शनिवार, 4 अक्टूबर 2025

भरोसा केवल भगवन्नाम का


राम जपु, राम जपु, राम जपु बावरे ।


घोर भव - नीर - निधि नाम निज नाव रे ॥१॥


एक ही साधन सब रिद्धि - सिद्धि साधि रे ।


ग्रसे कलि - रोग जोग - संजम - समाधि रे ॥२॥


भलो जो है, पोच जो है, दाहिनो जो, बाम रे ।


राम - नाम ही सों अंत सब ही को काम रे ॥३॥


जग नभ - बाटिका रही है फलि फूलि रे ।


धुवाँ कैसे धौरहर देखि तू न भूलि रे ॥४॥


राम - नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे ।


तुलसी परोसो त्यागि माँगे कूर कौर रे ॥५॥


भावार्थः-- तुलसीदास जी कहते हैं  अरे पागल ! राम जप, राम जप, राम जप । इस भयानक संसारुपी

 समुद्रसे पार उतरनेके लिये  श्रीरामनाम ही  नाव है । अर्थात् इस रामनामरुपी नावमें बैठकर मनुष्य जब 

 चाहे तभी पार उतर सकता है , क्योंकि यह मनुष्यके  अधिकारमें हैं ॥१॥

इसी एक साधनके बलसे सब ऋद्धि - सिद्धियोंको साध लेगा, क्योंकि योग, संयम और समाधि आदि

 साधनोंको कलिकाल रुपी रोगने  ग्रस लिया है ॥२॥

भला हो, बुरा हो, उलटा हो, सीधा हो, अन्तमें सबको एक रामनामसे ही काम पड़ेगा ॥३॥

यह जगत भ्रम से आकाश में फले - फूले दीखने वाले बगीचे के समान सर्वथा मिथ्या है, धुएँ के महलों की

 भाँति क्षण - क्षणमें दीखने  और मिटनेवाले इन सांसरिक पदार्थोंको देखकर तू भूल मत ॥४॥

जो रामनाम को छोड़कर दूसरेका भरोसा करता है  वह उस मूर्खके समान है, जो सामने परोसे हुए

 भोजनको छोड़कर एक - एक कौर  के लिये कुत्ते की तरह घर - घर माँगता फिरता है ॥५॥

रविवार, 28 सितंबर 2025

राम रटो रे भगत राम रटो

 काम्या वल्लभ कामिनी अरु लोभ्या वल्लभ दाम  | 

अमल्या वल्लभ अमल ज्यूँ यूँ साधा वल्लभ राम  || 
यूँ साधा वल्लभ राम, राम रट विरह जगावे | 
विरह जगावे प्रेम, प्रेम परकास करावे || 
परकास परस परमात्मा पाय रहे विश्राम | 
काम्या वल्लभ कामिनी अरु लोभ्या वल्लभ दाम || 

राम नाम कों  अहर्निश मुँह से रटने से भीतर विरह पैदा होगा और उस विरह से प्रभु में प्रेम पैदा होगा  और प्रेम भीतर प्रकाश कर देगा और परमात्मा से मिला करके विश्राम दे देगा | 

सुमरण सबके उपरे संतन काढ्यो सोध | 
रामप्रताप सुमरण किया मन के लगे प्रमोध || 
सुमरण सू मन लाय राम ही राम उचारो | 
दिवस रैण आठयाम नाम कू पल न बिसारो | 
तब सुध होव जीव पीव को परसे भाई | 
दर्से आनंद कंद बंध भय भोर नसाई || 
रामप्रताप एह रामजी सुमरया सारे काज | 
कलयुग माहि विशेष ये भव जल पार जहाज || 

रामचरण हम कहत हैं कह्या कबीरा नाम | 
सकल सास्तर सोधिया कलयुग केवल नाम || 
निसिदिन भजिये राम कू तजिये नहीं लगार | 
रामचरण आठो पहर पल पल बारम्बार || 

जान अजान परे पग पावक सो सत मान जरे ही जरेंगें | 
 जान अजान छुरी छिवे पारस मैल विकार हरे ही हरेंगे || 
जान अजान पीवे कोई अमृत जासु के शोक टरे ही टरेंगे | 
जान अजान रटे नित राम कू रामचरण तिरे ही तिरेंगे || 

   

गुरुवार, 18 सितंबर 2025

सर्व पितृ अमावस्या पर पितृ शांति के लिए किया जाने वाला प्रयोग

प्रिय मित्रो
सर्व पितृ अमावस्या आने वाली है,अतः यह पोस्ट पहले ही डाली जा रही है ताकि समय पर आप यह प्रयोग कर सके.
इस दिन किसी भी समय,स्टील के लोटे में, दूध ,पानी,काले तिल,सफ़ेद तिल,और जौ मिला ले,साथ ही सफ़ेद मिठाई एक नारियल और कुछ सिक्के,तथा एक जनेऊ लेकर पीपल वृक्ष के निचे जाये,
सर्व प्रथम पीपल में लोटे की समस्त सामग्री अर्पित कर दे,यह उसकी जड़ में अर्पित करना है.तथा इस मंत्र का जाप सतत करते जाना है.
ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः
इसके पश्चात पीपल पर जनेऊ अर्पित करे निम्न मंत्र को पड़ते हुए
ॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमः
इस क्रिया के बाद पीपल वृक्ष के निचे मिठाई,दक्षिणा तथा नारियल रख दे.और तीन परिक्रमा करे निम्न मंत्र को पड़ते हुए.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
इस क्रिया के पश्चात भगवन नारायण से प्रार्थना करे.की मुझ पर और मेरे कुल पर आपकी तथा पित्रो की कृपा बानी रहे तथा में और मेरा परिवार धर्म का पालन करते हुए,निरंतर प्रगति करे.
इस क्रिया से पित्रो की किरपा प्राप्त होती है,कुपित हुए पितृ मान जाते है.तथा साधक के जीवन में प्रगति होती है.
अतः यह प्रयोग अवश्य करे.

शनिवार, 5 अप्रैल 2025

बगलामुखी शाबर मंत्र

 माँ पिताम्बरा बगलामुखी के यह मत्रं अपने आप में चमत्कृत है। यदि किसी व्यक्ति विशेष के  शत्रु पग-पग पर कष्ट देते है उस पर हावी होते है, तथा हर प्रकार से नीचा दिखाने की चेष्टा करते हों, या षड्यंत्र करके पुलिस कोर्ट कचहरी में फसा देते है तब उसे बगलामुखी दिक्षा उपरांत शाबर मंत्र की साधना करनी चाहिए। यदि किसी के शत्रु अस्त्र आदि लेकर सामने आते हों और उसके सामने प्राण का संकट खड़ा हो जाता हो तथा कोई उसकी जीविका को व्यापार को तत्रं द्वारा नष्ट बंधन प्रयोग कर रहा है तब शत्रुओं को उनके बल प्रभाव नष्ट करना चाहिए ,जब कोई असहाय हो या सब तरफ से शत्रुओं में घिर जाए और उसे बचने का कोई उपाय न सूझे, तो ऐसी भयंकर विपत्ति में ही बगलामुखी साधना करनी चाहिए ।


बगलामुखी शाबर मंत्र – 1


ॐ मलयाचल बगला भगवती महाक्रूरी महाकराली राजमुख बन्धनं ग्राममुख बन्धनं ग्रामपुरुष बन्धनं कालमुख बन्धनं चौरमुख बन्धनं व्याघ्रमुख बन्धनं सर्वदुष्ट ग्रह बन्धनं सर्वजन बन्धनं वशीकुरु हुं फट् स्वाहा।


बगलामुखी शाबर मंत्र – 2


ॐ सौ सौ सुता समुन्दर टापू, टापू में थापा, सिंहासन पीला, सिंहासन पीले ऊपर कौन बैसे? सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बैसे। बगलामुखी के कौन संगी, कौन साथी? कच्ची बच्ची काक कुतिआ स्वान चिड़िया। ॐ बगला बाला हाथ मुदगर मार, शत्रु-हृदय पर स्वार, तिसकी जिह्ना खिच्चै। बगलामुखी मरणी-करणी, उच्चाटन धरणी , अनन्त कोटि सिद्धों ने मानी। ॐ बगलामुखीरमे ब्रह्माणी भण्डे, चन्द्रसूर फिरे खण्डे-खण्डे, बाला बगलामुखी नमो नमस्कार।


बगलामुखी शाबर मत्रं-3


ॐ बगलामुखी महाक्रूरी शत्रू की जिह्वा को पकड़कर मुदगर से प्रहार कर , अंग प्रत्यंग स्तम्भ कर घर बाघं व्यापार बांध तिराहा बांध चौराहा बांध चार खूँट मरघट के बांध जादू टोना टोटका बांध दुष्ट दुष्ट्रनी कि बिध्या बांध छल कपट प्रपंचों को बांध सत्य नाम आदेश गुरू का।


साधना अष्टमी को एक दीपक में सरसों के तेल या मीठे तेल के साथ श्मशान में छोड़े हुए वस्त्र की बत्ती बनाकर जलाएं। विशेष दीपक को उड़द की दाल के ऊपर रखें। फिर पीला वस्त्र पहनकर और पीला तिलक लगा कर हल्दी से उसकी पूजा करें। पीले पुष्प चढ़ाएं और दीपक की लौ में भगवती का ध्यान कर बगलामुखी के मंत्र का एक हजार बार तीनों शाबर मत्रं से किसी भी एक का जप करें।तथा मद्य और मांस का भोग लगाएं।


 इस मंत्र के प्रयोग से बलवान से बलवान शत्रुओं का समूह उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे अग्नि से भूसी का ढेर। बगलामुखी मुखी शाबर तत्रं साघना के ये प्रमुख ये तीनों मत्रं भगवती की मंदिर में आकर साधना कर सिद्ध कर इनके प्रत्यक्ष प्रभाव को स्पष्ट देखा जा सकता है। यह प्रयोग शत्रुओं को नष्ट करने वाली प्रक्रिया है यह क्रिया गुरू दिक्षा के पश्चात करें व गुरू क्रम से करने पर ही विशेष फलदायी होती है। 

सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

लक्ष्मी शाबर मन्त्र

 लक्ष्मी शाबर मन्त्र

ॐ विष्णु-प्रिया लक्ष्मी, शिव-प्रिया सती से प्रकट हुई। कामाक्षा भगवती आदि-शक्ति, युगल मूर्ति अपार, दोनों की प्रीति अमर, जाने संसार। दुहाई कामाक्षा की। आय बढ़ा व्यय घटा। दया कर माई। ॐ नमः विष्णु-प्रियाय। ॐ नमः शिव-प्रियाय। ॐ नमः कामाक्षाय। ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”

विधिः- धूप-दीप-नैवेद्य से पूजा कर सवा लक्ष जप करें। लक्ष्मी आगमन एवं चमत्कार प्रत्यक्ष दिखाई देगा। रुके कार्य होंगे। लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।

पहले मन्त्र को याद कर लें | दीपावली की रात्रि में संकल्प लेकर कम से कम ग्यारह माला जाप करें | और उसके बाद सवा लाख जाप का संकल्प लेकर साधारण धूप-दीप-नैवेद्य से पूजा करके 40 दिन में सवा लाख जाप पूर्ण करने पर आपको चमत्कारिक लाभ प्रत्यक्ष दिखाई देगा | साधना गुप्त रखें इसके चमत्कार कभी भी किसी को न बताएं | आपकी धन की समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी | किसी भी शंका समाधान और दीक्षा के लिए मुझसे संपर्क करें whatsapp 9971485458 या ईमेल subhas801@gmail.com

रविवार, 4 फ़रवरी 2024

Watch the thoughts as they arise

 Watch the thoughts as they arise. Watch the perceptions as they arise. Watch the watcher as it arises. Watch the sense of "me" arising. Watch thoughts of suffering arise one at a time. There never appears more than a single thought at any one time. Then this thought, then this thought. They vanish upon the arising which reveals their emptiness. Seeing the emptiness of one thought is seeing the emptiness of all thoughts. Same taste. Seeing the emptiness of one perception is seeing the emptiness of all perceptions. Seeing the emptiness of one belief is seeing the emptiness of all beliefs. Seeing the emptiness of one's self is seeing the emptiness of all selves.

Experience is always just this current empty thought or empty perception: look into this directly by examining just this current thought or perception. All of experience is never more than this current empty perception or thought.
Seeing this clearly and directly reveals true liberation in each moment. Not seeing this clearly in every moment is the only cause of suffering.

रविवार, 17 दिसंबर 2023

श्री शिव शतांगायुर्मन्त्र

 श्री शिव शतांगायुर्मन्त्र 

 गंभीर से गंभीर बीमारियों को दूर करता है

 यह शिव का सौ साल तक की आयुदेनेवाला मंत्र है | 

शत्रु को ध्वस्त कर देता है | 

बिमारियों को परास्त कर देता है | 

सभी दोषो का विनाश कर देता है | 

मारण - मोहन - स्तम्भन सभी को ध्वस्त कर देता है | 


मंत्र :

ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रेँ ह्रः 

हन हन दह दह 

पच पच गृहाण गृहाण

 मारय मारय मर्दय मर्दय 

महा महा भैरव भैरव रूपेण धुनय धुनय 

कम्पय कम्पय विघ्नय विघ्नय

 विश्वेश्वरी क्षोभय क्षोभय   

कटु कटु मोहय मोहय हुम् स्वाहा || 


शुक्रवार, 2 जून 2023

साधना_के_दो_खण्ड_ज्ञानखण्ड_शक्तिखण्ड

यह विषय हम सीधे-सीधे कुण्डलिनी साधना से जोड़ रहे है। जो भी व्यक्ति साधनाओं में रूचि रखते हैं। वो आज्ञा चक्र पर दस से बीस मिनट ध्यान करें। ध्यान बढ़ने पर या तो यह स्वत: सहस्त्रार पर जाएगा अथवा संकल्प से ले जाना पडे़गा। सहस्त्रार पर भी बीस मिनट ध्यान करें। इस प्रकार प्रतिदिन कम से कम चालीस मिनट एक बार में ध्यान अवश्य करें। ध्यान और बढ़ने पर यह ऊर्जा सहस्त्रार से पीछे की ओर नीचे गिरेगी व मूलाधार तक पहुंचेगी। इस प्रकार एक बार सातों चक्रो में स्फुरणा प्रारम्भ हो जाएगी। यह साधना का प्रथम सोपान है इसके हम ज्ञान खण्ड की संज्ञा दे रहे है।

इस सोपान में प्रज्ञा बुद्धि व्यक्ति के भीतर विकसित होने लगती है, सत चित्र, आनन्द से उसका सम्पर्क बनने लगता है। भीतर तरह-तरह का ज्ञान विज्ञान स्फुरित होने लगेगा। कभी-कभी किसी चक्र को ऊर्जा अधिक मिलने से उसकी सिद्धि, शक्ति अथवा विकृति का भी सामना करना पड़ेगा। किसी-किसी चक्र में ऊर्जा के भवंर से व्यक्ति को कुछ कठिनार्ईयों का सामना भी करना पड़ेगा। रास्ता बनाने के लिए ऊर्जा जोर मारती है व मीठे-मीठे अथवा कभी तीव्र दर्द का अहसास भी होता है। व्यक्ति अब योगियों की भाँति जीवन जीना पसन्द करता है। साथ-साथ प्रारब्धो का भुगतान भी प्रारम्भ हो जाता है जो कई बार कठोर भी हो सकता है। इस प्रथम सोपान को पार करने में व्यक्ति के अनेक वर्ष लग जाते हैं।
इसमें व्यक्ति अपना सामान्य जीवन जीते हुए साधना कर सकता है। गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए माह में एक या दो बार सम्भोग भी कर सकता है अपनी नौकरी व भोजन सामान्य रूप से कर सकता है। छोटे-छोटे शक्तिपात से व्यक्ति में यह साधना क्रम प्रारम्भ हो जाता है। यदि व्यक्ति साधना में अधिक समय लगाने लगे व चक्रो में ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में आने लगे तो मूलाधार चक्र की ऊर्जा कुण्डलिनी पर तीव्र आघात कर उसे जगा देती हैं। यह कुण्डलिनी आगे से ऊपर की ओर उठती हुयी सहस्त्रार पर जाती है व एक चक्र में ऊर्जा दौड़ती है। अब साधना का दूसरा सोपान प्रारम्भ होता है।
इस सोपान में गम्भीरता व सावधानी पूर्वक प्रवेश करना होता है। व्यक्ति के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वह पूर्ण ब्रह्मचार्य का पालन करें। उसका अधिक इधर उधर घूमना, व्यर्थ बाते बनाना सब पर प्रतिबन्ध लगने आरम्भ हो जाते हैं। यहाँ तक कि यदि वह किसी दूसरे के बिस्तर पर लेटे तो उसे परेशनी होने लगती है। कई बार सामने वाले गलत व्यक्ति से भी कष्ट अनुभव होता है। इस सोपान में व्यक्ति का तन्त्र बहुत ही सम्वेदनशील हो जाता है।
रामकृष्ण परमहंस जी को अजीबोगरीब स्थिति से हम सभी परिचित हैं। कुछ-कुछ इसी प्रकार के लक्षण साधक में आने लगते है। कभी-कभी साधक के शरीर का कोई भाग बहुत कच्चा प्रतीत होता है।
इस सोपान में घुसते ही साधक कई बार घबरा जाता है कि यह उसके साथ क्या हो रहा है? इस सोपान में व्यक्ति के लिए हानिप्रद होती है। कभी-कभी प्रारब्ध भुगतान से मृत्यु आती नजर आती है अथवा वैसा कष्ट लगता है। इस सोपान में घुसने पर साधक को साधना के नियमों का कठोरता पूर्वक पालन करना होता है अन्यथा वह बीच में ही शरीर छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएगा। यह नाजुक छोर होता है जिसमें व्यक्ति को चारों ओर से सम्भाल की जरूरत महसूस होती है।
लेकिन इस सोपान में थोड़ा सा आगे बढ़ते ही ऋद्धियाँ सिद्धियाँ देख साधक का मन हर्षित भी हो उठता है। उसको वाक सिद्धि की प्राप्ति होने लगती है। प्रज्ञा के प्रकाश से किसी भी परिस्थिति का आकलन कर सकता है। किसी भी रोगी के लिए यदि वह मृत्युन्जे मन्त्र का जप कर दे तो रोग ठीक होने लगता है। कई बार इतना तक होता है कि व्यक्ति प्रारब्ध वश खुद तो कठिन स्वास्थ्य संकट में फंसा है परन्तु जिसके लिए उसने प्रार्थना कर दी उसका भला हो जाता है। इस सोपान में व्यक्ति साधना की ऊँचाई पर चढ चुका है। जैसे यदि वृक्ष में ऊँचाई से गिर जाए तो मृत्यु की सम्भावना रहती है।
उसी प्रकार यदि इस सोपान में व्यक्ति ने सावधानी न बरती तो वह धडाम से दुखद अन्त की ओर गिर सकता है। अपनी वाणी पर नियन्त्रण, भावना पर नियन्त्रण व वासना का दमन करना होता है। कामदेव के शिव ने भस्मीभूत कर दिया। साधक के भी कठोरता पूर्वक भीतर वासना के संस्कारों को भस्म करना होता है। यद्यपि उसके भीतर उत्पन्न उपलब्धियाँ उसको असामान्य बना रही होती है परन्तु उसे स्वयं को सामान्य रखना होता है। गुड़ की महक से मक्खियाँ भिनभिनाना प्रारम्भ कर देती है। चेहरे पर आयी दिव्य क्रान्ति, उसकी मधुर वाणी, आत्मीय व्यवहार से हर कोई उसकी समीपता चाहता है।
ऐसे व्यक्ति को चाहिए कि भीड़ से बचे व दस बीस पचास अपनी सामर्थ्य अनुसार जिज्ञासुओं की एक मण्डली चयन कर बनाकर उनको साधना के लिए प्रेरित करें। कभी-कभी अपने अनुभवों के असे बाँटे, जिससे उनको भी प्ररेणा मिलें। यदि साधको की छोटी-छोटी समूह तैयार होते रहेंगे। तो सभी की साधना में तीव्रता आएगी। जैसे जूनियर का बच्चा प्राइमरी के बच्चे को सिखा सकता है वैसे ही शक्ति खण्ड में चल रहा साधक प्रथम ज्ञान खण्ड के साधको का मार्गदर्शन कर सकता है।
शक्ति खण्ड में व्यक्ति के प्रारब्ध तो तेजी से कट जाते है परन्तु एक ओर समस्या से उसको जुझना पड़ता है। जैसे ही व्यक्ति शक्ति खण्ड में घुसता है आसुरी शक्तियाँ उसको दबाने के लिए तत्पर हो जाती है व भाँति-भाँति से उसको भ्रमित करती है जिससे वह घबराकर साधना में पीछे हटना प्रारम्भ कर दें। ज्ञान खण्ड में व्यक्ति जीवन में समर्पण लाता है तो शक्ति खण्ड में व्यक्ति आत्मदान के लिए प्रयत्नशील होता है जितनी बढ़िया मनोभूमि आत्मदान की बनती है उतनी अधिक सफलता साधक को मिलती है।
अन्यथा व्यक्ति अंह में फंस योग भ्रष्ट हो सकता है। जैसे ज्ञान खण्ड के सोपान वाले व्यक्ति को कभी-कभी शक्ति, सिद्धि का अनुभव होता है वैसे ही साधना बढ़ने सम्भलने पर शक्ति खण्ड वाले व्यक्ति को आत्म चेतना ब्रह्म चेतना का अनुभव होता है। व्यक्ति के प्रतीत होता है जैसे आज्ञा चक्र सहस्त्रार के आस पास कोई बिन्दु है जो वह है। रात्रि में जब वह सोता है तो उसी बिन्दु पर ध्यान लगाता है उसका शरीर सो रहा होता है परन्तु वह उस बिन्दु पर सचेत होता है बिन्दु पर बने रहकर वह रात भर जप भी कर सकता है।
ये स्थितियाँ बड़ी आनन्दायक होती हैं, परन्तु साथ-साथ पूर्ण पवित्रता की माँग भी करती है। अन्तर बाहर यदि पवित्रता न मिलें तो कष्ट प्रद स्थिति बनते भी देर नहीं लगती। साधक की भावमुखी दशा देख उसके घर परिवार वाले उसे सनकी अथवा पागल भी मानने लग सकते हैं व उसके साथ दुव्र्यवहार भी कर सकते है। क्योंकि उसकी परिपाटी अन्य लोगों की परिपाटी से मेल नहीं खाती। उदाहरण के लिए साधक को शान्त वातावरण चाहिए जबकि अन्य सदस्यों को घूम धड़ाके वाला वातावरण। साधक करुणावश धन वितरित करता है, जरूरत मन्दो की मदद करते हैं, अन्य लोग बैंक बेलेंस बढ़ाना पसन्द करते हैं।
यदि परिवार में लोग समझदार नहीं है साधक को अधिक परेशान करते हैं तो यह सबके लिए खतरनाक भी हो सकता है यदि तालमेल उचित है तो भले ही दूसरे व्यक्ति साधना न करें। परन्तु साधक की सदभावना का लाभ कमा सकते है उसकी साधना से प्रत्यक्ष परोक्ष रूप में लाभान्वित हो सकते है। यदि पति पत्नी में से एक शक्ति खण्ड में प्रवेश कर गया है तो दूसरे को भी बाध्य होकर संयम का पालन करना पड़ेगा, अन्यथा एक या दोनों के जान से हाथ धोना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में नियति को स्वीकार कर लें तो ही अच्छा हैं। यह प्रयास न करें कि साधक पीछे हटें। क्योंकि शक्ति खण्ड में पीछे हटना भी बहुत सावधानी से करना पडता है।
पहले तो स्थूल शरीर प्रचण्ड ऊर्जा को सहने का अभ्यासी नहीं था धीरे-धीरे उच्च ऊर्जा के अनुसार स्थूल शरीर का तन्त्र बना। अब यदि उच्च ऊर्जा से फिर निम्न ऊर्जा में आया तो शरीर सह नहीं पाता किसी न किसी अंग में विकृति आने का खतरा बना रहता है। यदि परिवार में सद्भावना हो उचित तालमेल हो तो साधनाक्रम सही चल सकता है। एक व्यक्ति अधिक समय साधना में लगाए व दूसरे उसका सहयोग करें। यदि पति पत्नी दोनों शक्ति खण्ड में प्रवेश कर जाएँ व बच्चे छोटे हो तो भी कठिनाई रहती है उनके पालन पोषण में बाधा आती है। ऐसे में सुंयक्त परिवार हो व सद्भावनापूर्ण हो तभी साधना में प्रगति सम्भव हैं।
अधिकतर साधक साधना के प्रथम सोपान पर ही अटके रहते है आगे नही बढ़ पाते; इसका कारण यह है कि उनकी मनोभूमि उर्वर नहीं होती जिस कारण वो अपने कु:संस्कारों से संघर्ष कर तेजी से आगे नहीं बढ़ पाते यदि हमें दही से मक्खन निकालना हो तो रई को धीरे-धीरे घुमाने से काम नही चलेगा, तीव्र गति से घुमाना ही पड़ेगा ऐसे ही यदि साधना में कुछ उपलब्धि हासिल करनी है तो ढीले-पीले तरीके से काम नही चलता, हमारी समस्या यह होती है कि हम दोनों को पकड़ कर चलते है। साधना भी और वासना भी, यह आधापन छोड़ना ही पडे़गा। साधना करनी है तो पूरी साधना करो,
साधक की साधना धुएँ वाली आग नही धधकती हुई ज्वाला होनी चाहिए अर्थात् साधना जिस किसी तरह न करके उसे तीव्रतम व प्रचण्डतम होना चाहिए, हम एक नदी ऐसी में उलझे हुए है जिसके एक किनारे का नाम संसार है और दूसरे का नाम समाधि है यदि नाव ठीक से चलाई जाए सही ढंग से साधना की जाएँ तो समाधि निश्चित है। इस सन्दर्भ में एक घटना बड़ी मार्मिक है। बनारस में एक सिद्ध पुरुष हुए है जिनका नाम या हरिबाबा, उनके एक शिष्य ने उनसे पूछा कि मैं बहुत जप-तप करता हूँ, पर सब अकारण जाते हैं।
भगवान् है भी या नहीं मुझे संदेह होने लगा है। हरिबाबा ने इस बात पर जोर का ठहाका लगाया और बोले-चल मेरे साथ आ, थोड़ी देर गंगा में नाव चलायेंगे और तेरे सवाल का जवाब भी मिल जायेगा। बाढ़ से उफनती गंगा में हरिबाबा ने नाव डाल दी। उन्होंने पतवार उठाई पर केवल एक। नाव चलानी हो तो दोनों पतवारें चलानी होती है, पर वह एक ही पतवार से नाव चलाने लगे। नाव गोल-गोल चक्कर काटने लगी। शिष्य तो डरा-पहले तो बाढ़ से उफनती गंगा उस पर से गोल-गोल चक्कर। वह बोला-अरे आप यह क्या कर रहे हैं, ऐसे तो हम उस किनारे कभी भी न पहुँचेंगे। हरिबाबा बोले-तुझे उस किनारे पर शक आता है या नहीं
शिष्य बोला-यह भी कोई बात हुई जब यह किनारा है तो दूसरा भी होगा। आप एक पतवार से नाव चलायेंगे, तो नाव यूँ ही गोल चक्कर काटती रहेगी। यह एक दुष्चक्र बनकर रह जायेगी। हरिबाबा ने दूसरी पतवार उठा ली। अब तो नाव तीर की तरह बढ़ चली। वह बोले-मैं तुझसे भी यही कह रहा हूँ कि तू जो परमात्मा की तरफ जाने की चेष्टा कर रहा है-वह बड़ी आधी-अधूरी है। एक ही पतवार से नाव चलाने की कोशिश हो रही है। आधा मन तेरा इस किनारे पर उलझा है, आधा मन उस किनारे पर जाना चाहता है। तू आधा-आधा है। तू बस यूँ ही कुनकुना सा है। जबकि साधना में साधक की जिन्दगी खौलती हुई होनी चाहिए।

सर्वशत्रु बाधा व भुत प्रेत विनाशक बगला प्रत्यंगिरा कवच

ॐ अस्य श्री बगला प्रत्यंगिरा मंत्रस्य नारद ऋषि स्त्रिष्टुप छन्द प्रत्यंगिरा देवता ह्ल्रीं बीज हुं शक्तिः ह्रीं कीलकं ह्लीं ह्लीं ह्लीं ह्लीं प्रत्यंगिरा मम् शत्रु विनाशे जपे विनियोगः |


मंन्त्र--ॐ प्रत्यंगिरायै नमः प्रत्यंगिरे सकल कामान्  साध्य मम् रक्षां कुरू कुरू सर्वान शत्रुन खादय खादय् मारय मारय घातय घातय ॐ ह्रीं फट् स्वाहा 


ॐ भ्रामरी स्तम्भिनी देवी  क्षोभिणी मोहनी तथा संहारिणी द्राविणी च जृम्भणी रौद्ररूपिणी इत्यष्टौ शक्तयो देवि शत्रुपक्षे नियोजताः धारयेत् कण्ठदेशे च सर्व शत्रु विनाशनी


ॐ ह्रीं भ्रामरी सर्व शत्रुन भ्रामय भ्रामय ॐ ह्री स्वाहा 

ॐ ह्रीं स्तम्भिनी मम् शत्रुन स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्री स्वाहा

ॐ ह्रीं क्षोभिणी मम शत्रु क्षोभय क्षोभय ॐ ह्रीं स्वाहा

ॐ ह्रीं मोहिनी मम् शत्रुन मोहय मोहयॐ ह्रीं स्वाहा

ॐ ह्रीं सहांरिणी मम शत्रुन संहारय संहारय ॐ ह्रीं स्वाहा

ॐ ह्रीं द्रावणी मम शत्रुन द्रावय द्रावय ॐ ह्रीं स्वाहा

ॐ ह्रीं जृम्भिणी मम शत्रुन जृम्भय जृम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा

ॐ ह्रीं रौद्रि मम शत्रुन सन्तापय  सन्तापय ॐ ह्रीं स्वाहा

दारिद्र्य नाशक धूमावती साधना

जीवन में कई बार ऐसे पल आ जाते है की हम निराश हो जाते है,अपनी गरीबी से अपनी तकलीफों से,और इस बात को नहीं नाकारा जा सकता की हर इन्सान को धन की आवश्यकता होती है जीवन के ९९ % काम धन के आभाव में अधूरे है यहाँ तक की साधना करने के लिए भी धन लगता है, तो क्यों और कब तक बैठे रहोगे इस गरीबी का रोना लेकर क्यों ना इसे उठा कर फेक दिया जाये जीवन से |

मेरे सभी प्यारे भाइयो और बहनों के लिए एक विशेष साधना दे रहा हु जिससे उनके आर्थिक कष्ट माँ की कृपा से समाप्त हो जायेंगे |ये मेरी अनुभूत साधना है आप संपन्न करे और माँ की कृपा के पात्र बने |

साधना सामग्री. एक सूपड़ा,स्फटिक या तुलसी माला |

विधि: यह साधना धूमावती जयंती से आरम्भ करे,समय रात्रि १० बजे का होगा, आप सफ़ेद वस्त्र धारण कर सफ़ेद आसन पर पूर्व मुख कर बैठ जाये. सामने बजोट पर सूपड़ा रख कर उसमे सफ़ेद वस्त्र बिछा दे फिर उसमे धूमावती यन्त्र स्थापित करे,इसके बाद गाय के कंडे से बनी भस्म यन्त्र पर अर्पण करे घी का दीपक जलाये,पेठे का भोग अर्पण करे, माँ से प्रार्थना करे की में यह साधना अपनी दरिद्रता से मुक्ति के लिए कर रहा हु आप मेरी साधना को सफलता प्रदान करे तथा मेरे सभी कष्टों को दूर कर दे.

इसके बाद निम्न मंत्र की एक माला करे " ॐ धूम्र शिवाय नमः "

इसके बाद " धूं धूं धूमावती ठह ठह " की २१ माला करे.

फिर पुनः एक माला " ॐ धूम्र शिवाय नमः " मंत्र की करे.

जप के बाद दिल से माँ से प्रार्थना करे और इस साधना को २१ दिन तक करे. साधना पूरी होने के बाद सुपडे को यन्त्र सहित उठाकर माँ से प्रार्थना करे की माँ आप हमारी सभी पापो को क्षमा करे और आज आप हमारे जीवन के सारे दुःख सारी दरिद्रता को आपके इस पवित्र सुपडे में भर के ले जाये है माँ हमारे जीवन में कभी दरिद्रता ना लोटे ऐसी दया करे. इसके बाद सुपडे और यन्त्र को जल में प्रवाहित कर दे या किसी निर्जन स्थान में रख दे. निश्चित माँ की आप पर कृपा बरसेगी और जीवन की दरिद्रता कोसो दूर चली जाएगी

त्रिपुर भैरवी साधना

दस महाविद्याओ में छठवें स्थान पर विद्यमान त्रिपुर-भैरवी, संहार तथा विध्वंस की पूर्ण शक्ति है। त्रिपुर शब्द का अर्थ है, तीनो लोक “स्वर्ग, विश्व और पाताल” और भैरवी विनाश के एक सिद्धांत के रूप में अवस्थित हें, तात्पर्य है तीन लोको में सर्व नष्ट या विध्वंस कि जो शक्ति है, वह भैरवी है।

देवी त्रिपुर भैरवी का घनिष्ठ सम्बन्ध ‘काल भैरव’ से है, जो जीवित तथा मृत मानवो को अपने दुष्कर्मो के अनुसार दंड देते है तथा अत्यंत भयानक स्वरूप वाले तथा उग्र स्वाभाव वाले हैं। काल भैरव, स्वयं भगवान शिव के ऐसे अवतार है, जिन का घनिष्ठ सम्बन्ध विनाश से है तथा ये याम राज के भी अत्यंत निकट हैं, जीवात्मा को अपने दुष्कर्मो का दंड इन्हीं के द्वारा दी जाती हैं।

इनके ध्यान का उल्लेख दुर्गासप्तशती के तीसरे अध्याय में महिषासुर वध के प्रसंग में हुआ है। इनका रंग लाल है। ये लाल वस्त्र पहनती हैं, गले में मुंडमाला धारण करती हैं और शरीर पर रक्त चंदन का लेप करती हैं। ये अपने हाथों में जपमाला, पुस्तक तथा वर और अभय मुद्रा धारण करती हैं। ये कमलासन पर विराजमान हैं। भगवती त्रिपुरभैरवी ने ही मधुपान करके महिषका हृदय विदीर्ण किया था। रुद्रयामल एवं भैरवी कुल सर्वस्व में इनकी उपासना करने का विधान है।

इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करने का दृढ़ निर्णय लिया था। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी इनकी तपस्या को देखकर दंग रह गए। इससे सिद्ध होता है कि भगवान शंकर की उपासना में निरत उमा का दृ़ढ़निश्चयी स्वरूप ही त्रिपुरभैरवी का परिचालक है। त्रिपुरभैरवी की स्तुति में कहा गया है कि भैरवी सूक्ष्म वाक् तथा जगत में मूल कारण की अधिष्ठात्री हैं।

त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं। यह बंदीछोड़ माता है। भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि। त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं।

माता की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। इन्हें षोडशी भी कहा जाता है। षोडशी को श्रीविद्या भी माना जाता है। यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है। इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है। जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है। आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है।

जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य सिद्धि के लिए इस देवी की आराधना की जाती है। इसकी साधना से धन सम्पदा की प्राप्ति होती है, मनोवांछित वर या कन्या से विवाह होता है। षोडशी का भक्त कभी दुखी नहीं रहता है।

प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं। पहला:- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)।

माँ त्रिपुर भैरवी के अन्य तेरह स्वरुप हैं इनका हर रुप अपने आप अन्यतम है। माता के किसी भी स्वरुप की साधना साधक को सार्थक कर देती है। माँ त्रिपुर भैरवी कंठ में मुंड माला धारण किये हुए हैं। माँ ने अपने हाथों में माला धारण कर रखी है। माँ स्वयं साधनामय हैं उन्होंने अभय और वर मुद्रा धारण कर रखी है जो सदैव अपने भक्तों को सौभाग्य प्रदान करती है। माँ ने लाल वस्त्र धारण कियए है, माँ के हाथ में विद्या तत्व है। माँ त्रिपुर भैरवी की पूजा में लाल रंग का उपयोग करने से माता अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाती है।माँ त्रिपुर भैरवी बीज मंत्र

माँ त्रिपुर भैरवी के बीज मंत्रों का जप करने से एक साथ अनेक संकटों से मुक्ति मिल जाती है। इन मंत्रों का जप करने वाला अत्यधिक धन का स्वामी बनकर जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य का अधिकारी बन जाता है।

भैरवी काम उत्पीड़न से बचने का सांसारिक व प्रायोगिक है। वह है शिव एवं शक्ति को अपने जीवन में समान महत्व देना, उनकी उपासना एवं त्रिपुर भैरवी की अराधना। इस भैरवी उत्पीड़न से मुक्ति का एकमात्र रास्ता है श्री त्रिपुर भैरवी की तांत्रोक्त अराधना एवं भैरव्यास्त्र।

साधक व त्रिपुरा सुंन्दरी के बीच उनकी रथवाहिका के रूप में रास्ता रोके खड़ीं होती हैं श्री त्रिपुर भैरवी। जिस की सन्तुष्टि पूजन साधना से ही रास्ता सुगम है जाता है।

माँ त्रिपुर भैरवी के स्वरूप शास्त्रों में माँ भैरवी के विभिन्न स्वरूप होते हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी एवं षटकुटा भैरवी आदि।

देवी भागवत के अनुसार महाकाली के उग्र और सौम्य दो रुपों में अनेक रुप धारण करने वाली दस महा-विद्याएं है। माँ का स्वरूप सृष्टि के निर्माण और संहार क्रम को जारी रखे हुए है। माँ त्रिपुर भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण से परिपूर्ण हैं।

महाविद्या त्रिपुरा भैरवी की साधना नवरात्रि या शुक्ल पक्ष के बुधवार या शुक्रवार के दिन से शुरू कर सकते हैं !समय रात्रि नौ बजे के बाद कर सकते हैं !माँ त्रिपुर भैरवी साधना पूजा विधि साधक को स्नान करके शुद्ध लाल वस्त्र धारण करके अपने घर में किसी एकान्त स्थान या पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की तरफ़ मुख करके लाल ऊनी आसन पर बैठ जाए !उसके बाद अपने सामने चौकी रखकर उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान शिव यंत्र स्थापित करें ! फिर प्लेट रखकर रोली से त्रिकोण बनाये उस त्रिकोण में पर के ऊपर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त “त्रिपुरा भैरवी यंत्र” को स्थापित करें !

उसके बाद यन्त्र के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर यंत्र का पूजन करें । तुम्हारे एवं त्रिपूरा सुन्दरी के बीच उनकी रथवाहिका के रूप में रास्ता रोके खड़ीं हैं।त्रिपुर भैरवी यंत्र पर मंत्र पढ़ते हुए कुछ लाल पुष्प विषेशकर गुलाब के फूल चढ़ाये।भैरवी से मुक्ति का रास्ता मिल जाएगा। सुगन्धित इत्र बेला, गुलाब या चमेली का भी साथ में चढ़ाये। और मन्त्र विधान अनुसार संकल्प आदि कर सीधे हाथ में जल लेकर

विनियोग पढ़े :  अस्य श्री त्रिपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि: पंक्तिश्छ्न्द: त्रिपुर भैरवी देवता वाग्भवो बीजं शक्ति बीजं शक्ति: कामराज कीलकं श्रीत्रिपुरभैरवी प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:

ऋष्यादि न्यास : बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए अपने भिन्न भिन्न अंगों को स्पर्श करें.

मंत्र :

दक्षिणामूर्तये ऋषये नम: शिरसि ( सर को स्पर्श करें )पंक्तिच्छ्न्दे नम: मुखे ( मुख को स्पर्श करें )श्रीत्रिपुरभैरवीदेवतायै नम: ह्रदये ( ह्रदय को स्पर्श करें )वाग्भवबीजाय नम: गुहे ( गुप्तांग को स्पर्श करें )शक्तिबीजशक्तये नम: पादयो: ( दोनों पैरों को स्पर्श करें )कामराजकीलकाय नम: नाभौ ( नाभि को स्पर्श करें )विनियोगाय नम: सर्वांगे ( पूरे शरीर को स्पर्श करें )

कर न्यास : अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है।

हस्त्रां अंगुष्ठाभ्यां नम: । ह्स्त्रीं तर्जनीभ्यां नम: । ह्स्त्रूं मध्यमाभ्यां नम: । हस्त्रैं अनामिकाभ्यां नम: । ह्स्त्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: । हस्त्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।

ह्र्दयादि न्यास : पुन: बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं ! ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है

न्यास करें : हस्त्रां ह्रदयाय नम: । हस्त्रां शिरसे स्वाहा । ह्स्त्रूं शिखायै वषट् । हस्त्रां कवचाय हुम् । ह्स्त्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् । हस्त्र: अस्त्राय फट् ।

त्रिपुर भैरवी ध्यान इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती त्रिपुर भैरवी का ध्यान करके पूजन करें। धुप, दीप, चावल, पुष्प से ।

इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती त्रिपुर भैरवी का ध्यान करके, त्रिपुर भैरवी माँ का पूजन करे धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर त्रिपुर भैरवी महाविद्या का पूजा करें

ध्यान

उधदभानुसहस्त्रकान्तिमरूणक्षौमां शिरोमालिकां,रक्तालिप्रपयोधरां जपवटी विद्यामभीतिं परम् ।हस्ताब्जैर्दधतीं भिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं,

देवी बद्धहिमांशुरत्नस्त्रकुटां वन्दे समन्दस्मिताम् ।।तांत्रोक्त श्री त्रिपुर भैरवी ध्यान हं हं हं हंस हंसी स्मित कह कह चामुक्त घोर अट्टहासा।

खं खं खं खड्गहस्ते त्रिभुवन निलये कालभैरवी कालधारी।।रं रं रं रंगरंगी प्रमुदित वदने पिर्घैंकेषी श्मशाने।यं रं लं तापनीये भ्रकुटि घट घटाटोप, टंकार जापे।।हं हं हंकारनादं नर पिषितमुखी संधिनी साध्रदेवी।ह्रीं ह्रीं ह्रीं कुष्माण्ड मुण्डी वर वर ज्वालिनी पिंगकेषी कृषांगी।।

खं खं खं भूत नाथे किलि किलि किलिके एहि एहि प्रचण्डे। ह्रुम ह्रुम ह्रुम भूतनाथे सुर गण नमिते मातरम्बे नमस्ते।।भां भां भां भावैर्भय हन हनितं भुक्ति मुक्ति प्रदात्री।भीं भीं भीं भीमकाक्षिर्गुण गुणित गुहावास भोगी सभोगी।।भूं भूं भूं भूमिकम्पे प्रलय च निरते तारयन्तं स्व नेत्रे।भें भें भें भेदनीये हरतु मम भयं भैरव्ये त्वां नमस्ते।।हां हां हाकिनी स्वरूपिणी भैरवी क्षेत्रपालिनी।कां कां कां कानिनी स्वरूपा भैरवी व्याधिनाशिनी।।रां रां रां राकिनी स्वरूपा भैरवी शत्रुमर्द्दिनी।लां लां लां लाकिनी स्वरूपा भैरवी दुःख दारिद्रनाषिनी।।भैं भैं भैं भ्रदकालिके क्रूर ग्रह बाधा निवारिणी।फ्रैं फ्रैं फ्रैं नवनाथात्मिके गूढ़ ज्ञानप्रदायिनि।।ईं ईं ईं रूद्रभैरवी स्वरूपा रूद्रग्रंथिभेदिनि।उं उं उं विश्णुवामांगे स्थिता विष्णु ग्रंथि भेदिनी।च्लूं च्लूं च्लूं नीलपताके सर्वसिद्धि प्रदायिनी ।अं अं अं अंतरिक्षे सर्वदानव ग्रह बंधिनी।।स्त्रां स्त्रां स्त्रां सप्तकोटि स्वरूपा आदिव्याधि त्रोटिनी।क्रों क्रों क्रों कुरूकुल्ले दुष्ट प्रयोगान नाशिनी।।ह्रीं ह्रीं ह्रीं अंबिके भोग मोक्ष प्रदायिनी।क्लीं क्लीं क्लीं कामुके कामसिद्धि दायिनी।।

ऊपर दिया गया पूजन सम्पन्न करके सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित “मूंगा’ माला” की माला से नीचे दिए गये मंत्र की 23 माला 11 दिनों या 63 माला 21 दिन तक जप करें ! और मंत्र उच्चारण करने के बाद त्रिपुर भैरवी का मंत्र जप मंत्र सिद्ध भैरवी माला से करें

माँ त्रिपुर भैरवी साधना सिद्धि मन्त्र 

॥ ह सें ह स क रीं ह सें ॥या॥ ॐ हसरीं त्रिपुर भैरव्यै नम: ॥त्रिपुर भैरवी का मंत्र मुंगे की माला से पंद्रह माला ‘ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:’

मंत्र का जाप कर सकते हैं। 

माँ त्रिपुर भैरवी बीज मंत्र माँ त्रिपुर भैरवी के बीज मंत्रों का जप करने से एक साथ अनेक संकटों से मुक्ति मिल जाती है। इन मंत्रों का जप करने वाला अत्यधिक धन का स्वामी बनकर जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य का अधिकारी बन जाता है। साथ ही मनोवांछित वर या कन्या को जीवनसाथी के रूप में प्राप्त करता है।

1- ।। ह्रीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:।। 2- ।। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः।। 3- ।। ॐ ह्रीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै नमो नम:।।

साधना विधान:  गणेश,गुरु,शिव पुजन भी नित्य किया करें। यह साधना 9 दिन की है और मंत्र जाप रुद्राक्ष माला से करें। यह साधना किसी भी नवरात्रि मे कर सकते है। आसन-वस्त्र लाल रंग के हो और उत्तर दिशा के तरफ मुख करके मंत्र जाप करें। मंत्र जाप से पुर्व अपनी कोई भी 3 इच्छाएं पुर्ण होने हेतु देवि से प्रार्थना करें। नित्य कम से कम 15 माला मंत्र जाप करें। साधक अपने गुरु से त्रिपुर भैरवी दीक्षा प्राप्त कर सकता है तो अवश्य ही येसा करने पर उसे पुर्ण सफलता प्राप्त हो सकती है। इस साधना से सभी मनोकामनाए पुर्ण होती है।

9 दिन के बाद जब साधना पुर्ण हो जाये तब हवन के समय एक अनार का बलि देना जरुरी है। 

साधना पूरी होने के बाद मन्त्रों का जाप करने के बाद दिए गये मन्त्र जिसका आपने जाप किया हैं उस मन्त्र का दशांश ( 10% भाग ) हवन अवश्य करें ! हवन में कमल गट्टे, कलम पुष्प, शुद्ध घी व् हवन सामग्री को मिलाकर आहुति दें ! हवन के बाद त्रिपुर भैरवी यंत्र को अपने घर के मंदिर या तिजोरी में लाल वस्त्र से बांधकर एक साल के लिए रख दें . और बाकि बची हुई पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जन कर आयें ! ऐसा करने से साधक की साधना पूर्ण हो जाती हैं ! और साधक के ऊपर माँ त्रिपुर भैरवी देवी की कृपा सदैव बनी रही हैं ! त्रिपुरा भैरवी मंत्र हवन यज्ञ तर्पण मार्जन साधना करने से साधक के जीवन में धन, धान्य और यश प्रदान करती है ! और साधक के जीवन की दरिद्रता समाप्त हो जाती है!

त्रिपुर भैरवी का शाबर मंत्र  ।। ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की । अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती !

रविवार, 3 जुलाई 2022

मनचाहे धन की प्राप्ति हेतु संकटनाशन गणेश स्तोत्र के 21 पाठ नित्य छ माह तक करें

 सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्म व स्नान आदि से निवृत होकर भगवान गणेश जी का चित्र अथवा मूर्ति सामने रखकर उनका भक्ति भाव से गंध, पुष्प, धुप, दीप और नैवेद्य द्वारा पूजन करें और अपने संकटों का नाश करने की प्रार्थना करें | संकल्प करके निम्न संकटनाशन गणेश स्तोत्र का इक्कीस पाठ सूर्योदय से पहले करें |


संकटनाशन गणेश स्तोत्र


प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।

भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।


प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।

तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।


लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।

सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।


नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।


द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।


विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।


जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।

संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।


अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।

तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।


लगातार छ माह तक नित्य 21 पाठ करने से भगवान गणेश की कृपा हो जाती है और मनचाहे धन की प्राप्ति होने लगती है | ऐसा अनुभूत है |

रविवार, 17 अप्रैल 2022

धन प्राप्ति के लिए सप्तपंथ युक्त त्रिशक्ति साधना

 बंगाल कि रानी करे मेहमानी  मूंज बनी के कावा पद्मावती बैठ खावे मावा  सत्तर सुलेमान ने हनुमान को रोट लगाया हनुमान ने राह संकट हराया तारा देवी आवे घर हात उठा के देवे वर सतगुरु ने सत्य का सब्द सुनाया सुन जोगी आसन लगाया किसके आसन किसके जाप  जो बोल्यो सतगुरु आप  हर की  पौड़ी लछमी की  कौड़ी  सुलेमान आवे चढ़ घोड़ी  आउ आउ  पद्मावती माई करो भलाई न करे तो गुरु गोरख कि दुहाई । 


नित्य प्रातः स्नान करके शुद्ध वत्र पहनकर पूर्व ये उत्तर दिशा कि ओर मुख करके नित्य 108 मन्त्र  जप करना है 41 दिन तक ।  इस मंत्र का चमत्कार देखकर आप स्वयं आश्चर्य चकित रह जायेंगे । 

शनिवार, 12 मार्च 2022

श्री दुर्गा सप्तशती बीजमंत्रात्मक साधना

 श्री दुर्गा सप्तशती बीजमंत्रात्मक साधना 


. ॐ श्री गणेशाय नमः (११ बार)


. ॐ ह्रों जुं सः सिद्ध गुरूवे नमः (११ बार)


. ॐ दुर्गे दुर्गे रक्ष्णी ठः ठः स्वाहः (१३ बार)


 💐 सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम..💐


. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामण्डायै विच्चे |


. ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः


ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रींक्लीं चामुण्डायै विच्चै


 ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ||


नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दीनि |


नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दीनि ||


नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भसुरघातिनि |


जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ||


ऐंकारी सृष्टीरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका | क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे


 नमोस्तुते ||

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी |


विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ||


धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी |


क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुंभ कुरू ||


हुं हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी |


भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रै भवान्यै ते नमो नमः ||


अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं |


धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ||


पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा | सां सीं सूं सप्तशती देव्या


 मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ||


. |ॐ नमश्चण्डिकायैः |ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||


. ।। प्रथमचरित्र...।।


. ॐ अस्य श्री प्रथमचरित्रस्य ब्रह्मा रूषिः महाकाली देवता गायत्री छन्दः


 नन्दा शक्तिः रक्तदन्तिका बीजम् अग्निस्तत्त्वम् रूग्वेद स्वरूपम्


 श्रीमहाकाली प्रीत्यर्थे प्रथमचरित्र जपे विनियोगः|



(१) श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं प्रीं ह्रां ह्रीं सौं प्रें म्रें ल्ह्रीं म्लीं स्त्रीं क्रां स्ल्हीं क्रीं चां भें क्रीं वैं


 ह्रौं युं जुं हं शं रौं यं विं वैं चें ह्रीं क्रं सं कं श्रीं त्रों स्त्रां ज्यैं रौं द्रां द्रों ह्रां द्रूं शां म्रीं


 श्रौं जूं ल्ह्रूं श्रूं प्रीं रं वं व्रीं ब्लूं स्त्रौं ब्लां लूं सां रौं हसौं क्रूं शौं श्रौं वं त्रूं क्रौं क्लूं


 क्लीं श्रीं व्लूं ठां ठ्रीं स्त्रां स्लूं क्रैं च्रां फ्रां जीं लूं स्लूं नों स्त्रीं प्रूं स्त्रूं ज्रां वौं ओं श्रौं


 रीं रूं क्लीं दुं ह्रीं गूं लां ह्रां गं ऐं श्रौं जूं डें श्रौं छ्रां क्लीं ।



|ॐ नमश्चण्डिकायैः |ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||



. ।।। मध्यमचरित्र..।।


ॐ अस्य श्री मध्यमचरित्रस्य विष्णुर्रूषिः महालक्ष्मीर्देवता उष्णिक छन्दः


 शाकम्भरी शक्तिः दुर्गा बीजम् वायुस्तत्त्वम् यजुर्वेदः स्वरूपम्


 श्रीमहालक्ष्मी प्रीत्यर्थे मध्यमचरित्र जपे विनियोगः


(२) श्रौं श्रीं ह्सूं हौं ह्रीं अं क्लीं चां मुं डां यैं विं च्चें ईं सौं व्रां त्रौं लूं वं ह्रां क्रीं सौं यं


 ऐं मूं सः हं सं सों शं हं ह्रौं म्लीं यूं त्रूं स्त्रीं आं प्रें शं ह्रां स्मूं ऊं गूं व्र्यूं ह्रूं भैं ह्रां क्रूं


 मूं ल्ह्रीं श्रां द्रूं द्व्रूं ह्सौं क्रां स्हौं म्लूं श्रीं गैं क्रूं त्रीं क्ष्फीं क्सीं फ्रों ह्रीं शां क्ष्म्रीं रों डुं


 ।


।।ॐ नमश्चण्डिकायैः |ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||


(३) श्रौं क्लीं सां त्रों प्रूं ग्लौं क्रौं व्रीं स्लीं ह्रीं हौं श्रां ग्रीं क्रूं क्रीं यां द्लूं द्रूं क्षं ह्रीं क्रौं


 क्ष्म्ल्रीं वां श्रूं ग्लूं ल्रीं प्रें हूं ह्रौं दें नूं आं फ्रां प्रीं दं फ्रीं ह्रीं गूं श्रौं सां श्रीं जुं हं सं ।


।।ॐ नमश्चण्डिकायैः |ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||


(४) श्रौं सौं दीं प्रें यां रूं भं सूं श्रां औं लूं डूं जूं धूं त्रें ल्हीं श्रीं ईं ह्रां ल्ह्रूं क्लूं क्रां लूं फ्रें


 क्रीं म्लूं घ्रें श्रौं ह्रौं व्रीं ह्रीं त्रौं हलौं गीं यूं ल्हीं ल्हूं श्रौं ओं अं म्हौं प्री


|ॐ नमश्चण्डिकायैः |ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||


. ।। उत्तमचरित्र.. ।।

ॐ अस्य श्री उत्तरचरित्रस्य रुद्र रूषिः महासरस्वती देवता अनुष्टुप् छन्दः


 भीमा शक्तिः भ्रामरी बीजम सूर्यस्तत्त्वम सामवेदः स्वरूपम श्री


 महासरस्वती प्रीत्यर्थे उत्तरचरित्र जपे विनियोगः


(५) श्रौं प्रीं ओं ह्रीं ल्रीं त्रों क्रीं ह्लौं ह्रीं श्रीं हूं क्लीं रौं स्त्रीं म्लीं प्लूं ह्सौं स्त्रीं ग्लूं


 व्रीं सौः लूं ल्लूं द्रां क्सां क्ष्म्रीं ग्लौं स्कं त्रूं स्क्लूं क्रौं च्छ्रीं म्लूं क्लूं शां ल्हीं स्त्रूं


 ल्लीं लीं सं लूं हस्त्रूं श्रूं जूं हस्ल्रीं स्कीं क्लां श्रूं हं ह्लीं क्स्त्रूं द्रौं क्लूं गां सं ल्स्त्रां


 फ्रीं स्लां ल्लूं फ्रें ओं स्म्लीं ह्रां ऊं ल्हूं हूं नं स्त्रां वं मं म्क्लीं शां लं भैं ल्लूं हौं ईं


 चें क्ल्रीं ल्ह्रीं क्ष्म्ल्रीं पूं श्रौं ह्रौं भ्रूं क्स्त्रीं आं क्रूं त्रूं डूं जां ल्ह्रूं फ्रौं क्रौं किं ग्लूं


 छ्रंक्लीं रं क्सैं स्हुं श्रौं श्रीं ओं लूं ल्हूं ल्लूं स्क्रीं स्स्त्रौं स्भ्रूं क्ष्मक्लीं व्रीं सीं भूं लां


 श्रौं स्हैं ह्रीं श्रीं फ्रें रूं च्छ्रूं ल्हूं कं द्रें श्रीं सां ह्रौं ऐं स्कीं ।



।।ॐ नमश्चण्डिकायैः |ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||



(६) श्रौं ओं त्रूं ह्रौं क्रौं श्रौं त्रीं क्लीं प्रीं ह्रीं ह्रौं श्रौं अरैं अरौं श्रीं क्रां हूं छ्रां क्ष्मक्ल्रीं


 ल्लुं सौः ह्लौं क्रूं सौं ।


।।ॐ नमश्चण्डिकायैः |ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||


(७) श्रौं कुं ल्हीं ह्रं मूं त्रौं ह्रौं ओं ह्सूं क्लूं क्रें नें लूं ह्स्लीं प्लूं शां स्लूं प्लीं प्रें अं


 औं म्ल्रीं श्रां सौं श्रौं प्रीं हस्व्रीं ।


।|ॐ नमश्चण्डिकायैः |ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||


(८) श्रौं म्हल्रीं प्रूं एं क्रों ईं एं ल्रीं फ्रौं म्लूं नों हूं फ्रौं ग्लौं स्मौं सौं स्हों श्रीं ख्सें


 क्ष्म्लीं ल्सीं ह्रौं वीं लूं व्लीं त्स्त्रों ब्रूं श्क्लीं श्रूं ह्रीं शीं क्लीं फ्रूं क्लौं ह्रूं क्लूं तीं म्लूं


 हं स्लूं औं ल्हौं श्ल्रीं यां थ्लीं ल्हीं ग्लौं ह्रौं प्रां क्रीं क्लीं न्स्लुं हीं ह्लौं ह्रैं भ्रं सौं


 श्रीं प्सूं द्रौं स्स्त्रां ह्स्लीं स्ल्ल्रीं ।


।|ॐ नमश्चण्डिकायैः |ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||


(९) रौं क्लीं म्लौं श्रौं ग्लीं ह्रौं ह्सौं ईं ब्रूं श्रां लूं आं श्रीं क्रौं प्रूं क्लीं भ्रूं ह्रौं क्रीं म्लीं


 ग्लौं ह्सूं प्लीं ह्रौं ह्स्त्रां स्हौं ल्लूं क्स्लीं श्रीं स्तूं च्रें वीं क्ष्लूं श्लूं क्रूं क्रां स्क्ष्लीं भ्रूं


 ह्रौं क्रां फ्रूं


।।ॐ नमश्चण्डिकायैः|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||


(१०) श्रौं ह्रीं ब्लूं ह्रीं म्लूं ह्रं ह्रीं ग्लीं श्रौं धूं हुं द्रौं श्रीं त्रों व्रूं फ्रें ह्रां जुं सौः स्लौं प्रें


 हस्वां प्रीं फ्रां क्रीं श्रीं क्रां सः क्लीं व्रें इं ज्स्हल्रीं ।



।|ॐ नमश्चण्डिकायैः|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||



(११) श्रौं क्रूं श्रीं ल्लीं प्रें सौः स्हौं श्रूं क्लीं स्क्लीं प्रीं ग्लौं ह्स्ह्रीं स्तौं लीं म्लीं स्तूं


 ज्स्ह्रीं फ्रूं क्रूं ह्रौं ल्लूं क्ष्म्रीं श्रूं ईं जुं त्रैं द्रूं ह्रौं क्लीं सूं हौं श्व्रं ब्रूं स्फ्रूं ह्रीं लं ह्सौं सें


 ह्रीं ल्हीं विं प्लीं क्ष्म्क्लीं त्स्त्रां प्रं म्लीं स्त्रूं क्ष्मां स्तूं स्ह्रीं थ्प्रीं क्रौं श्रां म्लीं ।



।|ॐ नमश्चण्डिकायैः|ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु||



(१२) ह्रीं ओं श्रीं ईं क्लीं क्रूं श्रूं प्रां स्क्रूं दिं फ्रें हं सः चें सूं प्रीं ब्लूं आं औं ह्रीं क्रीं द्रां


 श्रीं स्लीं क्लीं स्लूं ह्रीं व्लीं ओं त्त्रों श्रौं ऐं प्रें द्रूं क्लूं औं सूं चें ह्रूं प्लीं क्षीं ।



।|ॐ नमश्चण्डिकायैः |ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||



(१३) श्रौं व्रीं ओं औं ह्रां श्रीं श्रां ओं प्लीं सौं ह्रीं क्रीं ल्लूं ह्रीं क्लीं प्लीं श्रीं ल्लीं श्रूं ह्रूं


 ह्रीं त्रूं ऊं सूं प्रीं श्रीं ह्लौं आं ओं ह्रीं


।।ॐ नमश्चण्डिकायैः | ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||


दुर्गा दुर्गर्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी |


दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी ||


दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा |


दुर्गमग्यानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला ||


दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी |


दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ||


दुर्गमग्यानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी |


दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी ||


दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी |


दुर्गमाँगी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ||


दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी ||



।।ॐ नमश्चण्डिकायैः | ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ||


 माँ के बिग्रह को ध्यान में रख साधना करें ,अत्यंत ही शुभफल की प्राप्ति होगी । 

सोमवार, 13 दिसंबर 2021

सनातन हिन्दू धर्म में अहिंसा का कही वर्णन नहीं है हिन्दू धर्म में " सठे साठयम समाचरेत " है

 माननीय राहुल गाँधी जी ने कहा की हिन्दू अहिंसावादी होता है ये उनका अज्ञान है | अहिंसा की अवधारणा बुद्ध और जैन अवतार के बाद सृजित हुई है | हमारे सनातन हिन्दू धर्म के आदर्श भगवान राम, कृष्ण, शिव और माँ दुर्गा हैं | जिन्होंने हमेशा आततायिओं को दंड दिया है | हमारा धर्म दुष्ट को दंड देने को कहता है | कायर नहीं बनाता | भगवान राम ने रावण को उसके कुकर्म के कारण उसके समस्त कुल परिवार सहित मार दिया था | भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कहा की कायरता छोड़कर युद्ध करो और हार जीत की परवाह मत करो | अन्यायी को दंड दो | यही हमारे सनातन धर्म की सीख है | यही हमारा आदर्श है |

अतः माननीय राहुल गाँधी उर्फ़ पप्पू जी भगवान बुद्ध और भगवान महावीर जैन के ज्ञान को हिन्दू धर्म में न मिलाये | हमारे सनातन हिन्दू धर्म में अहिंसा का कही वर्णन नहीं है | हमारे यहाँ कहा गया है " सठे साठयम समाचरेत " अर्थात जो आपके साथ जैसा वयव्हार करे आप उसको वैसा ही जवाब दो | दुष्ट को दुष्टता का दंड दो | दुष्ट को क्षमा करना सनातन धर्म में नहीं है |
बुद्ध और जैन धर्म की अहिंसा अहिंसा करते रहने से ही महात्मा गाँधी और नेहरू ने कायरता की मानसिकता को बढावा दिया जिससे की भारत पिछले 70 वर्षो में एक कायर देश के रूप में प्रसिद्द हो चूका था |
अब ये नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ नामक हिन्दू महानायक लोगो को उस कायरतापूर्ण मानसिकता से निकालने का काम कर रहें है | पर ये राहुल नामक पप्पू खुद भी कायर है और कायरता को बढ़ावा दे रहा है |
सुधि जन विचार करेंगे |

रविवार, 18 अप्रैल 2021

श्री गुरुदेव दत्तात्रेय मन्त्र पुष्पांजलि

 श्री गुरुदेव दत्त अवधूत मारग सिद्ध चौरासी तपस्या करें ।

श्री भेशकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवशंकर कैलाष में ध्यान करें ।।धृ.।। हरिः ॐ गुरुजी ।।

बिछी है जाजम लगा है तकिया नाम निरंजन स्वामी वे जपें ।

श्री भेशकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवशंकर कैलाष में ध्यान करें ।।1।। हरिः ॐ गुरुजी ।।

पीर होकर गद्दी जो बैठे तजि तुरंगाहस्ति वे चढें ।

श्री भेशकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवशंकर कैलाष में ध्यान करें ।।2।। हरिः ॐ गुरुजी ।।

पंडित होकर वेद जो बांचे धन्धा उपाधि से न्यारा रहे ।

श्री भेशकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवशंकर कैलाष में ध्यान करें ।।3।। हरिः ॐ गुरुजी ।।

ऋशि जो मुनि गुरु दूधा जो धारी उर्ध्व बाहू तपस्या करें ।

श्री भेशकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवशंकर कैलाष में ध्यान करें ।।4।। हरिः ॐ गुरुजी ।।

रुखड़ सुखड़ धूप जो खेवे नागा सन्यासि तपस्या करें ।

श्री भेशकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवशंकर कैलाष में ध्यान करें ।।5।। हरिः ॐ गुरुजी ।।

कोई है लाखी गुरु कोई है खाकी बनखंडी वन में तपस्या करें ।

श्री भेशकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवषंकर कैलाष में ध्यान करें ।।6।। हरिः ॐ गुरुजी ।।

आबू जी गढ गिरनार वासा महोरगढ भिक्षा करें ।

श्री भेशकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवशंकर कैलाष में ध्यान करें ।।7।। हरिः ॐ गुरुजी ।।

जपत ब्रम्हा गुरु रटत विश्णु आदि देव महेष्वरम ।

श्री भेशकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवशंकर कैलाष में ध्यान करें ।।8।। हरिः ॐ गुरुजी ।।

दशनाम भेष गुरु जीवन सन्यासि सर्वदेव रक्षा करें ।

श्री भेशकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवशंकर कैलाष में ध्यान करें ।।9।। हरिः ॐ गुरुजी ।।

देव भारत देव लीला दोउ कर जोडे स्तुति करें ।

श्री भेशकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवशंकर कैलाष में ध्यान करें ।।10।। हरिः ॐ गुरुजी ।।

चन्दा जो सूरज नौ लख तारे गुरुजी तुम्हारी परिक्रमा करें ।

श्री भेषकीयो शम्भु टेक कारण गुरुजी शिखर पर जप करें ।।

श्री गुरुदत्तात्रेय गिरनार पर जप करें अलखजी माहोरगढ राज करें ।

श्री शिवशंकर कैलाष में ध्यान करें ।।11।।

हरिः ॐ गुरुजी ।।

हरिः ॐ गुरुजी ।।

शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

माँ बगलामुखी पञ्चास्त्र मंत्र प्रयोग से शत्रु समूह नष्ट हो जाता है

 बगलामुखी एकोन-पञ्चाशदक्षर मंत्र – 


|| ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय ममैश्वर्याणि देहि देहि शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय साधय ह्रीं श्रीं स्वाहा 


|| उक्त मंत्र उभय एवं उर्ध्वाम्नाय के हैं । अतः ध्यान – ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे – 

सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम्, हेमाभांगरुचिं शशांक मुकुटां सच्चम्पक स्रग्युताम् । हस्तैर्मुद्गर पाश वज्र रसनाः संबिभ्रतीं भूषणै र्व्याप्तांगीं, बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिंतयेत् ।।

अथवा 

गंभीरा च मदोन्मत्तां तप्त-काञ्चन-सन्निभां, चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासन संस्थिताम् । मुद्गरं दक्षिणे पाशं वामे जिह्वां च वज्रकं, पीताम्बरधरां सान्द्र-वृत्त पीन-पयोधराम् ।। हेमकुण्डलभूषां च पीत चन्द्रार्द्ध शेखरां, पीतभूषणभूषां च स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।

अथवा 

वन्दे स्वर्णाभवर्णा मणिगण विलसद्धेम सिंहासनस्थां, पीतं वासो वसानां वसुपद मुकुटोत्तंस हारांगदाढ्याम् । पाणिभ्यां वैरिजिह्वामध उपरिगदां विभ्रतीं तत्पराभ्यां, हस्ताभ्यां पाशमुच्चैरध उदितवरां वेदबाहुं भवानीम् ।। 


माँ बगलामुखी पञ्चास्त्र मंत्र 

वडवामुखी स्तम्भनकारक है | उल्कामुखी तीनो लोको का स्तम्भन करने में समर्थ है | ज्वालामुखी देवताओ और ऋषियों का स्तम्भन कर देती है | जातवेदमुखी ब्रह्मा-विष्णु-महेश का भी स्तम्भन करने में समर्थ है | सभी कमी प्रयोगो की सिद्धि के लिए बृहद्भानुमुखी मन्त्र का प्रयोग किया जाता है | 

ये माँ बगलामुखी के पञ्चास्त्र इतने तीव्र है की इनके प्रयोग से शत्रु समूह उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जिस प्रकार जंगल की आग से सब कुछ नष्ट हो जाता है | 

केवल दीक्षित साधक को ही इनका प्रयोग करने का अधिकार है | शत्रुओं से पीड़ित व्यक्ति मुझसे संपर्क कर सकते हैं | 


बगलामुखी पञ्च-पञ्चाशदक्षर मंत्र – प्रथमास्त्र (वडवा-मुखी)


|| ॐ ह्लीं हूं ग्लौं वगलामुखि ह्लां ह्लीं ह्लूं सर्व-दुष्टानां ह्लैं ह्लौं ह्लः वाचं मुखं पदं स्तम्भय ह्लः ह्लौं ह्लैं जिह्वां कीलय ह्लूं ह्लीं ह्लां बुद्धिं विनाशय ग्लौं हूं ह्लीं हुं फट् || 


बगलामुखी अष्ट-पञ्चाशदक्षर मंत्र – (उल्कामुख्यास्त्र) 

|| ॐ ह्लीं ग्लौं वगलामुखि ॐ ह्लीं ग्लौं सर्व-दुष्टानां ॐ ह्लीं ग्लौं वाचं मुखं पदं ॐ ह्लीं ग्लौं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं ग्लौं जिह्वां कीलय ॐ ह्लीं ग्लौं बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ ग्लौं ह्लीं ॐ स्वाहा ||

बगलामुखि एकोन-षष्ट्यक्षर उपसंहार विद्या – 

|| ग्लौं हूम ऐं ह्रीं ह्रीं श्रीं कालि कालि महा-कालि एहि एहि काल-रात्रि आवेशय आवेशय महा-मोहे महा-मोहे स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर स्तम्भनास्त्र-शमनि हुं फट् स्वाहा || 


बगलामुखी षष्ट्यक्षर जात-वेद मुख्यस्त्र – 


|| ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ वगलामुखि सर्व-दुष्टानां ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ जिह्वां कीलय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ बुद्धिं नाशय नाशय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ स्वाहा ||


बगलामुखी षडुत्तर-शताक्षर वृहद्भानु-मुख्यस्त्र – 


|| ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ॐ वगलामुखि ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः जिह्वां कीलय ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः बुद्धिं नाशय ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ॐ स्वाहा ||

बगलामुखी अशीत्यक्षर हृदय मंत्र – 

|| आं ह्लीं क्रों ग्लौं हूं ऐं क्लीं श्रीं ह्रीं वगलामुखि आवेशय आवेशय आं ह्लीं क्रों ब्रह्मास्त्ररुपिणि एहि एहि आं ह्लीं क्रों मम हृदये आवाहय आवाहय सान्निध्यं कुरु कुरु आं ह्लीं क्रों ममैव हृदये चिरं तिष्ठ तिष्ठ आं ह्लीं क्रों हुं फट् स्वाहा ||

बगलामुखी शताक्षर मंत्र – 

|| ह्लीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ग्लौं ह्लीं वगलामुखि स्फुर स्फुर सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय प्रस्फुर प्रस्फुर विकटांगि घोररुपि जिह्वां कीलय महाभ्मरि बुद्धिं नाशय विराण्मयि सर्व-प्रज्ञा-मयी प्रज्ञां नाशय, उन्मादं कुरु कुरु, मनो-पहारिणि ह्लीं ग्लौं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं ह्लीं स्वाहा ||





शनिवार, 26 सितंबर 2020

भगवान श्री राम स्तुति

 जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।


गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता।।


पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।

जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई।।
जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा।।
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।।
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा।।
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा।।
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना।।
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा।।

रविवार, 20 सितंबर 2020

बगलामुखी मन्त्र, बगला गायत्री व पाण्डवी चेटिका बगला विद्या

 बगलामुखी विंशोत्तर-शताक्षर ज्वालामुख्यस्त्र –  


ॐ ह्लीं रां रीं रुं रैं रौं प्रस्फुर प्रस्फुर ज्वाला-मुखि १३ सर्व-दुष्टानां १३ वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय १३ जिह्वां कीलय कीलय १३ बुद्धिं नाशय नाशय १३ स्वाहा || 


बगलामुखी गायत्री मन्त्र – 

१॰ || ह्लीं वगलामुखी विद्महे दुष्ट-स्तम्भनी धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् || 

२॰ || ॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-वाणाय धीमहि तन्नो वगला प्रचोदयात् || 

३॰ || ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनं तन्नः वगला प्रचोदयात् || 

४॰ || ॐ वगलामुख्यै विद्महे स्तम्भिन्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् || 

५॰ || बगलाम्बायै विद्महे ब्रह्मास्त्र विद्यायै धीमहि तन्न स्तम्भिनी प्रचोदयात् || 

६॰ || ॐ ऐं बगलामुखि विद्महे ॐ क्लीं कान्तेश्वरि धीमहि ॐ सौः तन्नः प्रह्लीं प्रचोदयात् || 


अन्य मन्त्र – १॰ || ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स ४ ह ४ क ४ परा-षोडशी हंसः सौहं ह्लौं ह्लौं || २॰ || ॐ क्षीं ॐ नमो भगवते क्षीं पक्षि-राजाय क्षीं सर्व-अभिचार-ध्वंसकाय क्षीं ॐ हुं फट् स्वाहा || 


बगलामुखी शाबर मंत्र – || ॐ मलयाचल बगला भगवती महाक्रूरी महा-कराली राज-मुख-बंधंन ग्राम मुख-बंधंन ग्राम पुरुबंधंन कालमुखबंधंन चौरमुखबंधंन सर्व-दुष्ट-ग्रहबंधंन सर्व-जन-बंधंन वशीकुरु हुं फट् स्वाहा || 


पाण्डवी चेटिका विद्या – 

|| ॐ पाण्डवी बगले बगलामुखि शत्रोः पदं स्तंभय स्तंभय क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं ह्लीं स्फ्रीं स्वाहा || 

ध्यानम् – 

पीताम्बरां पीतवर्णां पीतगन्धानुलेपनाम् । 

प्रेतासनां पीतवर्णां विचित्रां पाण्डवीं भजे ।। 

प्रतिपदा शुक्रवार को जपे । ३० हजार कुसुंभ-कुसुमों से होम करे । प्रसन्न होकर पाण्डवी साधक को वस्त्र प्रदान करती है तथा शत्रु का स्तम्भन करती है ।


शनिवार, 5 सितंबर 2020

श्री दारिद्रय दहन स्तोत्रम्

श्री दारिद्रय दहन स्तोत्रम् ।।

विश्वेशराय नरकार्णवतारणाय
कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय।
कर्पूर कान्ति धवलाय, जटाधराय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।1।।

गौरी प्रियाय रजनीश कलाधराय,
कालांतकाय भुजगाधिप कंकणाय।
गंगाधराय गजराज विमर्दनाय
द्रारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।2।।

भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय
उग्राय दुर्ग भवसागर तारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।3।।

चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय,
भालेक्षणाय मणिकुंडल-मण्डिताय।
मँजीर पादयुगलाय जटाधराय
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।4।।

पंचाननाय फणिराज विभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रय मंडिताय।
आनंद भूमि वरदाय तमोमयाय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।5।।

भानुप्रियाय भवसागर तारणाय,
कालान्तकाय कमलासन पूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।6।।

रामप्रियाय रधुनाथ वरप्रदाय
नाग प्रियाय नरकार्णवताराणाय।
पुण्येषु पुण्य भरिताय सुरार्चिताय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।7।।

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय।
मातंग चर्म वसनाय महेश्वराय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।8।।

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्व रोग निवारणम्
सर्व संपत् करं शीघ्रं पुत्र पौत्रादि वर्धनम्।।
शुभदं कामदं ह्दयं धनधान्य प्रवर्धनम्
त्रिसंध्यं यः पठेन् नित्यम् स हि स्वर्गम वाप्नुयात ।।9।।

।। इति श्रीवशिष्ठरचितं दारिद्रयुदुखदहन शिवस्तोत्रम संपूर्णम् ।।