शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

बटुक भैरव का चमत्कारी १०८ नाम

बटुक भैरव का यह १०८नाम बहुत ही चमत्कारी है ।
धन की इच्छा रखने वाले, पुत्र प्राप्ति की इच्छा पत्नी प्राप्ति की इच्छा रखने वाले की इच्छा तीन मास तक पूर्ण कर देते है । 
लगातार मंत्र करने वाले साधक को रोगी को रोग से मुक्ति मिलती है तथा बंधन बनाकर रखे गये मनुषय के बंधन कट जाते है हथकडी-बेडी में बंधा हुआ प्राणी भी इस नाम से मुक्ति पा जाता हैं । 
ग्रंथो में कहा गया है की १०८ नामो के करने से सभी आपत्तिया चाहे दैहिक-दैविक कोई भी क्यों न हो सभी से छुटकारा मिलता है और सभी प्रकार का आंनद प्राप्त होता है ।
*।। १०८ नामावली श्रीबटुक-भैरव ।।*
भैरव, भूतात्मा, भूतनाथ को है मेरा शत-शत प्रणाम ।
क्षेत्रज्ञ, क्षेत्रदः, क्षेत्रपाल, क्षत्रियः भूत-भावन जो हैं,
जो हैं विराट्, जो मांसाशी, रक्तपः, श्मशान-वासी जो हैं,
स्मरान्तक, पानप, सिद्ध, सिद्धिदः वही खर्पराशी जो हैं,
वह सिद्धि-सेवितः, काल-शमन, कंकाल, काल-काष्ठा-तनु हैं ।
उन कवि-स्वरुपः, पिंगल-लोचन, बहु-नेत्रः भैरव को प्रणाम ।
वह देव त्रि-नेत्रः, शूल-पाणि, कंकाली, खड्ग-पाणि जो हैं,
भूतपः, योगिनी-पति, अभीरु, भैरवी-नाथ भैरव जो हैं,
धनवान, धूम्र-लोचन जो हैं, धनदा, अधन-हारी जो हैं,
जो कपाल-भृत हैं, व्योम-केश, प्रतिभानवान भैरव जो हैं,
उन नाग-केश को, नाग-हार को, है मेरा शत-शत प्रणाम ।
कालः कपाल-माली त्रि-शिखी कमनीय त्रि-लोचन कला-निधि
वे ज्वलक्षेत्र, त्रैनेत्र-तनय, त्रैलोकप, डिम्भ, शान्त जो हैं,
जो शान्त-जन-प्रिय, चटु-वेष, खट्वांग-धारकः वटुकः हैं,
जो भूताध्यक्षः, परिचारक, पशु-पतिः, भिक्षुकः, धूर्तः हैं,
उन शुर, दिगम्बर, हरिणः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो पाण्डु-लोचनः, शुद्ध, शान्तिदः, वे जो हैं भैरव प्रशान्त,
शंकर-प्रिय-बान्धव, अष्ट-मूर्ति हैं, ज्ञान-चक्षु-धारक जो हैं,
हैं वहि तपोमय, हैं निधीश, हैं षडाधार, अष्टाधारः,
जो सर्प-युक्त हैं, शिखी-सखः, भू-पतिः, भूधरात्मज जो हैं,
भूधराधीश उन भूधर को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
नीलाञ्जन-प्रख्य देह-धारी, सर्वापत्तारण, मारण हैं,
जो नाग-यज्ञोपवीत-धारी, स्तम्भी, मोहन, जृम्भण हैं,
वह शुद्धक, मुण्ड-विभूषित हैं, जो हैं कंकाल धारण करते,
मुण्डी, बलिभुक्, बलिभुङ्-नाथ, वे बालः हैं, वे क्षोभण हैं ।
उन बाल-पराक्रम, दुर्गः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो कान्तः, कामी, कला-निधिः, जो दुष्ट-भूत-निषेवित हैं,
जो कामिनि-वश-कृत, सर्व-सिद्धि-प्रद भैरव जगद्-रक्षाकर हैं,जो वशी, अनन्तः हैं भैरव, वे माया-मन्त्रौषधि-मय हैं,जो वैद्य, विष्णु, प्रभु सर्व-गुणी, आपद्-उद्धारक हैं ।
उन सर्व-शक्ति-मय भैरव-चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम ।
*।। फल-श्रुति ।।*
इन अष्टोत्तर-शत नामों को-भैरव के जो पढ़ता है,
शिव बोले – सुख पाता, दुख से दूर सदा वह रहता है ।
उत्पातों, दुःस्वप्नों, चोरों का भय पास न आता है,
शत्रु नष्ट होते, प्रेतों-रोगों से रक्षित रहता है ।
रहता बन्धन-मुक्त, राज-भय उसको नहीं सताता है,
कुपित ग्रहों से रक्षा होती, पाप नष्ट हो जाता है ।
अधिकाधिक पुनुरुक्ति पाठ की, जो श्रद्धा-पूर्वक करते हैं,
उनके हित कुछ नहीं असम्भव, वे निधि-सिद्धि प्राप्त करते हैं ।

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