शनिवार, 1 नवंबर 2014

धरण ठिकाने आने का एवं बाँह में तेज दर्द को हरने का मंत्र

बहुत से लोग जो नाभि डिगने (खिसकने) या धारण टलने  की समस्या सा परेशान रहते है वह निम्न लिखित मंत्र का प्रयोग करे । इस मंत्र से धरण  ठिकाने आ जाती है और अगर बाँह में तेज दर्द हो तो  उसमे भी लाभ होता है 

मंत्र :- सुमेरु पर्वत सुमेरु पर्वत पर लोना चमारी लोना चमारी की सोने की राँपी सोने की सुतारी हूक चक बाँह बिलारी धरणी नाली काटि कूटि समुद्र खारी बहाओ लोना चमारी की दुहाई फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा । 

विधि :- किसी शुभ मुहूर्त में 108 बार जपने से मंत्र सिद्ध हो जाता है । सिद्ध होने के बाद मंत्र से अभिमंत्रित विभूति नाभि पर लगाने से धारण ठिकाने आ जाती है । इसी प्रकार अभिमंत्रित विभूति को बाँह पर लगाने से बाँह की तीव्र पीड़ा भी समाप्त हो जाती है । 

बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

महामृत्युंजय मंत्र

मृत्युंजय मंत्र ३२ अक्षर का "त्र्यम्बक मंत्र" भी कहलाता हैं ।
ॐ" लगा देने से यह ३३ अक्षर का हो जाता हैं,इस मंत्र में संपुट लगा देने से मंत्र का कई रूप प्रकट हो जाता है।
गायत्री मंत्र के साथ प्रयोग करने पर यह "मृतसंजीवनी मंत्र" हो जाता है ।।
यदि घर में पूजन करते है तो पहले पार्थिव शिव पूजन करके या चित्र का पूजन कर घी का दीपक अर्पण कर,पुष्प,प्रसाद के साथ कामना के लिए दायें हाथ में जल,अक्षत लेकर संकल्प कर ले।
कितनी संख्या में जप करना है यह निर्णय कर ले साथ ही जप माला रूद्राक्ष का ही हो।
एक निश्चित संख्या में ही जप होना चाहिए।।
आचमनी निम्न मंत्र से कर संकल्प कर ले।दाएँ हाथ मे जल लेकर मंत्र बोले 
मंत्र..
१.ॐ केशवाय नमः।जल पी जाए।
२.ॐ नारायणाय नमः।जल पी जाए।
३.ॐ माधवाय नमः।जल पी लें।
अब हाथ इस मंत्र से धो ले।
४.ॐ हृषिकेषाय नमः।
संकल्प अपने कामना अनुसार छोटा,बड़ा कर सकते है।
दाएँ हाथ में जल,अक्षत,बेलपत्र,द्रव्य,सुपारी रख संकल्प करें।
💥संकल्प💥
"ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुःश्रीमद् भगवतो महापूरूषस्य,विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्माणोऽहनि द्वितीये परार्धे श्री श्वेत वाराहकल्पे,वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते अमुक संवतसरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे अमुक मासे अमुकपक्षे,अमुकतिथौःअमुकवासरे,अमुक गोत्रोत्पन्नोहं अमुक शर्माहं,या वर्माहं ममात्मनःश्रुति स्मृति,पुराणतन्त्रोक्त फलप्राप्तये मम जन्मपत्रिका ग्रहदोष,दैहिक,दैविक,भौतिक ताप सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं मनसेप्सित फल प्राप्ति पूर्वक,दीर्घायु,विपुलं,बल,धन,धान्य,यश,पुष्टि,प्राप्तयर्थम सकल आधि,व्याधि,दोष परिहार्थम सकलाभीष्टसिद्धये श्री शिव मृत्युंजय प्रीत्यर्थ पूजन,न्यास,ध्यान यथा संख्याक मंत्र जप करिष्ये।"
💥गणेश प्रार्थना💥
गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थजम्बू फलचारूभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय,गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
ॐ श्री गणेशाय नमः।
💥गुरू प्रार्थना 💥
गुरूर्ब्रह्मा,गुरूर्विष्णु,गुरूर्देवो महेश्वरः।गुरू साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥
💥💥गौरी प्रार्थना💥💥
ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्मताम्॥
💥 विनियोग 💥
अस्य त्र्यम्बक मन्त्रस्य वसिष्ठ ऋषिःअनुष्टुप छन्दःत्र्यम्बक पार्वतीपतिर्देवता,त्र्यं बीजम्,वं शक्तिः,कं कीलकम्,सर्वेष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
💥💥ऋष्यादिन्यास💥💥
ॐ वसिष्ठर्षये नमःशिरसि।
अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे।
त्र्यम्बकपार्वतीपति देवतायै नमः हृदि।
त्र्यं बीजाय नमः गुह्ये।
वं शक्तये नमः पादयोः।
कं कीलकाय नमः नाभौ।
विनियोगाय नमःसर्वागें।
❄❄करन्यास❄❄
त्र्यम्बकम् अंगुष्ठाभ्यां नमः।
यजामहे तर्जनीभ्यां नमः।
सुगंधिं पुष्टिवर्द्धनं मध्यमाभ्यां नमः।
उर्वारूकमिव बन्धनात् अनामिकाभ्यां नमः।
मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
मामृतात् करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
❄❄हृदयादिन्यास❄❄
ॐ त्र्यम्बकं हृदयाय नमः।
यजामहे शिरसे स्वाहा।
सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं शिखायै वषट्।
उर्वारूकमिव बन्धनात् कवचाय हुं।
मृत्योर्मुक्षीय नेत्रत्रयाय वौषट्।
मामृतात् अस्त्राय फट्।
💥💥ध्यान💥💥
हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैराप्लावयन्तं शिरो द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां बहन्तं परम्।अंकन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवं स्वच्छाम्भोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे।
💥💥मंत्र💥💥
"।।ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।"

बगलामुखी चतुरक्षर मन्त्र

बगलामुखी चतुरक्षर मन्त्र -
|| ॐ आं ह्लीं क्रों ||
(सांख्यायन तन्त्र)
विनियोगः-ॐ अस्य चतुरक्षर बगला मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, आं शक्तिः क्रों कीलकं, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- 
ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,
बगलामुखी देवतायै नमः हृदि,
ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये,
आं शक्तये नमः पादयो,
क्रों कीलकाय नमः नाभौ,
सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
*षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास
ॐह्लां अंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
ॐह्लीं तर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
ॐह्लूं मध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट्
ॐह्लैं अनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुं
ॐह्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट्
ॐह्लःकरतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट्
●ध्यानः-हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
●कुटिलालक-संयुक्तां मदाघूर्णित-लोचनां,
मदिरामोद-वदनां प्रवाल-सदृशाधराम् ।
सुवर्ण-कलश-प्रख्य-कठिन-स्तन-मण्डलां,
आवर्त्त-विलसन्नाभिं सूक्ष्म-मध्यम-संयुताम् ।
रम्भोरु-पाद-पद्मां तां पीत-वस्त्र-समावृताम् ।।
√पुरश्चरण में चार लाख जप कर, मधूक-पुष्प-मिश्रित जल से दशांश तर्पण कर घृत-शर्करा-युक्त पायस से दशांश हवन ।

*** बगलामुखी कवचं***

      बगलामुखी कवचं
श्रुत्वा च बगलापूजां स्तोत्रं चाप महेश्वर ।
इदानी श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ॥ १ ॥
वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाSशुभविनाशनम् ।
शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दु:खनाशनम् ॥२॥
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श्रीभैरव उवाच :
कवचं शृणु वक्ष्यामि भैरवीप्राणवल्लभम् ।
पठित्वा धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत् ॥३॥
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ॐ अस्य श्री बगलामुखीकवचस्य नारद ऋषि: ।
अनुष्टप्छन्द: । बगलामुखी देवता । लं बीजम् ।
ऐं कीलकम् पुरुषार्थचष्टयसिद्धये जपे विनियोग: ।
ॐ शिरो मे बगला पातु हृदयैकाक्षरी परा ।
ॐ ह्ली ॐ मे ललाटे च बगला वैरिनाशिनी ॥१॥
गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी ।
वैरिजिह्वाधरा पातु कण्ठं मे वगलामुखी ॥२॥
उदरं नाभिदेशं च पातु नित्य परात्परा ।
परात्परतरा पातु मम गुह्यं सुरेश्वरी ॥३॥
हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे ।
विवादे विषमे घोरे संग्रामे रिपुसङ्कटे ॥४॥
पीताम्बरधरा पातु सर्वाङ्गी शिवनर्तकी ।
श्रीविद्या समय पातु मातङ्गी पूरिता शिवा ॥५॥
पातु पुत्रं सुतांश्चैव कलत्रं कालिका मम ।
पातु नित्य भ्रातरं में पितरं शूलिनी सदा ॥६॥
रंध्र हि बगलादेव्या: कवचं मन्मुखोदितम् ।
न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥ ७॥
पाठनाद्धारणादस्य पूजनाद्वाञ्छतं लभेत् ।
इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीम् ॥८॥
पिवन्ति शोणितं तस्य योगिन्य: प्राप्य सादरा: ।
वश्ये चाकर्षणो चैव मारणे मोहने तथा ॥९॥
महाभये विपत्तौ च पठेद्वा पाठयेत्तु य: ।
तस्य सर्वार्थसिद्धि: स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति ॥१०॥
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इति श्रीरुद्रयामले बगलामुखी कवचं सम्पूर्ण

दुः स्वप्न नाश मंत्र

मित्रो हम आपको बुरे स्वप्न से मुक्ति का प्रयोग बता रहे है.यह क्रिया आपको किसी भी मंगलवार से आरम्भ कर अगले मंगलवार तक करनी है.प्रातः दैनिक पूजन के समय अपने सीधे हाथ में एक निम्बू रखिये और निम्न मंत्र का १५ मिनट तक बिना किसी माला के जाप करे.
दसो दिसन का रखवाला राम भगत तू मतवाला, तुम राम जपो हम सो जाये निद्रा में राम चरण पाए ,आओ हनुमंत रक्षा करो राम नाम मन में धरो दुहाई माता अंजनी की.
इसके बाद निम्बू को उस व्यक्ति के सर पर से ७ बार वारकर दो हिस्से में काटकर घर से बहार फेक दे,जिसे बुरे सपने आते हो.
यह क्रिया ८ दिन करे समस्या का अंत हो जायेगा।जिन लोगो को अनिद्रा की समस्या है वह भी यह प्रयोग कर सकते है अवश्य लाभ होगा।

माता बगलामुखी अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र

माता बगलामुखी अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र
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ब्रह्मास्त्ररुपिणी देवी माता श्रीबगलामुखी ।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च ब्रह्मानन्द-प्र
दायिनी ।। १ ।।
महाविद्या महालक्ष्मी श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमंगला ।। २ ।।
ललिता भैरवी शान्ता अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छीन्नमस्ता च तारा काली सरस्वती ।।
३ ।।
जगत्पूज्या महामाया कामेशी भगमालिनी ।
दक्षपुत्री शिवांकस्था शिवरुपा शिवप्रिया ।। ४
।।
सर्व-सम्पत्करी देवी सर्वलोक वशंकरी ।
विदविद्या महापूज्या भक्ताद्वेषी भयंकरी ।। ५
।।
स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च दुष्टस्तम्भनकारिणी ।
भक्तप्रिया महाभोगा श्रीविद्या ललिताम्बिका ।।
६ ।।
मैनापुत्री शिवानन्दा मातंगी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च नृपाराध्या नरोत्तमा ।। ७
।।
नागिनी नागपुत्री च नगराजसुता उमा ।
पीताम्बा पीतपुष्पा च पीतवस्त्रप्रिया शुभा ।।
८ ।।
पीतगन्धप्रिया रामा पीतरत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्धचन्द्रधरी देवी गदामुद्गरधारिणी ।। ९ ।।
सावित्री त्रिपदा शुद्धा सद्योराग विवर्धिनी ।
विष्णुरुपा जगन्मोहा ब्रह्मरुपा हरिप्रिया ।। १०
।।
रुद्ररुपा रुद्रशक्तिश्चिन्मयी भक्तवत्सला ।
लोकमाता शिवा सन्ध्या शिवपूजनतत्परा ।। ११
।।
धनाध्यक्षा धनेशी च नर्मदा धनदा धना ।
चण्डदर्पहरी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी ।। १२ ।।
राजराजेश्वरी देवी महिषासुरमर्दिनी ।
मधूकैटभहन्त्री देवी रक्तबीजविनाशिनी ।। १३ ।।
धूम्राक्षदैत्यहन्त्री च भण्डासुर विनाशिनी ।
रेणुपुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ।। १४
।।
ज्वालामुखी भद्रकाली बगला शत्रुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्रपूज्या च गुहमाता गुणेश्वरी ।। १५
।।
वज्रपाशधरा देवी ज्ह्वामुद्गरधारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी बगला परमेश्वरी ।। १६ ।।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिपुबाधाविनिर्मुक्तः लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात् ।।
१७ ।।
भूतप्रेतपिशाचाश्च ग्रहपीड़ानिवारणम् ।
राजानो वशमायांति सर्वैश्वर्यं च विन्दति ।। १८
।।
नानाविद्यां च लभते राज्यं प्राप्नोति निश्चितम्

भुक्तिमुक्तिमवाप्नोति साक्षात् शिवसमो भवेत् ।।

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

दीपावली कैसे मनाएं.... पूर्ण पूजन विधान -


दीपावली केवल दीप प्रज्ज्वलित करने का ही त्यौहार नहीं है, अपितु सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्त करने हेतु गणपति, लक्ष्मी एवं कुबेर पूजन का भी विशेष अवसर है. यह शास्त्र सम्मत है कि इस समय यदि भली प्रकार से इनका पूजन कार्य संपन्न कर लिया जाये, तो पूरे वर्ष भर इन देवी-देवताओं कि कृपा प्राप्ति निश्चित रूप से होती है | सामान्य जन के लाभार्थ एक सरल पूजन विधि यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ जो अपने आप में पूर्ण फलदायक है, मुझे उम्मीद है कि आपको इससे बहुत लाभ होगा |
मुहूर्त- दीपावली महालक्ष्मी पूजन मुहूर्त वह होना चाहिए जो स्थिर लग्न हो, प्रदोष काल हो, तिथि अमावस्या हो | स्थिर लग्न में पूजन इसलिए होता है जिससे कि लक्ष्मी हमारे घर में स्थायी निवास कर सके | इस बार दीपावली २३ अक्टूबर को है, पूजन मुहूर्त – 7:30pm – 8:35pm का श्रेष्ठ है |
महालक्ष्मी पूजन इस प्रकार से किया जाता है-
आत्म-शोधन, संकल्प, शान्ति-मंगल-पाठ, कलश-स्थापन, गणपति पूजन, नव-ग्रह-पूजन, षोडश-मात्रिका पूजन, गणेश-लक्ष्मी-पूजन, लेखनी-दावात में काली पूजन, बही-खाते में सरस्वती पूजन, तिजोरी बक्से पर कुबेर पूजन, दीप मालिका पूजन, क्षमा-प्रार्थना, विसर्जन |
सर्वप्रथम गुरु पूजन कर लें और संक्षिप्त में गणपति पूजन करें, इनका विग्रह अथवा चित्र सामने रखकर इसपर पूजन का सामान चढ़ाएं |
इसके पश्चात लक्ष्मी पूजन के लिए सामने कोई श्री यन्त्र, या कनकधारा यन्त्र या लक्ष्मी विग्रह स्थापित करें और षोडशोपचार या पंचोपचार विधि से पूजन संपन्न करें -
ध्यान देने योग्य बातें -
लक्ष्मी को गुलाब के पुष्प अत्यधिक प्रिय हैं, इसलिए कोशिश करके उसी से पूजन करें | घी के दीपक में कुछ बूँद इत्र डाल देनी चाहिए, स्त्रियाँ पूर्ण सज-धज कर पूजन करे, और पुरुष भी राजसिक वस्त्र धारण करे यानी पीले रंग कि रेशम कि धोती, पीला आसन इत्यादि. दिशा पूर्व या फिर उत्तर रहे.
इसके पश्चात आप श्री-सूक्त में दिए हुए ध्यान, संकल्प आदि कर सकते हैं और फिर श्री-सूक्त का पाठ कर सकते हैं | फिर लक्ष्मी मंत्र का जप आप किसी भी माला से (रूद्राक्ष माला के आलावा किसी भी माला से) यथा संभव ११, २१ या १०१ माला करें | यह भी ध्यान रखें कि दीपक पोरी रात्रि-काल जलता रहे | इसमें पूजन स्थान पर आभूषण रखकर उसका भी पूजन किया जाता है, जिसे आप दूसरे दिन से ही धारण कर सकते हैं |
इस प्रकार से विधि-विधान पूर्वक लक्ष्मी पूजन करने से निश्चय ही धन-धान्य वृद्धि और निश्चित सफलता प्राप्त होती है |

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

¤कृष्ण ही कृष्ण¤.

कृष्ण उठत कृष्ण चलत कृष्ण शाम भोर है ..
कृष्ण बुद्धि कृष्ण चित्त कृष्ण मन विभोर है। ..
कृष्ण रात्रि कृष्ण दिवस कृष्ण स्वप्न शयन है ..
कृष्ण काल कृष्ण कला कृष्ण मास अयन है। ..
कृष्ण शब्द कृष्ण अर्थ कृष्ण ही परमार्थ है ..
कृष्ण कर्म कृष्ण भाग्य कृष्णहि पुरुषार्थ है। ..
कृष्ण स्नेह कृष्ण राग कृष्णहि अनुराग है ..
कृष्ण कली कृष्ण कुसुम कृष्ण ही पराग है। ..
कृष्ण भोग कृष्ण त्याग कृष्ण तत्व ज्ञान है ..
कृष्ण भक्ति कृष्ण प्रेम कृष्णहि विज्ञान है। ..
कृष्ण स्वर्ग कृष्ण मोक्ष कृष्ण परम साध्य है ..
कृष्ण जीव कृष्ण ब्रह्म कृष्णहि आराध्य 
 है .

कर्म का कर्ता

 भाई 

पहले यह जान ले की " मै  कर्म का कर्ता हूँ " इस भाव को केंद्र में रखकर कर्म करने से सुख दुःख रूपी फल की प्राप्ति होगी ही । इसे कोई रोक नहीं सकता । और साथ ही साथ यश अपयश, हानि-लाभ, जन्म-मृत्यु, भी प्राप्त होते हैं । 

इससे बचने का एक रास्ता यह भी है की हम अनंत परमात्मा की शरण ग्रहण करें । और यह माने की "जो कर्म हम कर रहे है उसको करने की प्रेरणा वह परमात्मा ही हमें दे रहा है और उसी के अनुरूप सभी साधन उपलब्ध करवा दे रहा है " यश-अपयश भी उसी परमात्मा की प्रेरणा से मिल रहा है " तो आपको ऐसा महसूस होने लगेगा की जब सब कुछ परमात्मा बलात अपनी माया प्रकृति के द्वारा हमारे माध्यम से करवा रहा है तो हम कही भी न तो दोषी है न ही कर्म फल के अधिकारी है अतः यश अपयश भी उसी की प्रेरणा से मिल रहा है तो सब कुछ उसका प्रशाद मानकर प्रेम से ग्रहण करे । 

तभी सुख प्रपात होगा अन्यथा ब्रह्मा भी किसी का दुःख दूर करने में समर्थ नहीं है 

ओम तत सत 

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

मंत्र प्रयोग

मंत्र प्रयोग
गृह रक्षा- गाय का गोबर या लाल रंग का घोल लेकर उक्त मंत्र से १०८बार पढ़कर अभिमंत्रित कर लें फिर इसी मंत्र को पढ़ते हुए घर के चारों ओर रेखा खींच दें।ऐसा कर देने से घर में भूत,पिशाच,चोर डाकू के घुसने का भय नहीं रहता।साथ ही हिंसक जंतु,अग्नि भय से भी सुरक्षित रहा जा सकता हैं।
मंत्र- ॐ ह्रीं चण्डे!चामुण्डे भ्रुकुटि अट्टा ट्टे,भीम दर्शने!रक्ष रक्ष चौरेभ्यःवज्रेभ्यःअग्निभ्यःश्वापदेभ्यःदुष्टजनेभ्यःसर्वेभ्यःसर्वौपद्रवेभ्यःगण्डीःह्रीं ह्रीं ठःठः।

टोना टोटका तंत्र बाधा निवारण मंत्र- आज यह भी देखने को मिलता है कि कुछ दुष्ट लोग किसी टोना करने वाले से कोई प्रयोग करा देते है और लोग भयानक कष्ट भोगने लगते है।
दवा करने पर भी लाभ नहीं मिलता है,तब इस मंत्र को ११ माला से सिद्ध कर प्रयोग करे।लोग जादू टोना से प्रभावित होकर विक्षिप्त भी हो जाते है।किसी शुभ मूर्हूत मे ईस मंत्र का प्रयोग करें।एक दीपक जलाकर किशमिश का भोग लगा कर मंत्र सिद्ध करे,फिर प्रयोग करते समय ७बार मंत्र पढ़ फूंक मारकर उतारा कर दें।ऐसा ७बार कर देने पर सभी जादू टोना नष्ट हो जाता हैं।बाद मे एक सफेद भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही से अनार के कलम से मंत्र लिख ताँबा या चाँदी की ताबीज मे यंत्र भरकर काला धागा लगाकर स्त्री हो तो बांया पुरूष हो तो दांये बांह मे ७बार मंत्र पढ़ बाँध ले।
शाबर मंत्र- ॐ नमो आदेश गुरू को।ॐ अपर केश विकट भेष।खम्भ प्रति पहलाद राखे,पाताल राखे पाँव।देवी जड़घा राखे,कालिका मस्तक रखें।महादेव जी कोई या पिण्ड प्राण को छोड़े,छेड़े तो देवक्षणा भूत प्रेत डाकिनी,शाकिनी गण्ड ताप तिजारी जूड़ी एक पहरूँ साँझ को सवाँरा को कीया को कराया को,उल्टा वाहि के पिण्ड पर पड़े।इस पिण्ड की रक्षा श्री नृसिंह जी करे।शब्द साँचा,पिण्ड काचा।फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।

गठिया रोग और वात वेदना-
गठिया या वात रोग से लोग बहुत प्रभावित होकर हमेशा दवा खाते रहते है,इस प्रयोग को करे,लाभ होगा।किसी पर्वकाल मे मंत्र को सिद्ध करे।बाद में सन्धि वात या गठिया,वात या कमर में बाई,वात बेदना वाले रोगी को मंगल या रवि को मोर पंख से २१ बार उक्त मंत्र पढ़कर झाड़े।११ माला जप कर मंत्र सिद्ध कर लें।
मंत्र- ॐ मूल नमःधुक्ष नमः।जाहि जाहि ध्वाक्ष तमःप्रर्कीण अड़्गा प्रस्तार प्रस्तार मु़ञ्च।

सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

नाभि या धरन ठीक करने का मंत्र -2

बहुत से लोग जो नाभि टलने  के रोग से पीड़ित रहते है और बार बार मुझसे धरण /नाभि  ठीक करने के उपाय पूछते है उनके लिए निम्न मंत्र विधि दे रहा हु प्रयोग करे और लाभ उठाएं । 


मंत्र संख्या -2 

ॐ  नमो नाड़ी नाड़ी नौ सै बहत्तर सौ कोस चले अगाडी डिगे न कोण चले न नाड़ी रक्षा करे जति हनुमंत की आन मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा । 

विधि :- इस मंत्र को ग्रहण , दिवाली की महानिशा बेला में धुप दीप देकर  108 जप करके सिद्ध करले ।  कच्चे सूत के धागे में 9 गांठ लगाले उसे छल्ले की भांति बनाले उसे रोगी की नाभि पर रखकर इस मंत्र को 108 बार पढ़ते हुए नाभि के ऊपर फूक मारने से धरण ठिकाने पर आ जाती है । 

नाभि या धरन ठीक करने का मंत्र -1

बहुत से लोग जो नाभि टलने  के रोग से पीड़ित रहते है और बार बार मुझसे धरण /नाभि  ठीक करने के उपाय पूछते है उनके लिए निम्न मंत्र विधि दे रहा हु प्रयोग करे और लाभ उठाएं । 



मंत्र संख्या 1 

ऊँचा नीचा धरणी श्री महादेव का सरनी टली धरन आनु ठौर सत सत भाखे श्री गोरखनाथ  । 

विधि :- इस मंत्र को ग्रहण , दिवाली की महानिशा बेला में धुप दीप देकर  108 जप करके सिद्ध करले ।  तदुपरांत नाभि रोगी को इस मंत्र से झाड़ा देकर सवा तीन माशे चांदी  की अंगूठी पाव के अंगूठे में  पहना देने से धरण  ठिकाने आ जाती है 

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

शाबर मन्त्रों कि अदभूत शक्ति

गंगाजल में अमृत देखाई नहीं देता, सती का तेज देखाई नहीं देता, जति का सवरूप देखाई नहीं देता, पत्थर में भगवान् देखाई नहीं देता, ठीक उसी परकार शाबर मन्त्रों कि अदभूत शक्ति दिखाई नहीं देती। परन्तु प्रयोग कर और आज़मा कर देखिये - 

दुर्भाग्य दूर करने के लिये आटे का दिया, १ नीबू, ७ लाल मिर्च, ७ लड्डू,२ बत्ती, २ लोंग, २ बड़ी इलायची बङ या केले के पत्ते पर ये सारी चीजें रख दें |रात्रि १२ बजे सुनसान चौराहे पर जाकर पत्ते को रख दें व प्रार्थना करें, जब घर से निकले तब यह प्रार्थना करें = हे दुर्भाग्य, संकट, विपत्ती आप मेरे साथ चलें और पत्ते को रख दें | फिर प्रार्थना करें  = 
हे दुर्भाग्य मैं आप को विदा कर रहा हूँ | आप मेरे साथ न आयें, चारों रास्ते खुले हैं आप कहीं भी जायें | 
एक बार करने के बाद एक दो महीने देखें, उपाय लाभकारी है| श्रद्धा से करें | 

गृह कलेश पवनतनय बल पवन समाना |बुद्धि विवेक विज्ञान विधाना | स्वाहा१०८ बार जाप करना है | यह मानस मंत्र है | मन में जाप करें | आहुती देते हुए यह मंत्र जाप करना है, यह किसी शुभ दिन से शुरु करें| सोम, गुरु या रवि पुष्य या त्यौहार के दिन | लाल आसन ऊनी, दक्षिण दिशा में मुँह करके बैठें| प्रयोग रात्रि के समय करें| तर्जनी से आसन के चारों तरफ लकीर खींच दें, अपनी रक्षा के लिये | 

सुख शांति के लिये वनस्पति तंत्र 

अशोक वृक्ष के जड़ के पास अंदर की तरफ की १ किलो मिट्टी ले आइये, कूट पीस कर छान लीजिये व उसमें केसर, केवङा जल, हिना का इत्र, मुठ्ठी नाग के जट, श्वेत चन्दन, काली गाय का दूध मिट्टी में मिलाना है| मिट्टी को गूँथ लीजिये और एक पिण्डी अर्थात शिवलिंग बना लीजिये | पूजा स्थान पर रख दीजिये | 
१०८ बार मंत्र जाप करना है ऊँ नमः शिवायव १०८ बेलपत्र चढाने हैं, दूसरे दिन १०८ बेलपत्र एक थैली में रखने हैं, लगातार ७ दिन सोमवार से करना है, इस प्रकार ७ थैलियाँ इकठ्ठी होंगी, ८ वें दिन हर थैली में से एक एक बेल पत्र निकाल कर एक डिब्बी में रखकर लॉकर में रख दीजिये | शिवलिंग व बचे हुए बेलपत्र जल में प्रवाहित करना है|  

कलह, अशांति व ज्यादा खर्च 

शनि तंत्र  एक सफेद कागज एक ओर काले काजल से रंग दीजिये, सफेद तरफ लिखिये ऊँ नीला जल समाभाषम रवि पुत्रः यमाग्रजम छाया मार्तण्ड जय भूतम्तम नमामि शनिश्चरम पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्यास्त के १५ मिनिट बाद पश्चिम दिशा की ओर मुँह करके दीपक सरसों के तेल की ७ बूँदे डालकर जला दें कागज को जमीन पर बिछाकर (मंत्र वाली तरफ से ऊपर रखना है) “धनम देहि” ७ बार ७ दाने उङद के उस कागज पर डालने हैं | कागज के ७ टुकड़े करके सातों पर अलग अलग नंबर लिख लें १,२,३,४,५,६,७, उनमें से ३ कागज की गोली उठा लीजिये, यह अंक शुभ होंगे | यह लगातार ७ शनिवार करना है | 

अविवाहित युवती

पाँच सोमवार के व्रत करें, रोज एक रुद्राक्ष और एक बिल्बपत्र शिवलिंग पर चढायें, अगर माहवारी हो तो वह सोमवार छोड़ कर अगला वाला करें, एक समय सात्विक भोजन करें | 

चर्म रोग 

पाँच रुद्राक्ष के दाने एक गिलास पानी में रखकर सोते समय अपने सिराहने रखें और सुबह नहाते समय उस पानी को नहाने की पानी की बाल्टी में मिलाकर रोज नहायें व रुद्राक्षों को मंदिर में रख दें, चर्म रोगों में फायदा होता है, चर्म रोग नष्ट हो जाते हैं |

सन्तान गोपाल मंत्र

संतान गोपाल मन्त्र
सन्तान गोपाल मंत्र दूर करेगा हर संतान बाधा
शास्त्रों में संतान कामना को पूरा करने के ऐसे ही उपाय बताए गए हैं, जिनसे बिना किसी ज्यादा परेशानी या आर्थिक बोझ के मनचाही खुशियां मिलती हैं। यह उपाय है संतान गोपाल मन्त्र का जप। स्वस्थ्य, सुंदर संतान खासतौर पर पुत्र प्राप्ति के लिए यह मंत्र पति-पत्नी दोनों के द्वारा किया जाना बेहतर नतीजे देता है। 
संतान गोपाल मंत्र: देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।। 
संतान गोपाल मंत्र जप की विधि -पति-पत्नी दोनों सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ उपरोक्त मंत्र का जप तुलसी की माला से करें।इसके लिए घर के देवालय में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र की चन्दन, अक्षत, फूल, तुलसी दल और माखन का भोग लगाकर घी के दीप व कर्पूर से आरती करें।
बालकृष्ण की मूर्ति विशेष रूप से श्रेष्ठ मानी जाती है।भगवान की पूजा के बाद या आरती के पहले उपरोक्त संतान गोपाल मंत्र का जप करें।मंत्र जप के बाद भगवान से समर्पित भाव से निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला, सेहतमंद पुत्र की कामना करें।यह मंत्र जप पति या पत्नी अकेले भी कर सकते हैं।

महाशक्तियों के मंत्र और उनके फल

महाकाली मंत्र
ऊं ए क्लीं ह्लीं श्रीं ह्सौ: ऐं ह्सौ: श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं जूं क्लीं सं लं श्रीं र: अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: ऊं कं खं गं घं डं ऊं चं छं जं झं त्रं ऊं टं ठं डं ढं णं ऊं तं थं दं धं नं ऊं पं फं बं भं मं ऊं यं रं लं वं ऊं शं षं हं क्षं स्वाहा।
विधि
यह महाकाली का उग्र मंत्र है। इसकी साधना विंध्याचल के अष्टभुजा पर्वत पर त्रिकोण में स्थित काली खोह में करने से शीघ्र सिद्धि होती है अथवा श्मशान में भी साधना की जा सकती है, लेकिन घर में साधना नहीं करनी चाहिए। जप संख्या 1100 है, जिन्हें 90 दिन तक अवश्य करना चाहिए। दिन में महाकाली की पंचोपचार पूजा करके यथासंभव फलाहार करते हुए निर्मलता, सावधानी, निभीर्कतापूर्वक जप करने से महाकाली सिद्धि प्रदान करती हैं। इसमें होमादि की आवश्यकता नहीं होती।
फल
यह मंत्र सार्वभौम है। इससे सभी प्रकार के सुमंगलों, मोहन, मारण, उच्चाटनादि तंत्रोक्त षड्कर्म की सिद्धि होती है।
तारा
ऊं ह्लीं आधारशक्ति तारायै पृथ्वीयां नम: पूजयीतो असि नम:
इस मंत्र का पुरश्चरण 32 लाख जप है। जपोपरांत होम द्रव्यों से होम करना चाहिए।
फल
सिद्धि प्राप्ति के बाद साधक को तर्कशक्ति, शास्त्र ज्ञान, बुद्धि कौशल आदि की प्राप्ति होती है।
भुवनेश्वरी
ह्लीं
अमावस्या को लकड़ी के पटरे पर उक्त मंत्र लिखकर गर्भवती स्त्री को दिखाने से उसे सुखद प्रसव होता है। गले तक जल में खड़े होकर, जल में ही सूर्यमंडल को देखते हुए तीन हजार बार मंत्र का जप करने वाला मनोनुकूल कन्या का वरण करता है। अभिमंत्रित अन्न का सेवन करने से लक्ष्मी की वृद्धि होती है। कमल पुष्पों से होम करने पर राजा का वशीकरण होता है।
त्रिपुर सुंदरी
मंत्र
श्रीं ह्लीं क्लीं एं सौ: ऊं ह्लीं श्रीं कएइलह्लीं हसकहलह्लीं संकलह्लीं सौ: एं क्लीं ह्लीं श्रीं
विधि
इस मंत्र का पुरश्चरण एक लाख जप है। जप के पश्चात त्रिमधुर (घी, शहद, शक्कर) मिश्रित कनेर के पुष्पों से होम करना चाहिए।
फल
कमल पुष्पों के होम से धन व संपदा प्राप्ति, दही के होम से उपद्रव नाश, लाजा के होम से राज्य प्राप्ति, कपूर, कुमकुम व कस्तूरी के होम से कामदेव से भी अधिक सौंदर्य की प्राप्ति होती है। अंगूर के होम से वांछित सिद्धि व तिल के होम से मनोभिलाषा पूर्ति व गुग्गुल के होम से दुखों का नाश होता है। कपूर के होमत्व से कवित्व शक्ति आती है।
छिन्नमस्ता
ऊं श्रीं ह्लीं ह्लीं वज्र वैरोचनीये ह्लीं ह्लीं फट् स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण चार लाख जप है। जप का दशांश होम पलाश या बिल्व फलों से करना चाहिए।
तिल व अक्षतों के होम से सर्वजन वशीकरण, स्त्री के रज से होम करने पर आकर्षण, श्वेत कनेर पुष्पों से होम करने से रोग मुक्ति, मालती पुष्पों के होम से वाचासिद्धि व चंपा के पुष्पों से होम करने पर सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
धूमावती
मंत्र
ऊं धूं धूं धूमावती स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण एक लाख जप है। जप का दशांश तिल मिश्रित घृत से होम करना चाहिए।
नीम की पत्ती व कौए के पंख पर उक्त मंत्र खओ 108 बार पढ़कर देवता का नाम लेते हुए धूप दिखाने से शत्रुओं में परस्पर विग्रह होता है।
बगलामुखी
ऊं ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊं स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण एक लाख जप है। जपोपरांत चंपा के पुष्प से दशांश होम करना चाहिए। इस साधना में पीत वर्ण की महत्ता है। इंद्रवारुणी की जड़ को सात बार अभिमंत्रित करके पानी में डालने से वर्षा का स्तंभन होता है। सभी मनोरथों की पूर्ति के लिए एकांत में एक लाख बार मंत्र का जप करें। शहद व शर्करायुत तिलों से होम करने पर वशीकरण, तेलयुत नीम के पत्तों से होम करने पर हरताल, शहद, घृत व शर्करायुत लवण से होम करने पर आकर्षण होता है।
मातंगी
ऊं ह्लीं एं श्रीं नमो भगवति उच्छिष्ट चांडालि श्रीमातंगेश्वरि सर्वजन वंशकरि स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण दस हजार जप है। जप का दशांश शहद व महुआ के पुष्पों से होम करना चाहिए। काम्य प्रयोग से पूर्व एक हजार बार मूलमंत्र का जाप करके पुन: शहदयुक्त महुआ के पुष्पों से होम करना चाहिए। पलाश के पत्तों या पुष्पों के होम से वशीकरण, मल्लिका के पुष्पों के होम से लाभ, बिल्व पुष्पों से राज्य प्राप्ति, नमक से आकर्षण होता है।
कमला
ऊं नम: कमलवासिन्यै स्वाहा
दस लाख जप करें। दशांश शहद, घी व शर्करा युक्त लाल कमलों से होम करें, तो सभी कामनाएं पूर्ण होंगी। समुद्र से गिरने वाली नदी के जल में आकंठ जप करने पर सभी प्रकार की संपदा मिलती है।
महालक्ष्मी
ऊं श्रीं ह्लीं श्रीं कमले कमलालयै प्रसीद प्रसीद ऊं श्रीं ह्लीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:
एक लाख बार जप करें। शहद, घी व शर्करायुक्त बिल्व फलों से दशांश होम करने से साधक के घर में लक्ष्मी वास करती है। यदि किसी को अधिक धन की प्रबल कामना हो, तो वह सत्य वाचन करे, लक्ष्मी मंत्र व श्रीसूक्त का पाठ व मंत्र करे। पूर्वाभिमुख होकर भोजन करे व वार्तादि भी पूर्वाभिमुख होकर करे। जल में नग्न होकर स्नान न करें। तेल मलकर भोजन करें। अनावश्यक रूप से भू-खनन न करें।

सोमवार, 15 सितंबर 2014

सर्व पितृ अमावस्या पर प्रयोग

प्रिय मित्रो
सर्व पितृ अमावस्या आने वाली है,अतः यह पोस्ट पहले ही डाली जा रही है ताकि समय पर आप यह प्रयोग कर सके.
इस दिन किसी भी समय,स्टील के लोटे में,
दूध ,पानी,काले तिल,सफ़ेद तिल,और जौ मिला ले,साथ ही सफ़ेद मिठाई एक नारियल और कुछ सिक्के,तथा एक जनेऊ लेकर पीपल वृक्ष के निचे जाये,
सर्व प्रथम पीपल में लोटे की समस्त सामग्री अर्पित कर दे,यह उसकी जड़ में अर्पित करना है.तथा इस मंत्र का जाप सतत करते जाना है.
ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः
इसके पश्चात पीपल पर जनेऊ अर्पित करे निम्न मंत्र को पड़ते हुए
ॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमः
इस क्रिया के बाद पीपल वृक्ष के निचे मिठाई,दक्षिणा तथा नारियल रख दे.और तीन परिक्रमा करे निम्न मंत्र को पड़ते हुए.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
इस क्रिया के पश्चात भगवन नारायण से प्रार्थना करे.की मुझ पर और मेरे कुल पर आपकी तथा पित्रो की कृपा बानी रहे तथा में और मेरा परिवार धर्म का पालन करते हुए,निरंतर प्रगति करे.
इस क्रिया से पित्रो की किरपा प्राप्त होती है,कुपित हुए पितृ मान जाते है.तथा साधक के जीवन में प्रगति होती है.
अतः यह प्रयोग अवश्य करे.

शनिवार, 16 अगस्त 2014

रोग मुक्ति का दुर्लभ देवी प्रत्यंगिरा विधान

तंत्र क्षेत्र के कई अद्भूत विधान है जिसके माध्यम से रोगों से मुक्ति पा कर एक सम्पूर्ण जीवन को जिया जा सकता है. ऐसे दुर्लभ विधानों के माध्यम से जहा एक और रोग और रोगजन्य कष्ट और पीड़ा से मुक्ति मिलती है वहीँ दूसरी और जो क्षति हुई है उसकी भी पूर्ति होती है जिससे भविष्य में वह रोग के लक्षण नहीं होते है. ऐसा ही एक दुर्लभ विधान देवी प्रत्यंगिरा से सबंधित है. यह प्रयोग श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाए तो रोग के कष्ट से निश्चित रूप से व्यक्ति को मुक्ति दिला सकती है. 
यह प्रयोग रविवार रात्री काल में ११ बजे के बाद शुरू किया जा सकता है.
साधक के वस्त्र और आसान लाल रंग के हो. साधक को उत्तर दिशा की तरफ मुख कर बैठना चाहिए.
साधक अपने सामने देवी प्रत्यंगिरा का चित्र या यन्त्र स्थापित करता है तो उत्तम है लेकिन यह संभव ना हो तो भी साधक मंत्र का जाप कर सकता है. साधक सर्व प्रथम हाथ में जल ले कर संकल्प करे की मेरे सभी रोग शोक दूर हो इस लिए में यह प्रयोग सम्प्पन कर रहा हू. देवी मुझे आशीष और सहायता प्रदान करे. अगर साधक किसी और व्यक्ति के लिए मंत्र जाप कर रहे हो तो संकल्प में उस व्यक्ति का नाम उच्चारित करे. इसके बाद साधक मानसिक रूप से पूजन सम्प्पन करे तथा मूंगा माला से निम्न मंत्र की २१ माला जाप करे.

ॐ सिंहमुखी सर्व रोग स्तंभय नाशय प्रत्यंगिरा सिद्धिं देहि नमः

मंत्र जाप के बाद साधक देवी को नमस्कार करे और कल्याण करने की प्रार्थना कर सो जाए. साधक को यह क्रम ११ दिनों तक करना चाहिए. साधना समाप्ति पर साधक यन्त्र चित्र आदि को पूजा स्थान में स्थापित कर दे और माला को किसी को देवी मंदिर में दक्षिणा के साथ अर्पित कर दे तो रोग शांत होते है तथा पीड़ा से मुक्ति मिलती है. अगर साधक कोई चिकित्सा ले रहा हो या औषधि ले रहा हो तो यह प्रयोग करते वक्त उसे बंद करने की ज़रूरत नहीं है. साधक अपनी चिकित्सा के साथ ही साथ यह प्रयोग को कर सकता है इसमें किसी भी प्रकार का कोई दोष नहीं है.

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र
ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ गुरवे नमः, ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ श्रीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ जगन्नाथाय नमः, ॐ बदरीनारायणाय नमः, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ भृगवे नमः, ॐ शनिश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।
ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते ! भद्रे ! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।
ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः। ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।।
शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।।
शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।।
सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः। हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।

एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।। य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।। सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः। द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।। किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।। नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।। इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।। विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः। सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।

‘श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खण्ड में इस अनुभूत स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इस पाठ से सभी बाधाओं का निवारण होता है।
किसी भी देवता या देवी की प्रतिमा या यन्त्र के सामने बैठकर धूप दीपादि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। विशेष लाभ के लिये ‘स्वाहा’ और ‘नमः’ का उच्चारण करते हुए ‘घृत मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियाँ दे सकते हैं।

माँ स्वप्नेश्वरी मंत्र


ॐ ह्रांग क्लींग रक्तचामुंडे स्वप्ने कथ्य कथ्य शुभाशुभम ॐ फट स्वाहा !

।। विधि ।।

इस साधना को आप किसी भी दिन से शुरू कर सकते हैं ! रात्रि को सोते समय अपने बिस्तर पर बैठ कर इस मंत्र का 1100 बार जप करें ! माला कोई भी इस्तेमाल कर सकते हैं और यदि माला न हो तो हाथो पर भी कर सकते हैं ! यह क्रिया 21 दिन करनी हैं और यह साधना पूर्णत: गुप्त रहनी चाहिए ! माता से प्रार्थना करे कि स्वप्न में मुझे दर्शन दे और सिद्धि प्रदान करें ! अंतिम दिन ( 22वे दिन ) किसी कंवारी कन्या को भोजन कराएं और दक्षिणा दें ,मन्त्र सिद्ध हो जाएगा ! कन्या की उम्र 10 साल से कम होनी चाहिए !



।। प्रयोग ।।

जब भी इस मंत्र का प्रयोग करना हो तो 1100 मंत्र जप अपने बिस्तर पर बैठ कर करें और देवी से प्रार्थना करें , आपको स्वप्न में उत्तर मिल जाएगा ! माँ स्वप्नेश्वरी आप सब पर कृपा करे और आप सब को सिद्धि प्रदान करे ! इसी आशा के साथ 

हनुमान मंत्र

हनुमान मंत्र
हनुमान मंत्र में है हर मर्ज का इलाज
मनुष्य शारीरिक, मानसिक और बाहरी (भू‍त-प्रेत) नजर इत्यादि बीमारियों से परेशान रहता है। शारीरिक बीमारी के लिए डॉक्टर या वैद्य के पास जाकर मनुष्य ठ‍ीक हो जाता है। मानसिक बीमारी का सरलत‍म उपाय हो जाता है। परंतु मनुष्य जब भूत-प्रेत अथवा नजर, हाय या किसी दुष्ट आत्मा के जाल में फंस जाता है तब वह परेशान हो जाता है।
इसके ‍इलाज के लिए स्वयं एवं परिवार वाले हर जगह जाते हैं- जैसे तांत्रिक, मांत्रिक, जानकार के पास। परंतु मरीज ठीक नहीं होता है। मरीज की हालत बिगड़ने लगती है। ऐसा प्रतीत होता है कि मरीज शारीरिक एवं मानसिक दोनों ब‍ीमारी से ग्रस्त है।
ऐसे में पवन पुत्र हनुमान जी की आराधना करें। मरीज अवश्‍य ही ठीक हो जाएगा। यहां हम आपको श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा) दे रहे हैं। जो इक्कीस दिन में सिद्ध हो जाता है। इसे सिद्ध करके दूसरों की सहायता करें और उनकी प्रेत-डाकिनी, नजर आदि सब ठीक करें।
श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा)
ॐ हनुमान पहलवान पहलवान, बरस बारह का जबान,
हाथ में लड्‍डू मुख में पान, खेल खेल गढ़ लंका के चौगान,
अंजनी‍ का पूत, राम का दूत, छिन में कीलौ
नौ खंड का भू‍त, जाग जाग हड़मान (हनुमान)
हुंकाला, ताती लोहा लंकाला, शीश जटा
डग डेरू उमर गाजे, वज्र की कोठड़ी ब्रज का ताला
आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चंपे
ने सींण, अजरा झरे भरया भरे, ई घट
पिंड की रक्षा राजा रामचंद्र जी लक्ष्मण कुंवर हड़मान (हनुमान) करें।
इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। हनुमान मंदिर में जाकर साधक अगरबत्ती जलाएं। इक्कीसवें दिन उसी मंदिर में एक नारियल व लाल कपड़े की एक ध्वजा चढ़ाएं। जप के बीच होने वाले अलौकिक चमत्कारों का अनुभव करके घबराना नहीं चाहिए। यह मंत्र भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी, नजर, टपकार व शरीर की रक्षा के लिए अत्यंत सफल है।
चेतावनी : हनुमान जी की कोई भी साधना अत्यंत सावधानी और सतर्कता से करना चाहिए। यह साधना अगर पलट कर आ जाए तो साधक पर ही भारी पड़ सकती है। अत: शुद्धता, पवित्रता और एकाग्रता का विशेष ध्यान रखा जाए।

दैनिक साधना पूजन

दैनिक साधना पूजन 

अखंड मंडलाकारं व्यापितम येन चराचरम |
तदपदं दर्शितम येन तस्मै श्री गुरूवै नमः||
जय सदगुरुदेव,
स्नेही भाइयों बहनों,
पूजन करना और साधना विधान दोनों एक अलग विधा हैं. पूजन मात्र आत्म संतुष्टि का एक साधना मात्र है, और साधना जीवन को गति देने कि क्रिया. किन्तु ये एक दूसरे पूरक हैं एन दोनों को अलग नहीं किया जा सकता. क्योंकि साधना के पूर्व व्यक्ति को अपने आप को शुद्ध करना और उसमें भी बाह्य और आंतरिक शुद्धिकरण करना ही होता है जिससे कि हम उस मन्त्र को धारण करने या हमारा अन्तःकरण उसे वहन कर सके..... और इसी कारण प्रारम्भिक पूजन का विधान है ......
सबसे पहले पवित्रीकरण-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वा गतोअपी वा
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यांतर: शुचि: |
इसके बाद पंचपात्र से तीन बार जल पीना है और एक बार से हाथ धोना है.....
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा |
ॐ अमृतापिधानीमसि स्वाहा |
ॐ सत्यं यश: श्रीर्मयि श्री:श्रयतां स्वाहा |
ॐ नारायणाय नमः
कहकर हाथ धो लें
अब शिखा पर हाथ रखकर मस्तिष्क में स्तिथ चिदरूपिणी महामाया दिव्य तेजस शक्ति का ध्यान करें जिससे साधना में प्रवृत्त होने हेतु आवश्यक उर्जा प्राप्त हों सके---
चिदरूपिणि महामाये दिव्यतेज: समन्वितः |
तिष्ठ देवि ! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे | |
न्यास-
बांये हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ कि पाँचों अँगुलियों से जल लेकर शरीर के विभिन्न अंगों से स्पर्श करना है....
ॐ वाङगमे आस्येस्तु (मुख को )
ॐ नसोर्मे प्राणोंअस्तु (नासिका के दोनों छिद्रों को )
ॐ अक्षोर्मे चक्षुरस्तु (दोनों नेत्रों को )
ॐ बाह्वोर्मे ओजोअस्तु (दोनों बाँहों को )
ॐ ऊवोर्र्मे ओजोअस्तु ( दोनों जंघाओं को )
ॐ अरिष्टानि अङगानि सन्तु.... पूरे शरीर पर जल छिड़क लें---
अब अपने आसन का पूजन करें जल, कुंकुम, अक्षत से---
ॐ ह्रीं क्लीं आधारशक्तयै कमलासनाय नमः |
ॐ पृथ्वी ! त्वया धृतालोका देवि ! त्वं विष्णुना धृता
त्वं च धारय माँ देवि ! पवित्रं कुरु चासनम |
ॐ आधारशक्तये नमः, ॐ कूर्मासनाय नमः, ॐ अनंतासनाय नमः |
अब दिग्बन्ध करें यानि दसों दिशाओं का बंधन करना है,जिससे कि आपका मन्त्र सही देव तक पहुँच सके, अतः इसके लिए चावल या जल अपने चारों ओर छिडकना है और बांई एड़ी से भूमि पर तीन बार आघात करना है ....
अब भूमि शुद्धि करना है जिसमें अपना दायाँ हाथ भूमि पर रखकर मन्त्र बोलना है---
ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्यधर्त्रीं |
पृथ्वी यच्छ पृथ्वीं दृ (गुं) ह पृथ्वीं मा ही (गूं) सी:
अब ललाट पर चन्दन, कुंकुम या भस्म का तिलक धारण करे....
कान्तिं लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलमं मम
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्याहम ||
अब इसके पश्चात आप संकल्प ले सकते हैं----
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमदभगवतो महापुरुसस्य विश्नोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्द्य: श्रीब्रह्मण: द्वतीय परार्धे श्वेतवाराह्कल्पे वैवस्वतमनवन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भारतवर्षे, अमुक क्षेत्रै, अमुक नगरे, विक्रम संवत्सरे, अमुक अयने, अमुक मासे, अमुक पक्षे अमुक पुण्य तिथि, अमुक गोत्रोत्पन्नोहं अमुक देवता प्रीत्यर्थे यथा ज्ञानं, यथां मिलितोपचारे, पूजनं करिष्ये तद्गतेन मन्त्र जप करिष्ये या हवि कर्म च करिष्ये..... और जल पृथ्वी पर छोड़ दें.....
तत्पश्चात गुरुपूजन करें---
भाइयों बहनों गुरु ध्यान अनेकों हैं अतः आप स्वयं चुन लें.......या
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा
गुरु ही साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः
अब आवाहन करें.....
ॐ स्वरुपनिरूपण हेतवे श्री गुरवे नमः, ॐ स्वच्छप्रकाश-विमर्श-हेतवे श्रीपरमगुरवे नमः | ॐ स्वात्माराम् पञ्जरविलीन तेजसे पार्मेष्ठी गुरुवे नमः |
अब गुरुदेव का पंचोपचार पूजन संपन्न करें----
इसमें स्नान वस्त्र तिलक अक्षत कुंकुम फूल धूप दीप और नैवेद्ध का प्रयोग होता है----
अब गणेश पूजन करें ---
हाथ में जल अक्षत कुंकुम फूल लेकर (गणेश विग्रह या जो भी है गनेश के प्रतीक रूप में) सामने प्रार्थना करें ---
ॐ गणानां त्वां गणपति (गूं) हवामहे प्रियाणां त्वां प्रियपति (गूं) हवामहे निधिनाम त्वां निधिपति (गूं) हवामहे वसो मम |
आहमजानि गर्भधमा त्वामजासी गर्भधम |
ॐ गं गणपतये नमः ध्यानं समर्पयामी |
आवाहन---
हे हेरम्ब! त्वमेह्येही अम्बिकात्रियम्बकत्मज |
सिद्धि बुद्धिपते त्र्यक्ष लक्ष्यलाभपितु: पितु:
ॐ गं गणपतये नमः आवाहयामि स्थापयामि नमः पूजयामि नमः |
गणपतिजी के विग्रह के अभाव में एक गोल सुपारी में कलावा लपेटकर पात्र मे रखकर उनका पूजन भी कर सकते हैं.....
अब क्षमा प्रार्थना करें---
विनायक वरं देहि महात्मन मोदकप्रिय |
निर्विघ्न कुरु मे देव सर्व कार्येशु सर्वदा ||
विशेषअर्ध्य---
एक पात्र में जल चन्दन, अक्षत कुंकुम दूर्वा आदि लेकर अर्ध्य समर्पित करें,
निर्विघ्नंमस्तु निर्विघ्नंस्तू निर्विघ्नंमस्तु | ॐ तत् सद् ब्रह्मार्पणमस्तु |
अनेन कृतेन पूजनेन सिद्धिबुद्धिसहित: श्री गणाधिपति: प्रियान्तां ||
अब माँ का पूजन करें---
माँ आदि शक्ति के भी अनेक ध्यान हैं जो प्रचलित हैं....
किन्तु आप ऐसे करें...
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्रयाम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ||
अब भैरव पूजन करें---
ॐ यो भूतानामधिपतिर्यास्मिन लोका अधिश्रिता: |
यऽईशे महाते महांस्तेन गृह्णामी त्वामहम ||
ॐ तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पांतदहनोपम् |
भैरवाय नमस्तुभ्यंनुज्ञां दातुर्महसि ||
ॐ भं भैरवाय नमः |

अब आप किसी भी साधना में प्रवृत्त होने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हैं....... प्रिय स्नेही भाइयो बहनों मेरा कहना सिर्फ इतना है कि किसी भी कारण आपकी साधना का कोई भी पक्ष छूटना नहीं चाहिए . चाहे फिर वह पूजा विधान ही क्यों ना हों .....

ग्रह बाधा निवारण का एक अनूठा उपाय

ग्रह बाधा निवारण का एक अनूठा उपाय

आप और हम में से शायद कोई ही ऐसा व्यक्ति होगा जो किसी न किसी ग्रह बाधा से पीड़ित नहीं होगा.

ग्रहों के खेल में ही इंसान की पूरी जिंदगी उलझी रह जाती है..

ग्रह बाधा दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय उपलब्ध हैं, कुछ तांत्रिक, कुछ मांत्रिक, और कुछ रत्नों से जुड़े हुए..

लेकिन इन सब से हटकर एक विचित्र ग्रह बाधा निवारण प्रयोग आज दिया जा रहा है जिसका आप सभी लाभ उठा सकते हैं..

ग्रह बाधा को हटाने के लिए एक स्नान विधि बताई जा रही है, जिसके बहुत ही धनातम्क परिणाम प्राप्त हुए हैं.

इस स्नान के लिए निम्नांकित पदार्थों को एक मिटटी की हांडी में रखकर उस हांडी को जल से भर दिया जाता है.

जल भरकर हांडी के मुख को एक ढक्कन से ढँक दिया जाता है. नियमित स्नान के समय इस हांडी में से एक कटोरी जल भर कर के आप अपने स्नान के जल में मिला लें.

हांडी में से जल निकालने के पश्चात उसमे उतना ही बाहरी शुद्ध जल डाल दें.

इस प्रकार ४० दिन तक यह प्रयोग करें.

प्रयोग के दौरान ही अच्छे परिणाम दिखाई देने लगेंगे.

स्नान में प्रयुक्त पदार्थ निम्न हैं.

१- चावल - एक मुट्ठी भर
२- सरसों - एक मुट्ठी भर
३- नागर मोथा - एक मुट्ठी भर
४- सुखा आँवला - एक मुट्ठी भर
५- दूर्वा(दूब घाँस) - २१ नग
६- तुलसी पत्र - २१ नग
७- बेल पत्र - २१ नग (३-३ पर्ण वाले)
८- हल्दी - २ गाँठ

नोट: इन पदार्थों के सड़ने से कभी कभी अत्यधिक दुर्गन्ध आती है. यदि वह असहनीय प्रतीत हो तो संपूर्ण पदार्थ किसी वृक्ष की जद में डालकर पुनः उक्त पदार्थों को उसी हांडी में नए सिरे से ले लें..

ज्यादा ताम झाम न होते हुए यह एक सरल प्रयोग है..

प्रयोग करें और परिणाम बताएँ

अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र

अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र
प्रार्थना
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।
मन्त्र- “ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
विधि- ‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई की बत्ती जलाए। ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाक्षा’ का ध्यान कर उक्त प्रार्थना करे। मन्त्र का १०८ बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात जलाए रखे और स्वयं भी जागता रहे। नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे। प्रातःकाल दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’ में रखे। इससे श्रीलक्ष्मीजी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी। प्रतिदिन सन्ध्या समय दीप जलाए और पाँच बार उक्त मन्त्र का जप करे।

बैरि-नाशक हनुमान ग्यारहवाँ

बैरि-नाशक हनुमान ग्यारहवाँ
विधिः- दूसरे से माँगे हुए मकान में, रक्षा-विधान, कलश-स्थापन, गणपत्यादि लोकपालों का पूजन कर हनुमान जी की प्रतिमा-प्रतिष्ठा करे। नित्य ११ या १२१ पाठ, ११ दिन तक करे। ‘प्रयोग’ भौमवार से प्रारम्भ करे। ‘प्रयोग’-कर्त्ता रक्त-वस्त्र धारण करे और किसी के साथ अन्न-जल न ग्रगण करे।

अञ्जनी-तनय बल-वीर रन-बाँकुरे, करत हुँ अर्ज दोऊ हाथ जोरी,
शत्रु-दल सजि के चढ़े चहूँ ओर ते, तका इन पातकी न इज्जत मेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि झपट मत करहु देरी,
मातु की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, अञ्जनी-सुवन मैं सरन तोरी।।१

पवन के पूत अवधूत रघु-नाथ प्रिय, सुनौ यह अर्ज महाराज मेरी,
अहै जो मुद्दई मोर संसार में, करहु अङ्ग-हीन तेहि डारौ पेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहु तेहि चूर लंगूर फेरी,
पिता की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, पवन के सुवन मैं सरन तोरी।।२

राम के दूत अकूत बल की शपथ, कहत हूँ टेरि नहि करत चोरी,
और कोई सुभट नहीं प्रगट तिहूँ लोक में, सकै जो नाथ सौं बैन जोरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि पकरि धरि शीश तोरी,
इष्ट की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, राम का दूत मैं सरन तोरी।।३

केसरी-नन्द सब अङ्ग वज्र सों, जेहि लाल मुख रंग तन तेज-कारी,
कपीस वर केस हैं विकट अति भेष हैं, दण्ड दौ चण्ड-मन ब्रह्मचारी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहू तेहि गर्द दल मर्द डारी,
केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।४

लीयो है आनि जब जन्म लियो यहि जग में, हर्यो है त्रास सुर-संत केरी,
मारि कै दनुज-कुल दहन कियो हेरि कै, दल्यो ज्यों सह गज-मस्त घेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनौ तेहि हुमकि मति करहु देरी,
तेरी ही आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।५

नाम हनुमान जेहि जानैं जहान सब, कूदि कै सिन्धु गढ़ लङ्क घेरी,
गहन उजारी सब रिपुन-मद मथन करी, जार्यो है नगर नहिं कियो देरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेही खाय फल सरिस हेरी,
तेरे ही जोर की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।६

गयो है पैठ पाताल महि, फारि कै मारि कै असुर-दल कियो ढेरी,
पकरि अहि-रावनहि अङ्ग सब तोरि कै, राम अरु लखन की काटि बेरी,
करत जो चगुलई मोर दरबार में, करहु तेहि निरधन धन लेहु फेरी,
इष्ट की आनि तोहि, सुनहु प्रभु कान से, वीर हनुमान मैं सरन तेरी।।७

लगी है शक्ति अन्त उर घोर अति, परेऊ महि मुर्छित भई पीर ढेरी,
चल्यो है गरजि कै धर्यो है द्रोण-गिरि, लीयो उखारि नहीं लगी देरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, पटकौं तेहि अवनि लांगुर फेरी,
लखन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।८

हन्यो है हुमकि हनुमान काल-नेमि को, हर्यो है अप्सरा आप तेरी,
लियो है अविधि छिनही में पवन-सुत, कर्यो कपि रीछ जै जैत टैरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनो तेहि गदा हठी बज्र फेरी,
सहस्त्र फन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।९

केसरी-किशोर स-रोर बरजोर अति, सौहै कर गदा अति प्रबल तेरी,
जाके सुने हाँक डर खात सब लोक-पति, छूटी समाधि त्रिपुरारी केरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, देहु तेहि कचरि धरि के दरेरी,
केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।१०

लीयो हर सिया-दुख दियो है प्रभुहिं सुख, आई करवास मम हृदै बसेहितु,
ज्ञान की वृद्धि करु, वाक्य यह सिद्ध करु, पैज करु पूरा कपीन्द्र मोरी,
करत जो चुगलई मोर देरबार में, हनहु तेहि दौरि मत करौ देरी,
सिया-राम की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।११

ई ग्यारहो कवित्त के पुर के होत ही प्रकट भए,
आए कल्याणकारी दियो है राम की भक्ति-वरदान मोहीं।
भयो मन मोद-आनन्द भारी और जो चाहै तेहि सो माँग ले,
देऊँ अब तुरन्त नहि करौं देरी,
जवन तू चहेगा, तवन ही होएगा, यह बात सत्य तुम मान मेरी।।१२

ई ग्यारहाँ जो कहेगा तुरत फल लहैगा, होगा ज्ञान-विज्ञान जारी,
जगत जस कहेगा सकल सुख को लहैगा, बढ़ैगी वंश की वृद्धि भारी,
शत्रु जो बढ़ैगा आपु ही लड़ि मरैगा, होयगी अंग से पीर न्यारी,
पाप नहिं रहैगा, रोग सब ढहैगा, दास भगवान अस कहत टेरी।।१३

यह मन्त्र उच्चारैगा, तेज तब बढ़ैगा, धरै जो ध्यान कपि-रुप आनि,
एकादश रोज नर पढ़ै मन पोढ़ करि, करै नहिं पर-हस्त अन्न-पानी।
भौम के वार को लाल-पट धारि कै, करै भुईं सेज मन व्रत ठानी,
शत्रु का नाश तब हो, तत्कालहि, दास भगवान की यह सत्य-बानी।।१४

इच्छित कार्य में सफलता-दायक शाबर मन्त्र

इच्छित कार्य में सफलता-दायक शाबर मन्त्र

“ॐ कामरू, कामाक्षा देवी, जहाँ बसे लक्ष्मी महारानी। आवे, घर में जमकर बैठे। सिद्ध होय, मेरा काज सुधारे। जो चाहूँ, सो 

होय। ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं फट्।”


विधि- उक्त मन्त्र का जप रात्रि-काल में करें। ग्यारह दिनों के जप के पश्चात् ११ नारियलों का हवन करे। इच्छित कार्य में 

सफलता मिलती है।

रविवार, 27 जुलाई 2014

तुम परफेक्ट हो जाओ

बाहर की वस्तु । न तो पकड़ने योग्य है । और न छोड़ने योग्य । बाहर की वस्तु । बाहर है । न तुम उसे पकड़ सकते हो । न तुम उसे छोड़ सकते हो । तुम हो कौन ? तुमने पकड़ा । वह तुम्हारी भ्रांति थी । तुम छोड़ रहे हो । यह तुम्हारी भ्रांति है । बाहर की वस्तु को न तुम्हारे पकड़ने से कुछ फर्क पड़ता है । न तुम्हारे छोड़ने से कुछ फर्क पड़ता है । तुम कल कहते थे । यह मकान मेरा है । मकान ने कभी नहीं कहा था कि - तुम मेरे मालिक हो । और मकान को अगर थोड़ा भी बोध होगा । तो वह हंसा होगा कि - खूब गजब के मालिक हो । क्योंकि तुमसे पहले कोई और यही कह रहा था । उससे पहले कोई और यही कह रहा था । और मैं जानता हूं कि तुम्हारे बाद भी लोग होंगे । जो यही कहेंगे कि - वे मालिक हैं ।
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शहर में नौकरी कर रहे अपने लड़के का हालचाल देखने चौधरी गांव से आए । बड़े सवेरे पुत्रवधू ने पक्के गाने का अभ्यास शुरू किया । अत्यंत करुण स्वर में वह गा रही थी - पनियां भरन कैसे जाऊं ? पनियां भरन कैसे जाऊं ? शास्त्रीय संगीत तो शास्त्रीय संगीत है । उसमें तो 1 ही पंक्ति दोहराए चले जाओ - पनियां भरन कैसे जाऊं । आधे घंटे तक यही सुनते रहने के बाद बगल के कमरे से चौधरी उबल पड़े । और चिल्लाए - क्यों रे बचुआ । क्यों सता रहा है बहू को ? यहां शहर में पानी भरना क्या शोभा देगा उसे ? समझ तो अपनी अपनी है । मैं अपनी समझ से कहता हूँ । तुम अपनी समझ से समझते हो ।
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प्राणायाम सिर्फ गहरी स्वांस नहीं है । प्राणायाम बोधपूर्वक गहरी स्वांस है । इस फर्क को ठीक से समझ लें । बहुत से लोग प्राणायाम भी करते हैं । तो बोधपूर्वक नहीं । बस गहरी स्वांस लेते रहते हैं । अगर गहरी स्वांस ही आप सिर्फ लेंगे । तो अपान स्वस्थ हो जाएगा । बुरा नहीं है । अच्छा है । लेकिन ऊर्ध्वगति नहीं होगी । ऊर्ध्वगति तो तब होगी । जब स्वांस की गहराई के साथ आपकी अवेयरनेस, आपकी जागरूकता भीतर जुड़ जाए ।
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अगर आपको द्रष्टा का अनुभव होने लगे । दर्शन से आंख हटे । दृश्य से आंख हटे । और पीछे छिपे द्रष्टा से थोड़ा सा भी तालमेल बैठने लगे । तो परमात्मा को आप पाएंगे कि उससे ज्यादा समीप और कोई भी नहीं । अभी उससे ज्यादा दूर । और कोई भी नहीं है । अभी परमात्मा सिर्फ कोरा शब्द है । और जब भी हम सोचते हैं । तो ऐसा लगता है कि आकाश में कहीं बहुत दूर परमात्मा बैठा होगा । किसी सिंहासन पर । यात्रा लंबी मालूम पड़ती है । और परमात्मा यहां बैठा है । ठीक सासों के पीछे ।
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विचार 1 वस्तु है । उसका अपना स्वयं का अस्तित्व होता है । जब कोई आदमी मरता है । तो उसके सारे पागल विचार तुरंत निकल भागते हैं । और वे कहीं न कहीं शरण ढूंढना शुरू कर देते हैं । फौरन वे उनमें प्रवेश कर जाते हैं । जो आसपास होते हैं । वे कीटाणुओं की भांति होते हैं । उनका अपना जीवन है । कई बार अचानक एक उदासी तुम्हें जकड़ लेती है । 1 विचार गुजर रहा है । तुम तो बस रास्ते में हो । यह 1 दुर्घटना है । विचार 1 बादल की भांति गुजर रहा था । 1 उदास विचार किसी के द्वारा छोड़ा हुआ । यह 1 दुर्घटना है कि तुम पकड़ में आ गये हो ।
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मैं चाहता हूँ कि हम मूर्तियों से मुक्त हो सकें । ताकि जो अमूर्त है । उसके दर्शन संभव हों । रूप पर जो रुका है । वह अरूप पर नहीं पहुँच पाता है । और आकार जिसकी दृष्टि में है । वह निराकार सागर में कैसे कूदेगा ? और वह जो दूसरे की पूजा में है । वह अपने पर आ सके । यह कैसे संभव है ? मूर्ति को अग्नि दो । ताकि अमूर्त ही अनुभूति में शेष रहे । और आकार की बदलियों को विसर्जित होने दो । ताकि निराकार आकाश उपलब्ध हो सके । और रूप को बहने दो । ताकि नौका अरूप के सागर में पहुँचे । जो सीमा के तट से अपनी नौका छोड़ देता है । वह अवश्य ही असीम को पहुँचता है । और असीम हो जाता है ।
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किसी ने मुझे भगवान कहा नहीं । मैंने ही घोषणा की । तुम कहोगे भी कैसे ? तुम्हें अपने भीतर का भगवान नहीं दिखता । मेरे भीतर का कैसे दिखेगा ? यह भ्रांति भी छोड़ दो कि तुम मुझे भगवान कहते हो । जिसे अपने भीतर का नहीं दिखा । उसे दूसरे के भीतर का कैसे दिखेगा ? भगवान की तो मैंने ही घोषणा की है । और यह खयाल रखना । तुम्हें कभी किसी में नहीं दिखा । कृष्ण ने खुद घोषणा की । तुम्हारे कहने से थोड़े ही कृष्ण भगवान हैं । दूसरे के कहने से तो कोई भगवान हो भी कैसे सकता है ? यह कोई दूसरों का निर्णय थोड़े ही है । यह तो स्वात रूप से निज घोषणा है ।
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पूर्णता 1 विक्षिप्त विचार है । भ्रष्ट न होने वाली बात मूर्ख पोलक पोप के लिए उचित है । पर समझदार लोगों के लिए नहीं । बुद्धिमान व्यक्ति समझेगा कि जीवन 1 रोमांच है । प्रयास और गलतियां करते हुए सतत अन्वेषण का रोमांच । यही आनंद है । यह बहुत रसपूर्ण है । मैं नहीं चाहता कि तुम परफेक्ट हो जाओ । मैं चाहता हूं कि तुम जितना संभव हो । उतना परफेक्टली इनपरफेक्ट होओ । अपने अपूर्ण होने का आनंद लो । अपने सामान्य होने का आनंद लो । तथाकथित होलीनेसेस से सावधान । वे सभी फोनीनेसेस हैं । यदि तुम ऐसे बड़े शब्द पसंद करते हो - होलीनेस । तो ऐसा टायटल बनाओ - वेरी ऑर्डिनरीनेस HVO  न कि HH । मैं सामान्य होना सिखाता हूं । मैं किसी तरह के चमत्कार का दावा नहीं करता । मैं साधारण व्यक्ति हूं । और मैं चाहता हूं कि तुम भी बहुत सामान्य बनो । ताकि तुम इन 2 विपरीत भावों से मुक्त हो सको - अपराध बोध । और पाखंड से । ठीक मध्य में स्वस्थ चित्तता है ।