विपरीत प्रत्यंगिया का एक प्रयोग
स्त्रोत मंत्र :
ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं कुं कुं कुं मां सां खां चां लां क्षां रक्षांम करु ।।
ऊं ह्रीं ह्रीं ऊं स: हूं ऊं क्षौं वां लां मां धां सां रक्षांम कुरू ।।
ऊं ऊं ह्रीं वां धां मां सां रक्षांम करू
ऊं ऊं प्लूं रक्षांम कुरू ।।
ऊं नमो विपरीत प्रत्यंगिरे विद्यारागिनी त्रैलोकवश्यंकरि तुष्टि पुष्टि
करि सर्व पीडा पहारिणी सर्व पापनाशिनी सर्व मंगलमांग्लये शिवे सर्वार्थ
साधनी मोदिनी सर्व शास्त्राणं भेदीनि क्षोभिणी च । पर मंत्र तंत्र यंत्र विष
चूर्ण सर्व प्रयोगादीन अन्येषां निर्वर्तयित्वा यत्कृतम तन्मेंअस्तु
कलिपातिनी सर्वहिंसा मा कार्यति अनुमोदयति मनसा वाचा कर्मणा हे
देवासुर राक्षसास्तिर्यग्योनि सर्वहिंसका विरूपकं कुर्वन्ति मम मंत्र तंत्र
यंत्र विष चूर्ण सर्व प्रयोगादीनात्म हस्तेन य: करोति करिष्यति
कारयिष्यति तान् सर्वानन्येषां निर्वर्तयित्वा पात: कारय मस्तके स्वाहा ।
किसी अन्जान बिमारी में , किसी अन्जान क्रिया करतब में , किसी
अन्जान शत्रु से बचाव करने की स्थिति में इस स्त्रोत पाठ का कर्मठ
करने से मैने लोगों को लाभ दिलाया है ।
अन्जान शत्रु से बचाव करने की स्थिति में इस स्त्रोत पाठ का कर्मठ
करने से मैने लोगों को लाभ दिलाया है ।
वस्तु : लोहवान 50 ग्राम , कर्पूर 100ग्राम , गाय का दुध 50 ग्राम , एक
मिट्टी का पात्र हवन करने लायक
विधी : मिट्टी के पात्र में लोहवान को कर्पुर डाल के जला दे । जब लौ तीव्र
हो जाय । तब रोगी व्यक्ति के सर की तरफ से पांच बार परिक्रमा करके
उतारे हुए गाय के दुध का छींटा लौ के उपर उपरोक्त स्त्रोत को पढ के मारें
दिन : मंगलवार
समय: रात्रि 9 बजे के बाद
स्थान : खुला आसमान कहीं भी
संख्या: 51 बार
सफलता : तीन मंगलवार में
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