समस्त जगत विषाणु ग्रस्त होने के कारण व्यक्ति भय के अधीन हो जाता हैं , विषाणु भी एक बाधित वासनिक आत्मा ही हैं । सूक्ष्म विषाणु की ओरा एक मजबूत आदमी की ओरा को भी भेद देती हैं । इसलिए व्यक्ति के त्वचा के ऊपर एक दैवीय ऊर्जा होनी चाहिए । इसको ध्यान में रखकर नीचे जो कवच दिया है उसे रोजाना कुछ दिन पढ़िए। शरीर का तेज और रक्षा के लिए काफी मजबूत कवच हैं ।
।। श्री सुदर्शन महकवचं ।।
विनियोग : ॐ अस्य श्री सुदर्शन कवच माला मंत्रस्य श्री लक्ष्मी नृसिंह: परमात्मा देवता क्षां बीजं ह्रीं शक्ति मम कार्य सिध्यर्थे जपे विनयोग:।
करन्यास न्यास:
ॐ क्षां अन्गुष्ठाभ्याम नम:
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्याम नम:
ॐ श्रीं मध्यमाभ्याम नम:
ॐ सहस्रार अनामिकभ्याम नम:
ॐ हुं फट कनिष्ठिकाभ्याम नम:
ॐ स्वाहा करतल-कर प्र्ष्ठाभ्याम नम:
हृदयादि न्यास:
ॐ क्षां हृदयाय नम:
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा
ॐ श्रीं शिखाए वषट
ॐ सहस्रार कवचाय हुम
ॐ हुं फट नेत्रत्रयाय वौषट
ॐ स्वाहा अस्त्राय फट
ध्यानं :- उपसमाहे नृसिंह आख्यम ब्रह्म वेदांत गोचरम। भूयो-लालित संसाराच्चेद हेतुं जगत गुरुम।।
पंचोपचार पूजनं :
लं पृथ्वी तत्वात्मकम गंधंम समर्पयामि
हं आकाश तत्वात्मकम पुष्पं समर्पयामि
यं वायु तत्वात्मकम धूपं समर्पयामि
रं अग्नि तत्वात्मकम दीपं समर्पयामि
वं जल तत्वात्मकम नैवेद्यं समर्पयामि
सं सर्व तत्वात्मकम ताम्बूलं समर्पयामि
ॐ सुदर्शने नम:
ॐ आं ह्रीं क्रों नमो भगवते प्रलय काल महा ज्वाला घोर वीर सुदर्शन नृसिंहआय ॐ महा चक्र राजाय महा बले सहस्रकोटिसूर्यप्रकाशाय सहस्रशीर्षआय सहस्रअक्षाय सहस्रपादाय संकर्षणआत्मने सहस्रदिव्याश्र सहस्र हस्ताय सर्वतोमुख ज्वलन ज्वाला माला वृताया विस्फु लिंग स्फोट परिस्फोटित ब्रह्माण्ड भानडाय महा पराक्रमाय महोग्र विग्रहाय महावीराय महा विष्णु रुपिणे व्यतीत कालान्त काय महाभद्र रोद्रा वताराया मृत्यु स्वरूपाय किरीट-हार-केयूर-ग्रेवेयक-कटक अन्गुलयी-कटिसूत्र मजीरादी कनक मणि खचित दिव्य भूषणआय महा भीषणआय महा भिक्षया व्याहत तेजो रूप निधेय रक्त चंडआंतक मण्डितम दोरु कुंडा दूर निरिक्षणआय प्रत्यक्ष आय ब्रह्म चक्र विष्णु चक्र कल चक्र भूमि चक्र तेजोरूपाय आश्रितरक्षाय । ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात इति स्वाहा स्वाहा ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात इति स्वाहा स्वाहा भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षय । ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात मम शत्रून नाशय नाशय । ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल चंड चंड प्रचंड प्रचंड स्फुर प्रस्फुर घोर घोर घोरतर घोरतर चट चट प्रचटं प्रचटं प्रस्फुट दह कहर भग भिन्धि हंधी खट्ट प्रचट फट जहि जहि पय सस प्रलय वा पुरुषाय रं रं नेत्राग्नी रूपाय । ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षय । ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात एही एही आगच्छ आगच्छ भूतग्रह- प्रेतग्रह- पिशाचग्रह-दानावग्रह-कृत्रिम्ग्रह- प्रयोगग्रह-आवेशग्रह-आगतग्रह-अनागतग्रह- ब्रह्म्ग्रह-रुद्रग्रह-पतालग्रह-निराकारग्रह -आचार-अनाचार ग्रह- नन्जाती ग्रह- भूचर ग्रह- खेचर ग्रह- वृक्ष ग्रह- पिक्षी चर ग्रह- गिरी चर ग्रह- श्मशान चर ग्रह -जलचर ग्रह -कूप चर ग्रह- देगारचल ग्रह- शुन्यगार चर ग्रह- स्वप्न ग्रह- दिवामनो ग्रह- बालग्रह -मूकग्रह- मुख ग्रह -बधिर ग्रह- स्त्री ग्रह- पुरुष ग्रह- यक्ष ग्रह- राक्षस ग्रह- प्रेत ग्रह किन्नर ग्रह- साध्य चर ग्रह - सिद्ध चर ग्रह -कामिनी ग्रह- मोहनी ग्रह-पद्मिनी ग्रह- यक्षिणी ग्रह- पकषिणी ग्रह संध्या ग्रह- उच्चाटय उच्चाटय भस्मी कुरु कुरु स्वाहा । ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ क्षरां क्षरीं क्षरूं क्षरें क्षरों क्षर : भरां भरीं भरूं भरें भरों भर: ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रों ह्र: घरां घरीं घरूं घरें घरों घर: श्रां श्रीं श्रुं श्रें श्रों श्र: । ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात एही एही सालवं संहारय शरभं क्रन्दया विद्रावय विद्रावय भैरव भीषय भीषय प्रत्यांगिरी मर्दय मर्दय चिदंबरम बंधय बंधय विदम्बरम ग्रासय ग्रासय शांर्म्भ्वा निबंतय कालीं दह दह महिषासुरी छेदय छेदय दुष्ट शक्ति निर्मूलय निर्मूलय रूं रूं हूँ हूँ मुरु मुरु परमन्त्र - परयन्त्र - परतंत्र कटुपरं वादपर जपपर होमपर सहस्र दीप कोटि पुजां भेदय भेदय मारय मारय खंडय खंडय परकृतकं विषं निर्विष कुरु कुरु अग्नि मुख प्रकांड नानाविध कृतं मुख वनमुखं ग्राहान चुर्णय चुर्णय मारी विदारय कुष्मांड वैनायक मारीचगणान भेदय भेदय मन्त्रं परअस्माकं विमोचय विमोचय अक्षिशूल कुक्षीशूल गुल्मशूल पार्श्वशूल सर्वाबाधा निवारय निवारय पांडूरोगं संहारय संहारय विषम ज्वर त्रासय त्रासय एकाहिकं द्वाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं पंचाहिकं षष्टज्वर सप्तमज्वर अष्टमज्वर नवमज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर दानवज्वर महाकालज्वरं दुर्गाज्वरं ब्रह्माविष्णुज्वरं माहेश्वरज्वरं चतु:षष्टि योगिनीज्वरं गन्धर्वज्वरं बेतालज्वरं एतान ज्वरान्न नाशय नाशय दोषं मंथय मंथय दुरित हर हर अन्नत वासुकी तक्षक कालौय पद्म कुलिक कर्कोटक शंख पलाद्य अष्ट नाग कुलानां विषं हन हन खं खं घं घं पाशुपतं नाशय नाशय शिखंडी खंडय खंडय प्रमुख दुष्ट तंत्र स्फोटय स्फोटय भ्रामय भ्रामय महानारायणअस्त्राय पंचाशधरणरूपाय लल लल शरणागत रक्षणाय हूँ हूँ गं वं गं वं शं शं अमृतमूर्तये तुभ्यं नम: । ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षय । ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात मम सर्वारिष्ट शान्तिं कुरु कुरु सर्वतो रक्ष रक्ष ॐ ह्रीं हूँ फट स्वाहा । ॐ क्ष्रोम ह्रीं श्रीं सहस्रार हूँ फट स्वाहा ।।
मंगलवार, 7 अप्रैल 2020
रविवार, 5 अप्रैल 2020
हरिद्रा गणपति मंत्र
ॐ गां गीं गूं गैं गौं गः गणपतये सर्वजनमुखस्तम्भनाय आगच्छ आगच्छ मम विघ्नान नाशय नाशय दुष्टं खादय
खादय दुष्टस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय अकालमृत्युं हन
हन भो गणाधिपतये ॐ ह्लीं वश्यं कुरु कुरु ॐ ह्लीं बगलामुखी हूं फ़ट स्वाहा |
इस गणपति मंत्र से वशीकरण , विघ्नो का नाश और शत्रु नाश होता है केवल दीक्षित साधक ही प्रयोग करने के अधिकारी है
यहाँ पर लिखने का तात्पर्य केवल विद्या का संरक्षण और संवर्धन ही है दीक्षित जन ही प्रयोग करे |
शनिवार, 28 मार्च 2020
माँ बगलामुखी का माला मंत्र
संकट की इस घड़ी में जब चारो ओर कोरोना नामक महामारी का प्रकोप फैला हुआ है तो केवल माँ की ही शरण ग्रहण करे | वो ही इन संकटो से रक्षा करने वाली है | माँ के भक्तो के लिए प्रस्तुत है माँ बगलामुखी जी का माला मंत्र |
इस मंत्र का 108 बार पाठ करने से सभी प्रकार के संकटो से रक्षा होती है और माँ की कृपा प्राप्त होती है जिसका साधक को स्वयं अनुभव होगा |
साधक का दीक्षित होना आवश्यक है अन्यथा किसी भी प्रकार की हानि के लिए मै उत्तरदायी नहीं हूँ |
--:माँ बगलामुखी का माला मंत्र :--
ॐ नमो भगवति ॐ नमो वीरप्रतापविजयभगवति बगलामुखि मम सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय, ब्राह्मी मु द्रय मुद्रय, बुद्धिं विनाशय विनाशय, अपरबुद्धिं कुरु कुरु आत्माविरोधिनां शत्रुणां शिरो- ललाटं- मुखं- नेत्र- कर्ण- नासिकोरु- पद- अणुरेणु- दन्तोष्ठ -जिह्वा- तालु- गुह्य- गुद- कटि- जानू- सर्वांगेषु केशादिपादपर्यन्तं पादादिकेशपर् यन्तं स्तम्भय स्तम्भय, खें खीं मारय मारय, परमन्त्र- परयन्त्र- परतन्त्राणि छेदय छेदय, आत्ममन्त्रतन्त्राणि रक्ष रक्ष, ग्रहं निवारय निवारय, व्याधिं विनाशय विनाशय, दुःखं हर हर, दारिद्रयं निवारय- निवारय,सर्वमन्त्रस्वरूपिणी, सर्व तन्त्रस्वरूपिणी, सर्वशिल्पप्रयोगस्वरूपिणी, सर्वतत्वस्वरूपि णी, दुष्टग्रह भूतग्रह आकाशग्रह पाषाणग्रह सर्व चाण्डालग्रह यक्षकिन्नरकिम्पुरुषग्रह भूतप्रेतपिशाचानां शाकिनी डाकिनीग्रहाणां पूर्वदिशां बन्धय बन्धय, वार्तालि मां रक्ष रक्ष, दक्षिणदिशां बन्धय बन्धय, किरातवार्तालि मां रक्ष रक्ष, पश्चिमदिशां बन्धय बन्धय , स्वप्नवार्तालि मां रक्ष रक्ष, उत्तरदिशां बन्धय बन्धय, काली मां रक्ष रक्ष, ऊर्ध्वदिशं बन्धय-बन्धय, उग्रकालि मां रक्ष रक्ष, पातालदिशं बन्धय बन्धय , बगलापरमेश्वरि मां रक्ष रक्ष, सकलरोगान् विनाशय विनाशय, शत्रू पलायनाय पञ्चयोजनमध्ये राजजनस्त्रीवशतां कुरु कुरु , शत्रून् दह दह, पच पच, स्तम्भय स्तम्भय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, मम शत्रून् उच्चाटय उच्चाटय, हुम् फट् स्वाहा |श्रीं श्रीं ||
साधक का दीक्षित होना आवश्यक है अन्यथा किसी भी प्रकार की हानि के लिए मै उत्तरदायी नहीं हूँ |
ॐ नमो भगवति ॐ नमो वीरप्रतापविजयभगवति बगलामुखि मम सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय, ब्राह्मी मु द्रय मुद्रय, बुद्धिं विनाशय विनाशय, अपरबुद्धिं कुरु कुरु आत्माविरोधिनां शत्रुणां शिरो- ललाटं- मुखं- नेत्र- कर्ण- नासिकोरु- पद- अणुरेणु- दन्तोष्ठ -जिह्वा- तालु- गुह्य- गुद- कटि- जानू- सर्वांगेषु केशादिपादपर्यन्तं पादादिकेशपर् यन्तं स्तम्भय स्तम्भय, खें खीं मारय मारय, परमन्त्र- परयन्त्र- परतन्त्राणि छेदय छेदय, आत्ममन्त्रतन्त्राणि रक्ष रक्ष, ग्रहं निवारय निवारय, व्याधिं विनाशय विनाशय, दुःखं हर हर, दारिद्रयं निवारय- निवारय,सर्वमन्त्रस्वरूपिणी, सर्व तन्त्रस्वरूपिणी, सर्वशिल्पप्रयोगस्वरूपिणी, सर्वतत्वस्वरूपि णी, दुष्टग्रह भूतग्रह आकाशग्रह पाषाणग्रह सर्व चाण्डालग्रह यक्षकिन्नरकिम्पुरुषग्रह भूतप्रेतपिशाचानां शाकिनी डाकिनीग्रहाणां पूर्वदिशां बन्धय बन्धय, वार्तालि मां रक्ष रक्ष, दक्षिणदिशां बन्धय बन्धय, किरातवार्तालि मां रक्ष रक्ष, पश्चिमदिशां बन्धय बन्धय , स्वप्नवार्तालि मां रक्ष रक्ष, उत्तरदिशां बन्धय बन्धय, काली मां रक्ष रक्ष, ऊर्ध्वदिशं बन्धय-बन्धय, उग्रकालि मां रक्ष रक्ष, पातालदिशं बन्धय बन्धय , बगलापरमेश्वरि मां रक्ष रक्ष, सकलरोगान् विनाशय विनाशय, शत्रू पलायनाय पञ्चयोजनमध्ये राजजनस्त्रीवशतां कुरु कुरु , शत्रून् दह दह, पच पच, स्तम्भय स्तम्भय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, मम शत्रून् उच्चाटय उच्चाटय, हुम् फट् स्वाहा |श्रीं श्रीं ||
सदस्यता लें
संदेश (Atom)