत है।शायद ही कभी असफल हुआ हो;हुआ भी है तो प्रयोगकर्ता के आलस्य, बेवकूफी और लापरवाही से।आइये, पहले यन्त्र में प्रयुक्त होने वाले उन मन्त्रों की सूची देखें:-
१.ॐ मंगलाय नमः २.ॐ भूमिपुत्राय नमः ३.ॐ ऋणहर्त्रे नमः ४.ॐ धनप्रदाय नमः ५.ॐ स्थिरासनाय नमः ६.ॐ महाकामाय नमः
७.ॐ सर्वकामविरोधकाय नमः, ८.ॐ लोहिताय नमः ९.ॐ लोहिताङ्गाय नमः १०.ॐ सामगानांकृपाकराय नमः ११.ॐ धरात्मजाय नमः १२.ॐ कुजाय नमः १३.ॐ भौमाय नमः १४.ॐ भूमिदाय नमः १५.ॐ भूमिनन्दनाय नमः १६. ॐ अंगारकाय नमः १७. ॐ यमाय नमः १८.ॐ सर्वरोगप्रहारकाय नमः
१९. ॐ वृष्टिकर्त्रे नमः २०.ॐ सृष्टिहर्त्रे नमः २१.ॐ सर्वकामफलप्रदाय नमः –
ये कुल इक्कीस नाममन्त्र हैं- पृथ्वीपुत्र मंगल के।कुछ नाम तो काफी प्रचलित और लोकश्रुत हैं,किन्तु कुछ नाम थोड़े शंकित करने वाले भी हैं।इन सभी नामों की गहराई में उतरने पर तो एक भारी भरकम ग्रन्थ तैयार हो जायेगा,जो यहाँ मेरा उद्देश्य नहीं है,और न आम आवश्यकता ही।यहाँ सिर्फ लोक कल्याणार्थ कुछ खास उपयोग पर ही प्रकाश डाल रहा हूँ।इसकी विधिवत साधना करके अनेक लाभ आप यथाशीघ्र प्राप्त कर सकते है।ऊपर वर्णित प्रयोगों के अतिरिक्त इसके और भी बहुत से रहस्यमय उपयोग हैं,जिन पर फिर कभी चर्चा होगी।जीवन में एक बार सुविधानुसार इस यन्त्र को सिद्ध करलें,फिर आवश्यकतानुसार किसी लोक कल्याणकारी कार्य में इसका उपयोग कर सकते हैं।साधना सिद्ध हो जाने के बाद, प्रयोग करने के लिए पुनः एक यन्त्र का निर्माण करना होगा- भोजपत्र या पीले सूती या रेशमी कपड़ें पर,या बाजार से तांबें के पत्तरों पर बने-बनाये यन्त्र को भी खरीद कर प्रयोग कर सकते हैं।प्रयोग के समय पहले की तरह विशेष साधना नहीं करनी पड़ती,मात्र कुछ घंटों की क्रिया से किसी को देने लायक यन्त्र तैयार होजाता है। आवश्यकता नहीं रहने पर भी वर्ष में एक बार दीपावली वगैरह शुभ अवसरों में एक छोटी साधना कर लेनी चाहिए ताकि यन्त्र साधने की शक्ति बनी रहे।
इस यन्त्र की कुछ खास शर्तें :-
1.यन्त्र की अवमानना और दुरुपयोग न हो।
2.किसी को अनावश्यक परेशान करने के लिए यन्त्र का प्रयोग न किया जाय।
3.एक समय में, एक व्यक्ति, एक ही यन्त्र का, एक ही उद्देश्य से साधना-पूजा करें। जैसे मान लिया- पुत्रप्राप्ति के लिए यन्त्र-साधना कर रहे हैं।इस बीच घोर संकट से घिर गये,और आतुरता में उसी यन्त्र से दूसरी कामना कर बैठे।ऐसी स्थिति में यन्त्र निष्फल हो जायेगा,यानी दोनों में कोई कामना की पूर्ति नहीं होगी।
4.एक व्यक्ति एक यन्त्र की साधना एक उद्देश्य से कर रहा है,और समय पर उसकी मनोकामना पूरी हो गयी,जैसे पुत्रप्राप्ति के लिए साधना की गयी,तो पुत्रप्राप्त हो जाने के बाद यन्त्र बेकार नहीं हो गया,बल्कि विधिवत उद्यापन करके,पुनः दूसरी कामना का संकल्प लेकर उसी यन्त्र को साधते रह सकते हैं।जैसे- पहले पुत्र-कामना से साधे, अब धन-कामना से साध सकते हैं।यानी एक समय में एक कामना। इस प्रकार एक ही यन्त्र का अलग-अलग समय में अलग-अलग प्रयोग करके जीवन भर लाभ पाया जा सकता है।
5.यन्त्र शुद्ध सात्विक है,अतः मांसाहारी व्यक्ति भी जब तक इसकी आराधना कर रहें हों उन्हें मांसाहार विलकुल त्यागना होगा,अन्यथा यन्त्र की मर्यादा भंग होगी और यन्त्र निष्फल होगा।
6.तामसी आहार-विहार वाले व्यक्ति इस यन्त्र की साधना स्वयं कदापि न करें।उन्हें कोई लाभ नहीं होगा,हानि भले हो जाय।
7.सिद्ध किये हुए यन्त्र का प्रयोग कोई भी कर सकते हैं,इसके शर्तों और नियमों का ध्यान रखते हुए।
8.जन्म-मरण के अशौच को छोड़ कर,तथा स्त्रियों के रजोदर्शन के पांच दिनों की वर्जना को छोड़कर,शेष समय में कभी भी यन्त्र की पूजा बाधित नहीं होनी चाहिए।
9.अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि यन्त्र तीन महीने से एक वर्ष के अन्दर अपना प्रभाव अवश्य दिखा देता है,वशर्ते की उपासना में कोई त्रुटि न हो।
10.विशेषज्ञ द्वारा सिद्ध किये हुए यन्त्र का प्रयोग पुरुष-स्त्री कोई भी कर सकता है। इसमें लिंग वा जाति भेद नहीं है।प्रयोग करने की शर्तों का पालन करें-वस इतना ही ध्यान रखें।
11.यन्त्र साधना के साथ-साथ कुण्डली की स्थिति के अनुसार भी ग्रहशान्ति अवश्य करा लेनी चाहिए,क्यों कि कुण्डली के बाधक ग्रह यन्त्रसाधना में भी बाधक होंगे।
प्रथम साधना-सामग्रीः-
1.भौमयन्त्र लेखन हेतु पीतल या तांबे का परात,अनार के डंठल से बनायी गयी लेखनी,अष्टगन्ध(मलयगिरीचन्दन,रक्तचन्दन,केसर,कपूर,वंशलोचन,अगर,तगर,कस्तूरी का बीज)(चुंकि असली कस्तूरी आजकल एकदम दुर्लभ है,इसकारण लताकस्तूरी के बीजों का प्रयोग करना चाहिए),लालरंग में रंगा हुआ नया ऊनी आसन,लाल वस्त्र (धोती, गमछा,चादर),गंगाजल,रोली,सिन्दूर,अबीर,सुपारी,मौली,लाल फूल,पीला फूल, (ओड़हुल, गेंदा),धूना,गुगल,देवदारधूप,(अगरबत्ती नहीं),प्रसाद हेतु पेड़ा,छुहारा,गूड़,लौंग, छोटी इलाइची,अक्षत के लिए अरवाचावल(लालरंग या कुमकुम में रंगा हुआ),हल्दीचूर्ण, पंचामृत(दूध,दही,घी,गूड़,मधु),आम का पल्लव,पान पत्ता,रुद्राक्ष या रक्तचन्दन की माला, अखण्डदीप(घी का),रक्षादीप(तिलतेल का),माचिस,मिट्टी का दीया,मिट्टी का ढकना, आचमनी,लोटा,तस्तरी,कटोरी आदि पूजन पात्र।
नोटः-भौमयन्त्र की साधना क्रम में कुल मिलाकर १०८बार उक्त यन्त्र को लिखना है, और इक्कीश नाममन्त्रों में प्रत्येक का दश-दश हजार यानी २१×१०,०००=दोलाख दश हजार कुल मन्त्र जप करना है।साथ ही १०८बार पंचोपचार पूजन भी करना है।प्रत्येक बार(१०८बार)पूजन के बाद यन्त्रगायत्री का एक माला(१०८बार)जप भी करना है।साधना प्रारम्भ करने से पूर्व आदेश प्राप्ति हेतु गायत्री मन्त्र का १०,०००जप,तथा विघ्नविनाशक गणपति का १००० मन्त्र जप भी अनिवार्य है।आदेश प्राप्ति का कार्य सुविधानुसार कुछ पहले भी कर सकते हैं- इस संकल्प के साथ कि मैं अमुक कार्य हेतु भगवती गायत्री से आदेश चाहता हूँ।हाँ,वैसे व्यक्ति जो नित्य संध्या-अभ्यासी हैं, और गायत्री के सहस्रजापी हैं,उन्हें कुछ अतिरिक्त करने की आवश्यकता नहीं है।वे सीधे भौम यन्त्र की साधना प्रारम्भ कर सकते हैं।मूल साधना की कुल क्रिया को आप अपनी सुविधानुसार इक्कीश या इक्कतीस दिनों में विभाजित कर सकते हैं।
कार्य-प्रणाली की स्पष्टीः-१.यन्त्र को अष्टगन्ध से १०८बार लिखना-इसमें प्रतिबार करीब पन्द्रह मिनट समय लगेगा,२.प्रत्येक बार(१०८बार)यन्त्र का पंचोपचार पूजन करना,और मिटाना,तथा पुनः लिखना,३.इक्कीस त्रिकोणों में दिये गये सभी मन्त्रों का जप करना-कुल जप दोलाख,दशहजार करना है।प्रत्येक हजार में कम से कम बीस मिनट समय लगेगा।यानी २०मि.×२१०हजार=४२००मि.=७०घंटे,+ १०८बारलेखन,पूजन में ५४ घंटे, यानी कुलमिलाकर १२४घंटे,या इससे भी अधिक लग सकते हें।चार घंटे नित्य का कार्यक्रम रखें तो इक्कतीस दिनों का अनुष्ठान होगा।इस बीच पूर्णरुपेण अनुष्ठानिक नियम-संयम विधि का पालन करना अनिवार्य है।
मुहूर्त विचारः-अनुष्ठान प्रारम्भ करने के लिए मुहूर्त विचार के क्रम में ध्यातव्य है कि मंगल अपने उच्च यानि मकरराशि पर हों,अथवा अपने दोनों घरों में(मेष या वृश्चिक) कहीं हों- उन कालों में जो भी मंगलवार हो,रिक्ता, भद्रादि दोष रहित हो,गुरु-शुक्रादि अस्त,बाल,वृद्धादि दोष रहित हों- इन सभी योगों के संयोग में अनुष्ठान प्रारम्भ करना चाहिए।मंगल सम्बन्धी कार्य अपराह्न में वर्जित है,यानी दोपहर बारह वजे तक क्रिया समाप्त कर लेनी चाहिए।पुनः अगले दिन भी इसी प्रकार करें।
साधना की व्यावहारिक बातेः-
नित्य-कर्म-पूजा-प्रकाश(गीताप्रेस) आदि विभिन्न पुस्तकों में संकल्प सहित,प्राण-प्रतिष्ठा-मन्त्र और विनियोग दिया रहता है। किसी भी पूजा की संक्षिप्त विधि भी दी हुयी रहती है।इसके लिए उक्त पुस्तक का सहयोग लेना श्रेयस्कर होगा।अनुष्ठान सम्पन्न होजाने के बाद संक्षिप्त रुप से एक हजार हवन भी कर लेना चाहिए।हो सके तो पांच ब्राह्मण और सात भिखारियों को भोजन भी करा दें।इससे अनुष्ठान में काफी बल मिलता है।ध्यातव्य है कि प्रत्येक बार यन्त्र लेखन,पूजन के पश्चात् विसर्जन और प्रक्षालन भी करना है।प्रक्षालित किये गये जल(धोवन)को जहाँ तहां न फेंके।खैर का वृक्ष कहीं पास में हो तो उसकी जड़ मे डाल देना सर्वोत्तम है।न उपलब्ध हो तो किसी पौधे में या नदी तालाब में डाल सकते हैं,किन्तु तुलसी के पौधे में न डालें।
प्रयोग कब-कैसे -मूलतः प्रयोग विधि सबके लिए समान है,किन्तु कार्य भेद से थोड़ा अन्तर है।
1) सन्तान की कामना से यदि उपासना करनी हो तो पति-पत्नी दोनों को एकत्र पूजा करनी होगी,तभी सही लाभ मिलेगा।किसी एक के करने से लाभ मिलने वाले समय में अन्तर आयेगा।यानी फल में कमी आयेगी।हाँ,मासिक धर्म के पांच वर्जित दिनों में पुरुष अकेले ही यन्त्र की पूजा करेगा,इसे नियम में ऋटि नहीं मानी जायेगी।
2) परिवार में सुख-शान्ति-समृद्धि के लिए उचित है कि परिवार का हर सदस्य पूजा करे,क्यों कि उसका लाभ सामूहिक है,अतः साधना भी सामूहिक होनी चाहिए।हाँ, परिवार के सभी लोग एक साथ बैठ कर ही साधना करें यह आवश्यक नहीं,किन्तु जहाँ तक हो सके प्रयास करें कि पूजा एक साथ ही हो। सामूहिक पूजा और व्यक्तिगत पूजा में गहरा भेद है।पारिवारिक यन्त्र-साधना का प्रसाद-वितरण भी परिवारिक स्तर पर होना चाहिए।किसी बाहरी व्यक्ति(कुटुम्ब,मित्र आदि)को भी नहीं देना है,अन्यथा आपके लाभ में वह भी हिस्सेदार बन जायेगा।
3)विवाह या मांगलिक दोष निवारण के उद्देश्य से यन्त्र साधना करनी हो तो जिसे जरुरत है वही(लड़का/लड़की)पूजा करे,किसी और को नहीं करनी है।यहाँ तक कि उसका प्रसाद भी कोई और को नहीं देना है।
4)वास्तुभूमिप्राप्ति के लिए भी उचित है कि पति-पत्नी मिल कर पूजा करें।सामूहिक परिवार हो तो सामूहिक पूजा करें,ताकि लाभ शीघ्र मिल सके।
5)विशेषज्ञ द्वारा सिद्ध किया हुआ यन्त्र मंगवाकर,किसी शुभ मुहूर्त में मंगलवार से इसका अनुष्ठान प्रारम्भ किया जा सकता है।नित्य की यन्त्र पूजा में मात्र पन्द्रह मिनट समय लगता है।साथ ही एकमाला(१०८बार)मन्त्र जप करने में दश मिनट,यानी कुल पचीस मिनट की नित्य क्रिया है।
6)यन्त्र-पूजा में सामान्य पूजन सामग्री की ही आवश्यकता है।इस पर आगे प्रकाश डाला जा रहा है।
मंगलयन्त्र की नित्य पूजाविधिः-नवीन लाल वस्त्र पहन कर लाल रंग के उनी आसन पर पूर्वाभिमुख पति-पत्नी बैठ कर पूजन करें।पूजा के समय पति के दाहिने भाग में ही पत्नी को बैठना चाहिए।सिद्ध यन्त्र को तांबे की थाल में लाल वस्त्र बिछा कर रख दें,या सिंहासन,चौकी,पीढ़ा आदि पर लाल कपड़े का आसन देकर यन्त्र को खड़ा भी रखा जा सकता है।यन्त्र को पोंछने के लिए और पूजा के बाद ढकने के लिए भी अलग-अलग, एक-एक लाल वस्त्र रखना जरुरी है।इन तीनों वस्त्रों को महीने में एक बार बदल देना चाहिए।नित्य संकल्प कर सकें तो बड़ी अच्छी बात है,अन्यथा मानसिक संकल्प से भी काम चल सकता है।वस श्रद्धा,भक्ति,और दृढ़ विश्वास चाहिए।
अन्य आवश्यक सामग्रीः-कुमकुम,लाल रंगा हुआ अरवाचावल,रोली,अबीर, सिन्दूर,मौली धागा,लालचन्दन का चूर्ण,सफेद चन्दन का चूर्ण,हल्दी चूर्ण,लाल फूल,पीला फूल,दीपक। प्रसाद हेतु गूड़ अनिवार्य है,साथ ही छुहारा,किसमिस, बादाम,आदि कुछ भी यथाशक्ति रख सकते हैं। देवदार धूप(अगरबत्ती नहीं)क्यों कि अगरबत्ती बांस की तिल्लियों पर बनी होती है,जिससे सन्तान की हानि होती है।आजकल हरिदर्शन,गायत्रीदर्शन,आदि बहुत तरह के धूपबत्ती बाजार में उपलब्ध हैं।किसी का भी प्रयोग किया जा सकता है।)मुख शुद्धि के लिए नित्य पान पत्ता जरुरी नहीं है,चढ़ाते हैं तो अच्छा है।न हो तो भी कोई बात नहीं।किन्तु लौंग-इलाइची अवश्य चढ़ायें।पूजा के बाद कपूर की आरती दिखाना चाहिए।नित्य श्रद्धानुसार कुछ दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।महीने भर के एकत्र पैसे को किसी भिखारी या ब्राह्मण को दिया जा सकता है।हो सके तो सप्ताह में एक दिन-मंगलवार को विशेष प्रसाद के रुप में गूड़-घी में बनाया हुआ हलवा या खजूर अवश्य चढ़ा दें।पूजा की समाप्ति पर विनीत भाव से प्रार्थना करें-
हे यन्त्रदेवता!आप मुझ पर प्रसन्न होकर यथाशीघ्र मेरी मनोकामना पूरी करें/मुझे सन्तान दें/मुझे योग्य पति/ पत्नी प्रदान करें/मुझे शत्रुपर विजय दिलावें/आवासीय भूमि की व्यवस्था करें....आदि।
धनागम विधि
धनागम विधि
धन की कामना किसे नहीं है?सामान्य गृहस्थ से लेकर चीवरधारी सन्यासी तक धन की प्यास से तृषित हैं।बहुत लोग धन के ऋणात्मक बोझ से ग्रसित भी हैं।ऐसे लोगों के कल्याण हेतु एक शतानुभूत साधना-प्रयोग प्रस्तुत कर रहा हूँ। मलमास,खरमास वर्जित किसी शुद्धमास के शुक्लपक्ष के किसी भद्रादि रहित मंगलवार के द्वितीयप्रहर से इस अनुष्ठान को प्रारम्भ कर सकते हैं। प्रारम्भ में साक्षी दीप प्रज्ज्वलित करके,जल,अक्षत, सुपारी,द्रव्यादि युक्त संकल्प करके सात बार इस स्तोत्र का पाठ करें,और पुनः नित्य इस क्रिया को करते रहें- कम से कम एक बर्ष तक नियमित पाठ करने से स्तोत्र सिद्ध होकर चमत्कारी फल दिखाता है।इसका दोहरा प्रभाव है- ऋण से मुक्ति मिलती है, और धन के आगमन का नया स्रोत्र खुलता है।इस पाठ के साथ-साथ सिद्ध किया हुआ ऋणमोचक-धनदा मंगलयन्त्र की नित्य पूजा भी की जाय तो अद्भुत लाभ होता है। मंगलयन्त्र की साधना विधि मैं अपने विगत लेख में प्रस्तुत कर चुका हूँ।जो व्यक्ति स्वयं यन्त्र साधना न कर सकें, वे चाहें तो मेरे यहाँ से समुचित शुल्क अदा कर मंगवा सकते हैं।सिद्धयन्त्र का दक्षिणा 5100रु.और डाक खर्च करीब 100रु.अग्रिम भेजने पर रिजस्टर्डपोस्ट से भेजा जा सकता है।
॥ऋणमोचक-धनदायक मंगल स्तोत्र॥
मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद:।
स्थिरासनो महाकाय: सर्वकामविरोधक: ॥१॥
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकर:।
धरात्मज: कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दन: ॥२॥
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:।
वृष्टे: कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद: ॥३॥
एतानि कुजनामानि नित्यं य: श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥४॥
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥५॥
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभि:।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पापि भवति क्वचित् ॥६॥
अङ्गारक महाभाग भगवन् भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय: ॥७॥
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये चापमृत्यव:।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥८॥
अतिवक्रदुरारार्ध्य भोगमुक्तजितात्मन:।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥९॥
विरञ्चि शक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्वेन ग्रहराजो महाबल: ॥१०॥
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गत:।
ऋणदारिद्रयदु:खेन शत्रुणां च भयात्तत: ॥११॥
एभिर्द्वादशभि: श्लोकैर्य: स्तौति च धरासुतम्।
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥१२॥
॥इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्तं ऋणमोचन मंगल स्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥
धन की कामना किसे नहीं है?सामान्य गृहस्थ से लेकर चीवरधारी सन्यासी तक धन की प्यास से तृषित हैं।बहुत लोग धन के ऋणात्मक बोझ से ग्रसित भी हैं।ऐसे लोगों के कल्याण हेतु एक शतानुभूत साधना-प्रयोग प्रस्तुत कर रहा हूँ। मलमास,खरमास वर्जित किसी शुद्धमास के शुक्लपक्ष के किसी भद्रादि रहित मंगलवार के द्वितीयप्रहर से इस अनुष्ठान को प्रारम्भ कर सकते हैं। प्रारम्भ में साक्षी दीप प्रज्ज्वलित करके,जल,अक्षत, सुपारी,द्रव्यादि युक्त संकल्प करके सात बार इस स्तोत्र का पाठ करें,और पुनः नित्य इस क्रिया को करते रहें- कम से कम एक बर्ष तक नियमित पाठ करने से स्तोत्र सिद्ध होकर चमत्कारी फल दिखाता है।इसका दोहरा प्रभाव है- ऋण से मुक्ति मिलती है, और धन के आगमन का नया स्रोत्र खुलता है।इस पाठ के साथ-साथ सिद्ध किया हुआ ऋणमोचक-धनदा मंगलयन्त्र की नित्य पूजा भी की जाय तो अद्भुत लाभ होता है। मंगलयन्त्र की साधना विधि मैं अपने विगत लेख में प्रस्तुत कर चुका हूँ।जो व्यक्ति स्वयं यन्त्र साधना न कर सकें, वे चाहें तो मेरे यहाँ से समुचित शुल्क अदा कर मंगवा सकते हैं।सिद्धयन्त्र का दक्षिणा 5100रु.और डाक खर्च करीब 100रु.अग्रिम भेजने पर रिजस्टर्डपोस्ट से भेजा जा सकता है।
॥ऋणमोचक-धनदायक मंगल स्तोत्र॥
मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद:।
स्थिरासनो महाकाय: सर्वकामविरोधक: ॥१॥
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकर:।
धरात्मज: कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दन: ॥२॥
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:।
वृष्टे: कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद: ॥३॥
एतानि कुजनामानि नित्यं य: श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥४॥
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥५॥
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभि:।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पापि भवति क्वचित् ॥६॥
अङ्गारक महाभाग भगवन् भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय: ॥७॥
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये चापमृत्यव:।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥८॥
अतिवक्रदुरारार्ध्य भोगमुक्तजितात्मन:।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥९॥
विरञ्चि शक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्वेन ग्रहराजो महाबल: ॥१०॥
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गत:।
ऋणदारिद्रयदु:खेन शत्रुणां च भयात्तत: ॥११॥
एभिर्द्वादशभि: श्लोकैर्य: स्तौति च धरासुतम्।
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥१२॥
॥इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्तं ऋणमोचन मंगल स्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥
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